CG की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी, हाई कोर्ट ने कहा- ओपन जेल खोलने पर विचार करे सरकार..!
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में सेंट्रल जेल, जिला जेल और उप जेल के आंकड़ों के आधार पर हाईकोर्ट ने जेल में कैदियों की परेशानी और बढ़ती संख्या को लेकर स्वत: संज्ञान लिया है. दरअसल छत्तीसगढ़ की जेलों में 20 साल से ज्यादा कारावास की सजा वाले कैदी के अलावा क्षमता से ज्यादा कैदियों की संख्या होने से व्यवस्था खराब होने की बात सामने आई है.
एक मामले के आरोपी के परिजन ने विभिन्न तारीखों पर हाईकोर्ट को पत्र लिखकर कहा है कि मोहम्मद अंसारी की हत्या के मामले में धारा 302 के तहत 2010 से जेल में बंद है. हाई कोर्ट ने 21 अप्रैल 2023 को उनकी याचिका खारिज भी कर दी है. पत्र में कहा गया है कि घर में कमाने वाले एकमात्र व्यक्ति के जेल में बंद होने के कारण वे लोग बदहाली में जीवन जी रहे हैं. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच में चल रही है. इस मामले में मिले पत्र के आधार पर कोर्ट ने संज्ञान लिया है.
पत्र मिलने पर कोर्ट हुआ गंभीर मांगी जानकारी: पत्र में बताया गया है कि जेलों की क्या व्यवस्था है. पत्र के माध्यम से कोर्ट को 6 बिंदुओं पर एकत्र किए गए डाटा की जानकारी लगी, जिसमें बताया गया कि छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित केंद्रीय जेल और जिला जेल में महिला कैदियों के साथ रहने वाले बच्चे, 20 वर्ष से अधिक की सजा वाले कैदी, जेल की क्षमता और वास्तव में जेल में रखे गए कैदियों की कुल संख्या, बढ़ाई, प्लंबर, पेंटर, माली, किसान जैसे कुशल पेशेवर कैदियों की कुल संख्या, वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आने वाले कैदी और जेल से भागने वाले कैदियों की संख्या कितनी है. इसमें जानकारी जुटाई गई है, जिसमें पाया गया की जेल में महिला कैदियों के साथ 82 बच्चे रह रहे हैं. 340 अपराधी ऐसे हैं, जिन्हें 20 वर्ष से अधिक कारावास की सजा हुई है.
हाई कोर्ट ने इस मामले को लेकर सुनवाई के दौरान कहा कि महाराष्ट्र, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में ओपन जेल की व्यवस्था करने और अन्य सुधार करने के लिए प्रयास क्यों नहीं किए जाते हैं. सरकार इस पर विचार करें. इस मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मुख्य सचिव को शपथ पत्र के साथ जवाब पेश करने का निर्देश दिया है. अब मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल को निर्धारित की गई है.
कोर्ट ने कहा है कि सुधारात्मक सजा के साथ सलाखों वाली पारंपरिक अमानवीय जेल सही नहीं है, बल्कि अधिक उदार और खुली जेल की अवधारणा का समर्थन होना चाहिए, जो न्यूनतम सुरक्षा के साथ एक विश्वास आधारित जेल है. यह भी कहा गया है कि भारत में खुली जेल की अवधारणा नई नहीं है. देश में पहले से ही तीन राज्यों में खुली जेल की संख्या सबसे अधिक है. एक खुली जेल अनुकूल माहौल प्रदान करती है. ऐसी जेल अपराधी को जेल से रिहा होने से पहले भी सामाजिक मेल-जोल में मदद करेगी. ऐसे कैदियों की काफी संख्या है जो कुशल पेशेवर हैं, जिनकी सेवाओं का उपयोग किया जा सकता है.
भारत के तीन राज्यों में महाराष्ट्र, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में खुली जेल की व्यवस्था है. खुली जेल का मतलब यह है कि अच्छे आचरण और चाल चलन के साथ ही भरोसेमंद कैदियों को जिनके पास हुनर है, उन्हें उनके काम पर जाने दिया जाता है. वह सुबह जेल से काम के लिए निकलते हैं और इसके बाद शाम होते ही वह वापस जेल पहुंच जाते हैं. इस व्यवस्था को खुली जेल या ओपन जेल व्यवस्था कहा जाता है. कैदियों को दिन के समय उनके काम पर जाने दिया जाता है और रात होते ही वे लौट आते हैं. यह सुधारात्मक न्याय के सिद्धांतों का अभिन्न अंग माना जाता है, जिसके तहत किसी अपराधी को सुधरने का अवसर दिया जाता है और वह अपने रिहा होने के बाद वापस समाज की मुख्यधारा से जुड़ कर अपना जीवन चला सके और अपने परिवार की आर्थिक मदद कर सके.