गोंचा पर्व में आज नेत्रोत्सव विधान पूरा किया जाएगा
27 दिनों तक चलने वाले बस्तर के गोंचा पर्व में गुरुवार को नेत्रोत्सव विधान पूरा किया जाएगा। इस विधान के बाद भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा, और बलभद्र दिव्य दर्शन देंगे। चनंद जात्रा विधान के बाद से प्रभु अनसर काल में थे, इसलिए 15 दिनों तक इनका दर्शन वर्जित माना जाता था। आज दर्शन देने बाहर आएंगे। इधर, 1 जुलाई को रथ परिक्रमा भी की जाएगी। यह परंपरा करीब 615 सालों से चली आ रही है।
भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के विग्रहों को मंदिर के गर्भगृह के सामने स्थापित किया जाएगा। यहीं आकर भक्त दर्शन कर सकेंगे। 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के विशेषज्ञ कर्मकांडी पंडित नेत्रोत्सव विधान को संपन्न करवाएंगे। देव विग्रहों का श्रृंगार किया जाएगा। गोंचा पर्व समिति के सदस्यों ने बताया कि देव स्नान ज्येष्ठ पूर्णिमा, चंदन जात्रा विधान के बाद 15 दिनों तक प्रभु का दर्शन भक्त नहीं कर पाते हैं। इसके बाद नेत्रोत्सव विधान के समय जब भक्तों को प्रभु दर्शन देते हैं तो यही आध्यात्मिक मिलन ही नेत्रोत्सव कहलाता है।
रथ निर्माण का काम पूरा
बस्तर में 27 दिनों तक चलने वाले गोंचा पर्व के लिए रथ निर्माण का काम लगभग पूरा हो गया है। साज-सज्जा कर 1 जुलाई को भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के विग्रहों के साथ रथ की नगर परिक्रमा करवाई जाएगी। यह रथ 20 फीट लंबा और करीब 14 फीट चौड़ा बनाया गया है। साल की लकड़ी से रथ का निर्माण हुआ है। वहीं सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार गोंचा पर्व के लिए रथ बनाने की जिम्मेदारी बेड़ा उमरगांव के ग्रामीणों की होती है।
हर साल इस गांव के ग्रामीण महज 7 से 8 दिनों में ही रथ निर्माण का काम पूरा कर लेते हैं। ऐसी लोक मान्यता है कि जब देवी सुभद्रा श्री कृष्ण से द्वारिका भ्रमण की इच्छा जाहिर करतीं हैं, तब श्री कृष्ण और बलराम अलग-अलग रथ में बैठकर उन्हें द्वारिका का भ्रमण करवाते हैं। इन्हीं की स्मृति में हर साल ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।
इस दिन होंगे यह आयोजन
30 जून को नेतृत्व पूजा विधान होगा।
1 जुलाई को श्रीगोंचा रथ यात्रा पूजा विधान।
4 जुलाई को अखंड रामायण का पाठ होगा।
5 जुलाई को हेरापंचमी पूजा विधान सम्पन्न किया जाएगा।
6 जुलाई को निःशुल्क सामूहिक उपनयन संस्कार और छप्पन भोग का आयोजन किया जाएगा।
9 जुलाई को बाहुड़ा गोंचा पूजा विधान का आयोजन होगा।
10 जुलाई को देवशयनी पूजा विधान होगा।
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