आए दिन बाजरा के…
नहीं होता कीट प्रकोप, जरूरत नहीं उर्वरक की
बिलासपुर- अच्छे दिन आ रहे हैं, बाजरा के, क्योंकि हरित क्रांति के दौर में गायब हो चुके मोटा अनाज की जोरदार वापसी हो रही है।यह तब,जब जलवायु परिवर्तन से बारिश के दिन लगातार कम हो रहे हैं। ऐसे प्रतिकूल मौसम में मोटा अनाज की वह प्रजातियां मजबूत सहारा बन रही हैं,जिनमें सूखा प्रतिरोधक क्षमता गजब की होती है।
विश्व बाजरा वर्ष 2023 के रूप में एक ऐसी योजना किसानों तक पहुंचने जा रही है, जिसकी मदद से बंजर जमीन पर बेशकीमती मोटा अनाज की फसल ली जा सकेगी। दिलचस्प और बड़ी राहत की बात यह है कि इन फसलों में कीट प्रकोप नहीं होता और अल्प सिंचाई में भी यह भरपूर उत्पादन देते हैं। बाजार की खोज भी नहीं करनी होगी क्योंकि सरकार ने इसकी खरीदी समर्थन मूल्य पर करनी चालू कर दी है।
आसान, बंजर भूमि पर
देश की कुल कृषि भूमि में से केवल 25 से 30 फ़ीसदी हिस्सा ही सिंचित है। शेष अर्धसिंचित या असिंचित है। ऐसे में बंजर भूमि का रकबा विशाल है। अब इन क्षेत्रों में मोटा अनाज की प्रजातियां बोई जा सकेगी। किसानों के लिए राहत यहीं खत्म नहीं हो जाती। मोटा अनाज की प्रजातियों में कीट प्रकोप नहीं होते और उर्वरक की भी जरूरत नहीं पड़ती।
इन देशों को निर्यात
मोटा अनाज के निर्यात में एशिया में हमारी हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है, तो दुनिया की कुल मांग में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत की है। इस समय देश में मोटा अनाज की खरीददारी अमेरिका, संयुक्त अरब गणराज्य, ब्रिटेन, नेपाल, यमन, लीबिया, ट्यूनीशिया और मिस्र जैसे देश कर रहे हैं। इसकी मांग हर साल बढ़ रही है।
भरपूर मेडिशनल प्रॉपर्टीज
अनुसंधान में कोदो, कुटकी, रागी, ज्वार, बाजरा, कंगनी और सांवा में विटाकैरोनिन, विटामिन बी, फॉलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जिंक, फाइबर और भरपूर मात्रा में प्रोटीन की मात्रा का होना पाया गया। यह तत्व कब्ज रोकते हैं, हड्डियों को मजबूत बनाते हैं। इसके अलावा आम हो चली मधुमेह और हृदय रोग पर भी प्रभावी तरीके से ब्रेक लगाते हैं।
भारतीय कृषि का भविष्य
बाजरा भारतीय कृषि का भविष्य है l यह उन क्षेत्रों के लिए एक आदर्श फसल है, जहां जल प्रबंधन चिंता का विषय है l यह कठोर अनाज है जो अर्ध -शुष्क जलवायु में समृद्ध होते हैं l
अजीत विलियम्स, वैज्ञानिक (वानिकी), बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, बिलासपुर (छ.ग.)
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