जनता के पैसों का दुरुपयोग कैसे होता है, निगम की कबाड़ सिटी बसें इसका उदाहरण हैं। जिम्मेदारों ने 10 साल की परमिट वाली बसों को 6 साल में कबाड़ घोषित कर दिया। जानकारी के अनुसार, सिटी बसों की कीमत 30 लाख रुपये है, लेकिन छह साल में ही इसकी कीमत 75 फीसदी से कम हो गई हैं। ज्यादातर बसों के पहिए, सीट आदि खराब हो चुके हैं।
पंडरी बस डिपो में खड़े-खड़े कबाड़ हो रहीं सिटी बसों में ज्यादातर वातानुकुलित (एसी) बसें हैं। जानकारी के अनुसार, 21 में से 17 बसें वातानुकुलित हैं। वहीं पांच सामान्य बसें हैं, जिन्हें बनवाने के पीछे भी खेल किया गया है।
निगम के ही कुछ अधिकारियों का कहना है कि एसी बसों को बनवाने में खर्च ज्यादा आ रहा था, इसलिए उन्हें नहीं बनवाया गया। इनको चलना भी मंहगा पड़ता है। बस ऑपरेटर्स को एसी की अपेक्षा सामान्य बसों में कमाई ज्यादा है।
इसलिए बसों की मरम्मत के लिए सरकार की तरफ से मिले एक करोड़ 24 लाख रुपये में से 85 लाख खर्च कर सामान्य बसों की मरम्मत कराने में ऑपरेटर ने रुचि दिखाई। वहीं, एसी बसों को कबाड़ होने के लिए जस का तस छोड़ दिया गया है।
2 करोड़ रुपये आ रहा था खर्च
एसी और सामान्य दोनों प्रकार के बसों की मरम्मत में करीब दो करोड़ का खर्च आ रहा था। सूत्र बताते हैं कि बसों की मरम्मत के लिए 1.24 करोड़ रुपये का एस्टीमेट राज्य शासन को दिया गया था।
राशि मिलने के बाद जब काम शुरू कराया गया, तो खर्च 2 करोड़ रुपये आने लगा। तब जिम्मेदार अधिकारियों सहित बस ऑपरेटर ने तय किया कि छोटी सामान्य बसों को पहले बनवाया जाए।
रायपुर जिला पब्लिक अर्बन सोसायटी द्वारा खरीदी गई 67 बसों में से 46 बसें वर्तमान में चल रही हैं। हालांकि, कुछ बसों को आपातकालीन सुविधा के लिए आरक्षित रखा जाता है। वहीं, करीब 21 बसें अब कबाड़ हो गई हैं, जिन्हें बनवा पाना मुश्किल है। – प्रदीप यादव, कार्यपालन अभियंता, रायपुर
एक नजर इस पर…
आम आदमी पर आर्थिक बोझ लाद रहे बस ऑपरेटर l
शहर के बाहर चलने वाली बसों पर कस दिया शिकंजा l
जरूरत से ज्यादा भीड़ में सफर करने को यात्री मजबूर l
बस ऑपरेटर्स की मनमानी का खमियाजा भुगत रहे लोग।
जिम्मेदारों ने बसों को कबाड़ होने के लिए डिपो में छोड़ा।
30 लाख की बस से 100 रुपये रोज की कमाई
नगर निगम की ओर से चलाई जा रही सिटी बसों में निगम को प्रतिदिन 100 रुपये की ही कमाई हो रही है। बता दें कि मनीष ट्रेवल्स एजेंसी द्वारा इन दिनों नगर निगम की सिटी बसों को चलाया जा रहा है। इसके लिए एजेंसी 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से महीने में तीन हजार रुपये नगर निगम को देती है।
गाड़ियों को खड़ा कर पैसा दे रही एजेंसी
नगर निगम की आठ सिटी बसों को खड़ी कर एजेंसी शुल्क पटा रही है। इसे लेकर निगम के ही लोगों का कहना है कि इसमें एजेंसी का तो कोई नुकसान नहीं है। मगर, नगर निगम की बसें तो खड़े-खड़े कबाड़ हो रहीं हैं।
हालांकि, इसका ख्याल जिम्मेदारों को नहीं है। जिम्मेदारों का कहना है कि हमें एजेंसी शुल्क दे रही है। अब वह बस चलाए या खड़ी रखें यह उसकी समस्या है।