
रहस्य से भरा डोंगरगढ़ के मंदिर का राज” जुड़ी है बाइस सौ साल पुरानी प्रेम कहानी…मंदिर के बारे में जाने रोचक तथ्य…!
यूं तो देश में हजारों लाखों देवी मां के मंदिर है, लेकिन क्या आप जानते है कि देश में एक मंदिर ऐसा भी है जो लगभग 2200 पुरानी एक प्रेम कहानी से जुड़ा हुआ है। दरअसल छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में पहाड़ी पर मां बम्लेश्वरी का भव्य मंदिर स्थित है। डोंगरगढ़ में 16 सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर मां बम्लेश्वरी का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं, जिन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। मां बम्लेश्वरी के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर तक पहुचने के लिए पहाड़ी पर बनी 1000 सीढ़िया चढ़नी होती है. बड़ी बम्लेश्वरी के समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है. डोंगरगढ़ में प्रतिवर्ष शरद नवरात्रि तथा चैत्र नवरात्रि के समय विशाल मेला लगता है, जिसमे लाखो की संख्या में श्रद्धालु माँ बम्लेश्वरी के दर्शन करने आते है.

डोंगरगढ़ में स्थित प्रज्ञागिरि पहाड़ी पर बौद्ध प्रतिमा दर्शनीय स्थलों में है
कामाख्या नगरी व डूंगराख्य नगर नामक प्राचीन नामो से विख्यात डोंगरगढ़ में स्थित खंडहर एवं स्तंभो की रचना शैली के आधार पर शोधकर्ताओ ने इसे कलचूरी काल का एवं बारहवी से तेरहवी शताब्दी का बताया है. मूर्तियो के आभूषण, उनके वस्त्र और मस्तक पर लंबे बालो की सूक्ष्म अवलोकन से गोंड कला के प्रभाव का पता चलता है. इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है की 16 वीं शताब्दी तक डूंगराख्य नगर, गोंड राजाओ के आधिपत्य में था. गोंड राजा पर्याप्त सामर्थ्यवान थे, जिसके कारण उनके राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित थी. यहाँ की प्रजा भी सम्पन्न थी जिसके कारण मूर्ति शिल्प कला तथा गृह निर्माण का उपयुक्त वातावरण था.
जनमान्यतानुसार अब से 2200 वर्ष पूर्व डोंगरगढ़ का प्राचीन नाम कामख्या नागरी में राजा वीरसेन का शासन था, जो की निः संतान था. पुत्ररत्न की प्राप्ति हेतु उसने महिषमती पूरी (म.प्र.) में स्थित शिवाजी और भगवती दुर्गा की उपासना की, जिसके फलस्वरूप रानी को एक वर्ष पश्चात पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम मदनसेन रखा गया. भगवान शिव एवं माँ दुर्गा की कृपा से राजा वीरसेन को पुत्र प्राप्त हुआ इस भावना से प्रेरित होकर उसने कामख्या नगरी में माँ बम्लेश्वरी (जगदम्बे महेश्वर) का मंदिर बनवाया, राजा मदनसेन प्रजा हितैसी शासक थे, जिनका एक पुत्र हुआ राजा कामसेन इन्ही के नाम पर कामख्या नगरी का नाम कामावाती पूरी रखा गया.

कामकंदला और माधवनल की प्रेमकथा डोंगरगढ़ में प्रसिद्ध है
कामकंदला और माधवनल की प्रेमकथा भी डोंगरगढ़ में प्रसिद्ध है, कामकंदला राजा कामसेन के राजदरबार की नर्तकी थी,वहीं माधवनल एक निपुण संगीतज्ञ था. एक बार राजा कामसेन के दरबार में नृत्य का आयोजन हुआ, इससे राजा अत्यंत प्रभावित हुये और उसने अपनी मोतियो की माला माधवनल को भेंट की, माधवनल ने राजा से प्राप्त मोतियो की माला कामकंदला को दे दिया जिससे राजा क्रोधित होकर माधवनल को राज्य से निकाल दिया. परंतु माधवनल राज्य से बाहर ना जाकर डोंगरगढ़ की पहाड़ी की एक गुफा में छुप गया क्योकि इस बीच कामकंदला और माधवनल के बीच प्रेम प्रसंग अंकुरित हो चुका था.

