सक्ती जिले के अड़भार गांव में अष्टभुजी माता इस मंदिर में विराजमान हैं. तो चलिए आपको हम इन तस्वीरों के जरिए मंदिर के इतिहास और मान्यताओं के बारे में बताते हैं जांजगीर चांपा जिले से अलग नवीन सक्ती जिले के अड़भार में मां अष्टभुजी का मंदिर है. इस मंदिर को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है.
जानकारों ने बताया कि यहां पांचवी-छठवीं शताब्दी के अवशेष इस स्थान पर मिलते हैं. इतिहास में अड़भार का उल्लेख अष्टद्वार के रूप में मिलता है. मां अष्टभुजी आठ भुजाओं वाली है, यह बात तो अधिकांश लोग जानते हैं लेकिन देवी के दक्षिण मुखी होने की जानकारी कम लोगों को ही है.
सिद्ध जगत जननी माता अष्टभुजी का मंदिर दो विशाल इमली पेड़ के नीचे स्थित है. दक्षिण मुखी मूर्ति के ठीक दाहिने में देगुन गुरु की प्रतिमा योग मुद्रा में विराजीं है. प्राचीन इतिहास में 8 बार का उल्लेख अष्ट द्वार के नाम से मिलता है.अष्टभुजी माता का मंदिर और इस नगर के चारों ओर बने 8 विशाल दरवाजों की वजह से इसका प्राचीन नाम अष्ट द्वार और धीरे-धीरे अपभ्रंश होकर इसका नाम अड़भार हो गया.
लगभग 6- 7 किलोमीटर की परिधि में बसा यह नगर अपने आप में अजीब है. यहां हर 100 से 200 मीटर की खुदाई करने पर किसी न किसी देवी देवता की मूर्तियां खण्डित अवस्था मिल जाती हैं. आज भी यहां के लोगों को भवन, घर बनाते समय प्राचीन टूटी फूटी मूर्तियां या पुराने समय के सोने चांदी के सिक्के प्राचीन धातु की कुछ ना कुछ सामान अवश्य मिलते हैं.
मां अष्टभुजी की प्रतिमा ग्रेनाइट पत्थर से बनी हुई है, आठ भुजाओं वाली मां की प्रतिमा दक्षिणमुखी भी है. पंडित ने बताया कि पूरे भारत में कोलकाता की दक्षिण मुखी काली माता और सक्ती जिले के मालखरौदा ब्लॉक अंतर्गत नगर पंचायत अड़भार की दक्षिणमुखी अष्टभुजी देवी के अलावा और कहीं की भी देवी की प्रतिमा दक्षिणामुखी नहीं है
सक्ती जिले से दक्षिण पूर्व की ओर 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो कि अड़भार में अष्टभुजी माता के मंदिर के नाम पर प्रसिद्ध है. नजदीकी रेल्वे स्टेशन सक्ती है. यहां से आप बस, कार या मोटर साइकिल से भी पहुंच सकते है.
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