Bhojshala ASI survey: Dhar की ऐतिहासिक भोजशाला में शुरू हुआ ASI का सर्वे, जानें क्या है पूरा मामला?

राजेन्द्र देवांगन
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Bhojshala ASI survey: Dhar की ऐतिहासिक भोजशाला में शुरू हुआ ASI का सर्वे, जानें क्या है पूरा मामला?
धार:-मध्यप्रदेश हाई कोर्ट  के आदेश के बाद मध्य प्रदेश  के धार  में स्थित ऐतिहासिक परमारकालीन  भोजशाला  में शुक्रवार, 22 मार्च की सुबह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की टीम वाराणसी की ज्ञानवापी की तरह सर्वे शुरू कर दिया है. इसके लिए आवश्यक सामग्री भी अंदर भेजी जा चुकी है.

भारी संख्या में पुलिस बल तैनात
सर्वे में जिन श्रमिकों की आवश्यकता है उन श्रमिकों को भी अंदर भेज दिया गया है. बता दें कि सर्वे को लेकर ASI, जिला प्रशासन और पुलिस ने तैयारियों को पहले ही अंतिम रूप दे दिया था. सर्वे के दौरान सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त के लिए परिसर के आसपास भारी पुलिस बल तैनात हैं.

भोजशाला सर्वे में कोर्ट ने क्या कहा?
11 मार्च, 2024 को दिए अपने आदेश में हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है, ‘अगर ASI को लगता है कि वास्तविकता तक पहुंचने के लिए उसे कुछ अन्य जांच करनी है तो वो परिसर में मौजूद वस्तुओं को नुकसान पहुंचाए बिना उन्हें कर सकता है.

हाईकोर्ट ने ASI को भोजशाला का वैज्ञानिक सर्वे जीपीआर (ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार) व जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) से करने को कहा है. बता दें कि जीपीआर में लगे रडार से जमीन में छुपी वस्तुओं के विभिन्न स्तरों, रेखाओं और संरचनाओं का माप लेता है.

ASI भोजशाला स्थित हर चल-अचल वस्तु, दीवारें, खंभों, फर्श की जांच करेगा. जांच में अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल होगा. परिसर स्थित हर वस्तु की कार्बन डेटिंग पद्धति से जांच कर ये पता लगाया जाएगा कि वो कितनी पुरानी है.
भोजशाला का इतिहास
इतिहासकार के अनुसार, भोजशाला को परमार कालीन माना जाता है. दरअसल, परमार राजवंश के सबसे बड़े शासक राजा भोज (Raja Bhoj) शिक्षा और साहित्य के अनन्य उपासक थे. वहीं राजा भोज ने 1034 ईं. में धार में सरस्वती सदन के रूप में भोजशाला रूपी महाविद्यालय की स्थापना की थी. यहां देश-विदेश के अनेक छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे. भोजशाला में मां सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति भी स्थापित की गई थी.

1456 में भोजशाला को ढहाया गया 
13वीं और 14वीं सदी में मुगलों ने देश में आक्रमण किया. इस दौरान भोजशाला को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया था. दरअसल, 1456 ईं. में महमूद खिलजी  ने भोजशाला में मौलाना कमालुद्दीन  के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया. इसके अलावा प्राचीन सरस्वती मंदिर को ढहाकर उसके अवशेषों से भोजशाला के रूप में परिवर्तित कर दिया.आज भी प्राचीन हिंदू सनातनी अवशेष प्रसिद्ध कमाल मौलाना मस्जिद में देखे जा सकते हैं.

मस्जिद में एक प्रांगण है, जिसके चारों ओर स्तंभों से अलंकृत एक बरामदा और पीछे पश्चिम में एक प्रार्थना गृह स्थित है. कहा जाता है कि मस्जिद में प्रयुक्त नक्काशीदार स्तंभ और प्रार्थना कक्ष की उत्कृष्ट रूप से नक्काशीदार छत भोजशाल के थे.
धार की भोजशाला की शिलाओं में कर्मावतार या विष्णु के मगरमच्छ अवतार के प्राकृत भाषा में लिखित दो स्तोत्र उत्कीर्ण हैं. दो सर्पबंध स्तंभ शिलालेख हैं, जिसमें एक पर संस्कृत वर्णमाला और संज्ञाओं और क्रियाओं के मुख्य अंतःकरण को समाहित किया गया है, जबकि दूसरे शिलालेख पर संस्कृत व्याकरण के दस काल और मनोदशाओं के व्यक्तिगत अवसान शामिल हैं. ये शिलालेख 11 वीं-12 वीं शताब्दी के बताए जाते हैं. इसके अलावा परिसर में कमल चिह्न भी स्पष्ट नजर आते हैं.

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