छग बिलासपुर। 25 साल के लंबे इंतजार के बा, राजनांदगांव निवासी अब्दुल रहमान अहमद को न्याय मिला है। उनकी नियुक्ति 31 अगस्त 1989 को जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता कार्यालय, महानदी कछार में ट्रेसर के पद पर हुई थी। कुछ समय बाद,16 अक्टूबर 1989 को उनकी सेवाएं अधीक्षण अभियंता कार्यालय में स्थानांतरित कर दी गईं। लेकिन 1991 में आनंद मार्ग संस्था से जुड़ाव के आरोप में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।
सरकारी कर्मचारी हित में बड़े फैसले संभव मध्यप्रदेश राज्य प्रशासनिक अधिकरण ने इस बर्खास्तगी को अवैध ठहराते हुए बहाली का आदेश दिया था, लेकिन जल संसाधन विभाग ने 1991 से 1999 तक का वेतन और अन्य लाभ देने से मना कर दिया। अब्दुल रहमान ने फिर से ट्रिब्यूनल का सहारा लिया, लेकिन राज्य विभाजन के बाद मामला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चला गया। हाईकोर्ट में इस मामले को अवमानना याचिका के रूप में पंजीकृत किया गया था।
सुनवाई के दौरान, राज्य शासन की ओर से समय पर जवाब प्रस्तुत न किए जाने के कारण कोर्ट ने मामले को एकतरफा निराकृत कर दिया। इसके बावजूद जब याचिकाकर्ता को बैकवेज नहीं मिला, तो उन्होंने 2006 में फिर से याचिका दायर की। अब, 25 साल बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट जस्टिस गौतम भादुड़ी ने अपने फैसले में कहा है कि जब किसी सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी को हाईकोर्ट अवैध घोषित कर देती है, तो उसे बिना किसी अतिरिक्त जांच के बहाल किया जाना चाहिए और सेवा से बाहर होने की अवधि का पूरा वेतन-भत्ता और अन्य लाभ मिलना चाहिए। कोर्ट ने राज्य शासन को लंबित वेतन और भत्तों का भुगतान करने का निर्देश दिया है।
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