श्री झूलेलाल मंदिर झूलेलाल नगर चकरभाटा के संत लाल साई जी का सत्संग का आयोजन राजा वीर मंदिर तोरवा बिलासपुर में आयोजित किया गया कार्यक्रम की शुरुआत भगवान झूलेलाल व बाबा गुरमुखदास जी की मूर्ति पर माला पहना कर व दीप प्रज्वलित करके की गई, सत्संग
में साईं जी ने अपनी अमृतवाणी से दो कथा सुनाएं पहली कथा सतयुग में अगर एक व्यक्ति पाप करता था तो उसका फल पूरे देश को भुगतना पड़ता था त्रेता युग में एक व्यक्ति पाप करता था तो उसका फल पूरे शहर को भुगतना पड़ता था द्वापर युग में अगर एक व्यक्ति पाप करता था तो उसका फल पूरे गांव को भुगतना
पड़ता था कलयुग में अगर एक व्यक्ति पाप करता है तो उसका फल उसे ही भुगतना पड़ता है इसलिए पाप न करें पुण्य कमाए सत्संग में आने से कुछ नहीं होता है जब तक आप सत्संग में आकर अपना तन मन सत्संग में नहीं लगाएंगे और सत्संग में बताए हुए बातों पर अमल नहीं करेंगे तब तक आपका भला नहीं हो
सकता है आपने का नाम दान दिया है किसी भी संत का और आपने पाप कर रहे हो तो उसका कुछ फल संत को भी भुगतना पड़ता है क्योंकि अगर कोई बच्चा गलत काम करता है लोग कहते हैं ना तुम्हारे बाप ने यह सिखाया था तुम्हारे गुरु ने सिखाया था इसलिए किसी भी संत का गुरु का नाम नाम लिया है तो नाम का सिमरन करो अच्छे कर्म करो जितना समय मिले पुण्य कमाओ मरने के बाद भगवान तुम्हारा पैसा नहीं देखेगा तुम्हारे अच्छे कर्म देखे जाएंगे माता पिता भी ध्यान दें जितना हो सके अपने बच्चों पर ध्यान दें बच्चों के परवरिश पर ध्यान दें जैसे संस्कार अब बच्चों को देंगे बच्चा बढ़ाकर वैसे ही आगे बढ़ेगा
दूसरी कथा थी एक गांव में एक व्यक्ति अपने आप को बड़ा होशियार समझता था वह शहर घूमने गया मुंबई कुछ दिन बाद गांव वापस आया सभी लोग उससे पूछे लगे शहर कैसा लगा शहर में तुमने क्या किया तो उस व्यक्ति ने कहा यह तो बहुत अच्छा था और मैंने कई लोगों को बेवकूफ बनाया तो उसने एक किस्सा बताया कि मैं एक बार एक बड़ी बिल्डिंग के नीचे खड़ा हो गया और उसे देखने लगा वह 40 माले की बिल्डिंग को गिनने लगा एक व्यक्ति आया उसने कहा तुम बिल्डिंग देख रहे हो उसके पैसे लगेंगे बताओ तुमने कितने माले देखी अभी तक तो मैंने उसे बेवकूफ बना दिया मैंने कहा मैंने सिर्फ 10 माले देखे हैं तो उस आदमी ने कहा एक माले का ₹10 लगेगा तो मैंने उसे ₹100 दे दिए जबकि मैंने 30 माले देखे थे देखा तुमने मैंने उसे
बेवकूफ बना दिया इस कहानी का मतलब है ज्यादा होशियारी भी अच्छी बात नहीं है होशियार रहना अच्छी बात है ज्यादा होशियारी दिखाना अपना ही नुकसान करना है
साईं जी के द्वारा चालिहा महिमा वह घाघर कैसे रखें इसके बारे में बताया
सत्संग में संत लाल साई जी ने अपनी अमृतवाणी में चालिहा की महिमा एवं मनोकामना है तू घाघर कैसे रखें बताया चालिहा उत्सव 1060 सालों से सिंध के समय से ही मनाते आ रहे हैं चलीहा वर्ष में दो बार मनाया जाता सिंध में दो जगह थी अपर एवं लोवर अपर में जुलाई माह में चालिया मनाया जाता है लोवर ठंड के समय में चालिया मनाया जाता है क्योंकि जुलाई के माह में लोवर में गर्मी पड़ती है इसलिए हमारे भारत देश में अभी चालिया उत्सव जुलाई माह में व दिवाली के बाद ठंड में मनाया जाता है श्री झूलेलाल मंदिर चकरभाटा में दिवाली के बाद ठंड आरंभ होती है तब चालिहा मनाया जाता है चालिहा के उपवास रखने से धर्म अर्थ काम मोक्ष प्राप्ति होती है शाश्वत 365 दिन का दसवां हिस्सा चालिहा होता है चालिहा का उपवास सच्चे मन से अच्छा से भक्ति से अगर कोई रखता है तो साक्षात उन्हें भगवान झूलेलाल के दर्शन होते हैं अगर कोई सच्चे मन से मनोकामना घागर अपने घर में विराजमान के करते हैं तो उनकी मनोकामना भगवान झूलेलाल जरूर पूरी करते हैं ऐसे बहुत सारे चमत्कार हुए हैं चालिहा उत्सव 16 दिसंबर से आरंभ हो रहा है 24 जनवरी को दिव्य दर्शन के साथ समापन होगा चलिए का उपवास एवं घागर सिंधी समाज के अलावा अन्य समाज के लोग भी उपवास रख सकते हैं वह घागर भी रख सकते हैं चलिए का जो जल है वह कभी खराब नहीं होता जैसे गंगाजल पवित्र होता है शुद्ध होता है उसी तरह चलिहा का जल भी शुद्ध पवित्र होता है चहलिहा का उपवास रखने से मन व तन की भी छुध्दी होती है इस अवसर पर साइ जी के द्वारा कई भक्ति भरे भजन गाए गए लाल झूले लाल झूले लाल चालिहा आया है भगवान झूलेलाल का बाबा गुरमुखदास आपकी याद आती है आप हमारे दिल में हमेशा रहते हैं
भक्ति भरे भजन सुनकर भक्तजन भाव विभोर हुए
कार्यक्रम 8:00 बजे आरंभ हुआ 10:00 बजे समापन हुआ
कार्यक्रम के आखिर में अरदास की गई विश्व कल्याण के लिए पल्लो पाया गया एवं प्रसाद वितरण किया गया
इस कार्यक्रम को सफल बनाने में महेंद्र भोजवानी मनोज कृपलानी विजय दुसेजा के के खत्री दिनेश खत्री राहुल हंस पाल रमेश टेकचंदानी यशवंत गंगवानी विक्की कृपलानी टीकम भोजवानी राजा जेसवानी सांवल दास भोजवानी मनोज भाई एवं झूलेलाल सेवा समिति तोरवा राजा विक्रम विक्रमादित्य सेवा समिति चोरवा महिला मंडल विशेष सहयोग रहा
भवदीय
विजय दुसेजा
Editor In Chief