राजा वीरसेन, उज्जयिनी के शासक विक्रमादित्य के समकालीन थे
दूसरी तरफ राजा कामसेन का पुत्र मदनादित्य, पिता के स्वभाव के विपरीत तथा विलासी था. वह कामकंदला को मन ही मन चाहता था और उसे पाना चाहता था. मदनादित्य के डर से कामकंदला उससे प्रेम का नाटक करने लगी. मदनादित्य को शक होने पर कामकंदला को उसके घर में नजरबंद कर दिया. माधवनल और कामकंदला, माधवी के माध्यम से पत्र व्यवहार करने लगे किन्तु एक दिन मदनादित्य ने माधवी को पत्र ले जाते पकड़ लिया जिसने सारा सच उगल दिया. मदनादित्य ने कामकंदला को राजद्रोह के आरोप में बंदी बनाया और माधवनल को पकड़ने सिपाहियो को भेजा,सिपाहियो को आता देख माधवनल पहाड़ी से निकल भागा और उज्जैन (म.प्र.) जा पहुंचा. उस समय उज्जैन में राजा विक्रमादित्य का शासन था.
राजा विक्रमादित्य बहुत प्रतापी और दयावान शासक था. राजा विक्रमादित्य ने माधवनल की करुणा कथा सुन उसने माधवनल की सहायता करने की सोचकर अपनी सेना के साथ कामख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया. कई दिनो के युद्ध पश्चात राजा विक्रमादित्य विजयी हुये एवं मदनादित्य, माधवनल के हाथो मारा गया. इस घनघोर युद्ध में वैभवशाली कामख्या नगरी पूर्णत: ध्वस्त हो गई. इस प्रकार चारो ओर डोंगर (पर्वत) ही बचे रहे और डूंगराख्य नगर की पृष्ठ भूमि तैयार हुई.

कामकंदला ने ताल में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये
युद्ध पश्चात राजा विक्रमादित्य द्वारा माधवनल और कामकंदला की प्रेम परीक्षा लेने के लिए यह झूठ फैलाई गई की युद्ध में माधवनल वीरगति को प्राप्त हुआ, इससे आहत होकर कामकंदला ने ताल (तालाब) में कूदकर अपने प्राण त्याग दिया. वह तालाब आज भी कामकंदला के नाम से विख्यातहै. कामकंदला के मृत्यु उपरांत माधवनल ने भी अपने प्राण त्याग दिये.
अपना प्रयोजन सिद्ध होते न देख राजा विक्रमादित्य ने माँ बम्लेश्वरी की घोर आराधना की और अपने प्राण त्यागने को तत्पर हो गए, तब देवी ने प्रकट होकर अपने भक्त को आत्मघात करने से रोका. तद-पश्चात राजा विकरादित्य ने माधवनल और कामकंदला के जीवन के साथ यह वरदान भी मांगा की माँ बगुला मुखी अपने जागृत रूप में प्रतिष्ठित हो, तब से माँ बगुला मुखी (बम्लेश्वरी) अपभ्रंश बमलाई देवी साक्षात महाकाली के रूप में डोंगरगढ़ में विराजमान है.

सन 1964 में खैरागढ़ रियासत के भूतपूर्व नरेश श्री राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह द्वारा मंदिर के संचालन का भार माँ बम्लेश्वरी ट्रस्ट कमेटी को सौपा गया था. यहाँ नवरात्रि के समय प्रतिवर्ष श्रद्धालु द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कलश विशेष रूप से दर्शनीय होते है.
डोंगरगढ़ कैसे पहुचे –
वायुमार्ग – स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट रायपुर (150 कि.मी.) निकटतम हवाई अड्डा है, जो मुंबई,दिल्ली, नागपुर, कोलकाता, विशाखापटनम, बेंगलोर एवं चेन्नई आदि अन्य एयरपोर्ट से जुड़ा है.
रेलमार्ग – हावड़ा–मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर डोंगरगढ़ समीपस्थ रेल्वे जंक्सन है.
सड़कमार्ग – रायपुर से 100 कि.मी. कि दूरी पर तथा राजनन्दगाँव से 36 कि.मी. की दूरी पर डोंगरगढ़ स्थित है. राजनन्दगाँव से बस, टैक्सी एवं निजी वाहन से जाया जा सकता है.