14 जवान शहीद हुए थे उस वक्त गंभीर रूप से घायल था,यह जवान, सीमा पर देश की सेवा के पश्चात सीआरपीएफ का जवान अब गांव की सेवा कर रहा है…

राजेन्द्र देवांगन
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सीमा पर देश की सेवा के पश्चात सीआरपीएफ का जवान अब गांव की सेवा कर रहा है

14 जवान शहीद हुए थे उस वक्त गंभीर रूप से घायल था,यह जवान

कोंडागांव —जम्मू कश्मीर मे देश की सीमा पर सीआरपीएफ के जवान के रूप में तैनात रहकर सेवाएं देने के पश्चात सलवा जुडूम के समय बस्तर में नक्सलियों से लोहा लिया। मुठभेड़ में किसी तरह जान बच पाई। उसके पश्चात अब वह जवान गांव में सरपंच बनकर ग्रामीणों की सेवा कर रहा है। ग्राम पंचायत कोंगेरा के सरपंच कृष्ण कुमार नेताम की नियुक्ति 2011 में सीआरपीएफ जवान के लिए हुआ था। कुछ समय दिल्ली एवं जम्मू में ड्यूटी के पश्चात उनका तबादला दंतेवाड़ा क्षेत्र मे सलवा जुडूम के वक्त हुआ था। वहां 5 साल सेवा देने के पश्चात उनका तबादला सघन नक्सल क्षेत्र जगरगुंडा में हुआ ।उस वक्त बस्तर में महेंद्र कर्मा के नेतृत्व में जोर-शोर से सलवा जुडूम चल रहा था जहां नक्सली भी अपने अस्तित्व को लेकर बेहद आक्रामक थे। 2015 में दंतेवाड़ा जिले के जगरगुंडा से 12 किलोमीटर दूर चिंतलगुफा के समीप सीआरपीएफ एवं पुलिस का संयुक्त ऑपरेशन चल रहा था एक माह के ऑपरेशन के पश्चात जब जवानों का कैंप में वापसी हो रहा था जिसमें 60 लोगों की टुकड़ियों में कृष्ण कुमार नेताम भी शामिल था। इसी बीच टुकड़ी को अलग-थलग पाकर नक्सली जिनकी संख्या लगभग 300 से 400 के बीच थी अचानक सीआरपीएफ की टुकड़ी पर हमला कर दिया। जिसमें 14 जवान शहीद हुए थे‌। नक्सलियों के इस हमले में कृष्ण कुमार नेताम गंभीर रूप से घायल हुआ था। बाद में उनका प्राथमिक उपचार चिंतल गुफा सीआरपीएफ कैंप में हुआ तत्पश्चात नाजुक स्थिति को देखते हुए उन्हें रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल रायपुर रेफर किया गया जहां छह माह इलाज के बाद उनकी जान बच पाई थी। जान तो किसी तरह बच गई किंतु वह कमर में गोली लगने की वजह से शारीरिक रूप से कमजोर हो चुके थे जिसके चलते उन्होंने सीआरपीएफ से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले लिया। उन्हें देश की सेवा से अलग होने का मलाल था उसके पश्चात उन्होंने सरपंच बनकर गांव की सेवा करने का ठान लिया तथा वे 2020 के पंचायत चुनाव में ग्राम पंचायत कोंगरा में सरपंच पद पर चुनाव लड़ा तथा काफी मतों से जीत कर अब वह गांव के लोगों की सेवा कर रहा है। कृष्ण कुमार नेताम ने बताया कि उस मुठभेड़ का चलचित्र अभी भी आंखों के सामने चलता है जिसमें उनके कई साथी शहीद हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि सीमा पर दुश्मनों से राइफल लेकर लड़ने के समय जवानों में काफी जोश रहता है वैसा ही जोश उनके पास था जब उनको गोली लगी तथा खून बह रहा था किंतु वे रायफल लेकर उस वक्त भी नक्सलियों से लड़ रहे थे। जब उन्होंने देखा कि उनके शरीर पर खून की धारा बह रही है तब उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें गोली लगी है तत्पश्चात उन्होंने स्वयं के बनियान को फाड़कर कमर में लगी गोली जहां से खून बह रहा था उस पर पट्टी बांधकर बहते खून को रोकने का प्रयास किया तत्पश्चात सीआरपीएफ का दूसरा दल वहां पहुंचा तब उन्हें एवं शहीदों के शवों को कैंप ले जाया गया। उसके पश्चात उन्हें क्या हुआ यह होश नहीं था बाद में पता चला कि उन्हें रायपुर रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है। वह छह महीना अस्पताल में ही बिस्तर पर ही रहे। उसके बाद वापस लौट कर शरीर कमजोर पड़ने की स्थिति में है ऐच्छिक सेवानिवृत्ति लिया और देश सेवा नहीं कर पाने का मलाल उनके मन में था जिसे अब सरपंच बनकर गांव की सेवा कर पूरी करना चाहता है।

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