पातालकोट की रहस्यमयी दुनिया के बारे में जानें… रामायण काल से जुड़ा है इसका इतिहास…!
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, पाताल लोक राक्षस और नागों का घर है। लेकिन मध्यप्रदेश के छिंडवाड़ा में एक ऐसी जगह है जिसे पाताल लोक कहा गया है। अनोखी बात यह है कि यहां इंसान रहते भी हैं और जीवन जीते भी हैं। छिंदवाडा के तामिया क्षेत्र में घनी हरी-भरी पहाडिय़ों में 12 गांव में फैली 2000 से ज्यादा भारिया जनजाती के लोग रहते हैं। यहां हर गांव 3-4 गांव किमी की दूरी पर स्थित है। यह जगह औषधियों का खजाना मानी जाती है। इतना ही नहीं यहां पर 3 गांव तो ऐसे हैं, जहां सूर्य की किरणें भी नहीं पहुंच पाती हैं। ऐसे में कड़ी धूप के बाद भी यहां का नजारा शाम जैसा दिखता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह गांव धरातल से लगभग 3000 फुट नीचे बसे हुए हैं। इतना ही नहीं, पातालकोट में ऐसा बहुत कुछ है, जो काफी दिलचस्प है और सच है।
प्राचीन कहानियां –
पातालकोट कई सदियों से गोंड और भारिया जनजातियां द्वारा बसा हुआ है। यहां रहने वाले लोग बाहरी दुनिया से कटे हुए रहते हैं। भारिया जनजाति के लोगों का मानना है कि पातालकोट में ही रामायाण की सीता पृथ्वी में समा गई थीं। जिससे यहां एक गहरी गुफा बन गई थी। एक और किवदंती यह भी है कि रामायण के हनुमान ने इस क्षेत्र के जरिए जमीन में प्रेवश किया था, ताकि भगवान राम और लक्ष्मण को राक्षस रावण के बंधनों से बचाया जा सके।
पातालकोट में आपको हर जगह घने पत्ते देखने को मिलेंगे। इसके अलावा यह जगह कई औषधीय जड़ी-बूटियां, पौधों, जानवरों और पक्षियों का घर भी है। घाटी में रहने वाले लोगों के लिए पानी का एकमात्र साधन दूधी नदी है। दिलचस्प बात यह है कि दोपहर के बाद पूरा क्षेत्र अंधेरे से इतना घिर जाता है कि सूरज की रोशनी भी इस घाटी की गहराई तक पहुंच नहीं पाती।
पातालकोट एक पहाड़ की तरह लगता है, जिसके गर्भ में ही सभ्यता पल रही है। कुछ लोग सोचते हैं कि यह एक गहरी खाई है, वहीं यहां रहने वालों का मानना है कि ये पाताल लोक का एकमात्र प्रवेश द्वार है।
पातालकोट के रहने वाले आदिवासी जनजाति मेघनाथ का सम्मान करती है। यहां चेत्र पूर्णिमा पर मार्च और अप्रैल के महीने में बड़ा मेला आयोजित होता है। आदिवासी लोग जीवन में एक दिन देवघर में पूजा-अर्चना करते हैं। आदिवासी द्वारा यहां खासतौर से भगवान शिव, अग्रि और सूर्य की पूजा की जाती है।
पातालकोट घूमने का सबसे अच्छा समय-
अपनी यात्रा को यादगार बनाने के लिए मानसून के मौसम में पातालकोट घूमने जाएं। धरती की सुगंध और सुहाना मौसम इस जगह की शोभा बढ़ा देते हैं। घाटी के अंदरूनी हिस्सों में जाने के लिए अक्टूबर से फरवरी का समय सबसे अच्छा है। जुलाई से सितंबर तक के महीने घाटी को ऊपर से देखने के लिए परफेक्ट माने जाते हैं।
पातालकोट कैसे पहुंचे-
टूरिस्ट जबलपुर या भोपाल एयरपोर्ट पर उतरकर पातालकोट पहुंच सकते हैं। यहां से पातालकोट के लिए टैक्सी किराए पर मिलती हैं। ट्रेन से यात्रा करने वाले लोग भोपाल या जबलपुर से पातालकोट एक्सप्रेस के जरिए छिंदवाड़ा स्टेशन पहुंच सकते हैं और फिर यहां से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं। रोड ट्रिपर्स के लिए नागपुर से छिंडवाडा 125 किमी, भोपाल से 286 किमी और जबलपुर से 215 किमी दूर है। इन शहरों से छिंदवाड़ा के लिए समय-समय पर बसें और टैक्सी चलती हैं।
पातालकोट में कहां ठहरें-
वैसे तो घाटी में रहने के लिए अच्छी जगह मिलना काफी मुश्किल है। फिर भी अगर आप समझौता कर सकते हैं, तो यहां पर टेंट लगाकर ठहर सकते हैं। यहां के तामिया या पीडब्ल्यूडी के गेस्ट हाउस में भी रहने की सुविधा दी जाती है।
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