Chhattisgarh Bastar” गुजरात से जगदलपुर पहुंचे 2 दिव्यांग, सैकड़ों लोगों के चेहरे पर लौटाई मुस्कान… जानिए कैसे
जगदलपुर शहर में रोटरी क्लब की ओर से नि:शुल्क प्रत्यारोपण कैंप का आयोजन किया गया है. यहां गुजरात से आए विशेषज्ञ और कारीगर कृत्रिम हाथ-पैर तैयार कर रहे हैं. इसे बस्तर के शहरी और ग्रामीण अंचलों से पहुंचे दिव्यांग जनों को नि:शुल्क उपलब्ध करा रहे हैं.
इस शिविर में ऐसे भी 2 कारीगर हैं, जो खुद बचपन से पोलियोग्रस्त हैं, लेकिन दोनों देश के लाखों दिव्यांगों के जिंदगी को नई राह दे रहे हैं. गुजरात के जामनगर निवासी कांजी भाई और दिलीप परमार दोनों जन्म से पोलियोग्रस्त हैं और पिछले 20 सालों से कृत्रिम हाथ-पैर बना रहे हैं. यह दोनों अपने जैसे ही अन्य दिव्यांगों को कृत्रिम हाथ-पैर प्रदान कर उनका जीवन आसान करने में जुटे हैं. जब कोई दिव्यांग उनके बने उपकरण के माध्यम से चलने लगता है, तब उन्हें काफी खुशी होती है.
200 से ज्यादा दिव्यांगों को मिला कृत्रिम हाथ-पैर
इन दोनों कारीगरों के अलावा इस शिविर में हाथ पर बनाने वाले विशेषज्ञ भी पहुंचे हुए हैं, जो अब तक बस्तर जिले के 200 से ज्यादा दिव्यांग जनों को कृत्रिम हाथ पैर बनाकर नि:शुल्क उपलब्ध कराकर उनके चेहरे पर खोई मुस्कान लौटा चुके हैं. इसके लिए बस्तर के इन दिव्यांग जनों ने उनका तहे दिल से धन्यवाद किया है. पहली बार छत्तीसगढ़ के बस्तर में आयोजित नि:शुल्क प्रत्यारोपण कैंप में सैकड़ों दिव्यांगजनों ने रजिस्ट्रेशन कराया है. सिर्फ बस्तर संभाग से ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों से दिव्यांगजन और विभिन्न हादसों में अपने हाथ-पैर गंवा चुके लोग यहां पहुंच रहे हैं.
5 दिनों के लिए आयोजित इस कैंप में बकायदा गुजरात के जामनगर से पहुंचे दो पोलियो ग्रस्त व्यक्तियों की ओर से कृत्रिम हाथ-पैर को तैयार किया जा रहा है. उनका कहना है कि वह बचपन से पोलियो ग्रस्त हैं और इसकी तकलीफ झेलते आ रहे हैं, लेकिन देश में रहने वाले अन्य दिव्यांग जनों को या फिर हादसे में अपना हाथ-पैर गंवा चुके लोगों को इस दिव्यांगता का दर्द न झेलना पड़े, इसके लिए उन्होंने गुजरात के डॉक्टर विजय कुमार के सहयोग से देश में दिव्यांगों के लिए कृत्रिम हाथ-पैर बनाने का प्रशिक्षण लिया. इसके बाद डॉ. विजय कुमार ने इन्हें रोजगार मुहैया कराया और पिछले 20 सालों से वे देश के सैकड़ों गांवों और दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले दिव्यांगों के लिए कृतिम अंग बनाकर खुशियां बांट रहे हैं.
दो लाख से अधिक कृत्रिम हाथ-पैर कर चुके हैं तैयार
उन्होंने बताया कि शिविर में किसी हादसे के बाद या जन्मजात ऐसे भी लोग आते हैं, जिनके दोनों हाथ-पैर नहीं होते हैं, ऐसे लोगों को अपने हाथों के बस चलता देख मन को टिस होती है और आंसू निकल आते हैं, जब हाथ या पैर लगाए जाने के बाद वह सामान्य लोगों की तरह अपने पैरों पर चलने और हाथों से काम करते दिखते हैं, तो दिल को काफी सुकून मिलता है. उन्होंने बताया कि अब तक उन्होंने दो लाख से अधिक कृत्रिम हाथ-पैर तैयार किए हैं और देश के कोने-कोने में दिव्यांग जनों को इसे नि:शुल्क मुहैया करा रहे हैं. बस्तर में भी बड़ी संख्या में दिव्यांगजन इस कृत्रिम अंग का लाभ ले रहे हैं.