परिवीक्षा अवधि में वेतन की जगह स्टाइपेंड देने के नियम को हाईकोर्ट में चुनौती, कोर्ट ने मांगा जवाब..!
बिलासपुर. सहायक प्राध्यापकों की 3 वर्ष की परिवीक्षा अवधि और इस दौरान वेतन की जगह स्टाइपेंड देने के नियम को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर राज्य शासन, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), पीएससी व अन्य को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है. मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय जायसवाल की डिवीजन बेंच में हुई.
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रोहित शर्मा ने पैरवी करते हुए कोर्ट के समक्ष तर्क रखा कि संविधान के 42 वें संशोधन द्वारा शिक्षा को राज्य की समवर्ती सूची में 1977 से शामिल कर दिया गया है, इसलिए उक्त विषयों पर अगर भारतीय संसद द्वारा कोई नियम बनाया जाता है, तो ऐसा नियम राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए नियम एवं उनके अधीन बनाए गए अधिनियम पर भी लागू होते हैं
याचिका में यह भी बताया गया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न विनियमन बनाता और उनको लागू करता है. उक्त विनियमन राज्य के ऊपर बंधनकारी है. केंद्र और यूजीसी ने सहायक प्राध्यापकों के लिए वेतन का प्रावधान किया है इसलिए छत्तीसगढ़ में उनकी नियुक्ति के बाद 3 साल की प्रोबेशन अवधि और वेतन की जगह 70 से 90 प्रतिशत तक स्टाइपेंड दिए जाने का प्रावधान सहायक प्राध्यापकों पर लागू नहीं हो सकता.
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