अपोलो अस्पताल के साइकाइट्रिक कंसलटेंट डा. अनिल कुमार यादव बताते हैं कि, इस तरह के मामलों में बीते सालों में तेजी देखी गई है। जब बच्चों को भी मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उनका मानना है कि यह समस्या बच्चों की मानसिक, शैक्षणिक और भावनात्मक स्थिति पर गहरा प्रभाव डाल रही है। उन्होंने बताया कि यह ट्रोलिंग शारीरिक हिंसा जितनी ही खतरनाक हो सकती है
बिलासपुर। बच्चों में आनलाइन ट्रोलिंग और बाडी शेमिंग जैसी समस्याएं आधुनिक समय की नई चुनौतियों में से एक है। इसका सबसे गहरा असर स्कूली बच्चों पर देखने को मिलता है। लगातार ट्रोलिंग बच्चों में शिक्षा के प्रति अवरूचि, स्कूल जाने की इच्छा न करना जैसे समस्याओं को जन्म दे सकता है। बाडी शेमिंग जैसे किसी को मोटा, काला या बौना कह देना बच्चों की मनोस्थिति में गहरा प्रभाव डाल सकता है। इस समस्या का सबसे अधिक सामना शारीरिक रूप से कमजोर छात्रों को करना पड़ता है।
भावनात्मक चोट से प्रभावित हो रहा आत्मविश्वास
अपोलो अस्पताल के साइकाइट्रिक कंसलटेंट डा. अनिल कुमार के अनुसार, बचपन में आनलाइन ट्रोलिंग और बाडी शेमिंग जैसी हिंसा का सामना कर चुके बच्चों में भावनात्मक चोटें गहरी होती हैं। इसका सीधा असर उनके आत्मविश्वास पर पड़ता है। जिससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास रुक जाता है। ऐसे बच्चे धीरे-धीरे अवसाद, चिंता और नशे की लत जैसी समस्याएं आने लगती हैं।और कई मामलों में उससे भी अधिक हानिकारक साबित हो रही है।
आनलाइन ट्रोलिंग है अदृश्य खतरा
डिजिटल युग में आनलाइन ट्रोलिंग बच्चों के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभर रही है। डा. यादव ने बताया कि, आनलाइन ट्रोलिंग को हल्के में लेना बड़ी गलती हो सकती है। क्योंकि, यह मानसिक रूप से बच्चे को आघात पहुंचाने के साथ उनके व्यवहार और उनके शैक्षणिक योज्ञता पर भी गहरा असर डालती है।
बच्चों में जागरूकता लाने में शिक्षक और अभिभावकों की अहम भूमिका
डा. अनिल कुमार के अनुसार, बच्चों को आनलाइन ट्रोलिंग और बाडी शेमिंग के दुष्प्रभावों से बचाने में शिक्षक और अभिभावकों की बड़ी जिम्मेदारी है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देते हुए उन्हें इस बारे में जागरूक करना बेहद जरूरी है। बच्चों में आनलाइन कंटेंट मानिटिरिंग और उनके साथ खुलकर चर्चा करना ही इन समस्याओं से निपटने का तरीका है। इस समस्या से निपटने में शिक्षकों और अभिभावकों की बड़ी जिम्मेदारी है।