Kanker Students Protest For Education”शिक्षा के लिए नक्सलगढ़ के नौनिहालों का संग्राम, सरकार से की टीचर की मांग

राजेन्द्र देवांगन
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Kanker Students Protest For Education”शिक्षा के लिए नक्सलगढ़ के नौनिहालों का संग्राम, सरकार से की टीचर की मांग
कांकेर : नया शिक्षा सत्र शुरू होते ही अंदरूनी गांवों में शिक्षा को लेकर समस्याएं भी उजागर होने लगी है. 9 दिन बाद भी न तो शिक्षक पढ़ाने पहुंचे और न ही यहां किताब और ड्रेस बंट पाई है. स्कूल खुलने का इंतजार कर रहे बच्चों का सब्र अब जवाब दे गया. इसी को लेकर कोयलीबेड़ा ब्लॉक के छोटेबेठिया में स्कूली बच्चे और ग्रामीणों ने बेचाघाट से छोटेबेठिया तक रैली निकाली. छात्र और अभिभावकों ने लापरवाह शिक्षकों पर कार्रवाई के साथ ही इन स्कूलों में तत्काल टीचर्स का प्रबंध करने की मांग की. रैली में कांकेर के छोटेबेठिया इलाके और नारायणपुर जिले के ओरछा ब्लॉक के ग्रामीण शामिल रहे.

अब तक कई स्कूलों का नहीं खुल पाया है ताला: नया शिक्षा सत्र शुरू हुए 9 दिन बात गए हैं. टीचर के न आने से कई स्कूलों में तो अब तक ताला भी नहीं खुल पाया है. ऐसे में बच्चों के साथ ही परिजनों को पढ़ाई में पिछड़ने की चिंता सता रही है. अभिभावक बच्चों के मुख्यधारा से भटकने की भी आशंका जता रहे हैं. नक्सली मुसीबत से पीछा छूटने के बाद लोग देश दुनिया के साथ कदम मिला कर चलना चाहते हैं.

ऐसे में शिक्षा को लेकर इस तरह की लापरवाही इलाके के लोगों को विकास की दौड़ में पीछे धकेल सकती है.

स्कूलों में न तो शिक्षक आए और न ही बच्चों को ड्रेस और किताबें दी गईं. हमारी मांग है कि बच्चों की शिक्षा का ध्यान रखा जाए. जो शिक्षक अब तक स्कूलों में नहीं पहुंचे हैं, उन पर कार्रवाई की जाए और तुरंत स्कूलों में टीचर की व्यवस्था की जाए. – मैनी कचलामी, सरपंच, कंदाड़ी ग्राम पंचायत

शिकायत के बाद भी शिक्षा विभाग नहीं दे रहा ध्यान: ग्राम पंचायत कोंगे के ग्रामीणों ने कई बार सरपंच, सचिव, संकुल समन्वयक और बीईओ को शिक्षकों के स्कूल में नहीं पहुंचने की जानकारी दी. लेकिन इस पर कोई ठोस कार्रवाई अब तक नहीं हो पाई है.

पर स्कूल भवन की भी हालत खराब है. बारिश होने पर छतों से पानी टपकने लगता है. हालत यह है कि गांव के गोटूल में ही स्कूल चलना पड़ता है.क्षेत्र में जहां निजी शिक्षण संस्थान नहीं है, वहां इन सरकारी स्कूलों की शिक्षा के दम पर लोग अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की तस्वीर बुनते हैं. लेकिन इस तरह के माहौल में उन्हें किस प्रकार की शिक्षा मिल रही है, इसका अंदाजा खुद ही लगाया जा सकता है.

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