अनोखा पर्व है अक्षय तृतीया अक्ती बिना पोथी पतरा देखे इस दिन होती है शादी

राजेन्द्र देवांगन
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अक्षय तृतीया अक्ती बिना पोथी पतरा देखे इस दिन होती है शादी

महेंद्र मिश्रा,रायगढ़/वैशाख शुक्ल तृतीया की महिमा मत्स्य, स्कंद, भविष्य, नारद पुराणों व महाभारत आदि ग्रंथो में है । इस दिन किये गये पुण्यकर्म अक्षय (जिसका  क्षय न हो) व अनंत फलदायी होते हैं, अत: इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहते है । यह सर्व सौभाग्यप्रद है ।*वैशाख मास की तृतीया को चन्दनमिश्रित जल तथा मोदक के दान से ब्रह्मा तथा सभी देवता प्रसन्न होते हैं | देवताओं ने वैशाख मास की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा है |

इस दिनअन्न-वस्त्र-भोजन-सुवर्ण और जल आदि का दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है | इसी तृतीया के दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय हो जाता है और दान देनेवाला सूर्यलोक को प्राप्त करता है | इस तिथि को जो उपवास करता है वह ऋद्धि-वृद्धि और श्री से सम्पन्न हो जाता है |
देशभर में आज अक्षय तृतीया अर्थात अक्ती धूमधाम से मनाया जा रहा है। ‘अक्ती’ छत्तीसगढ़ विशेषता से जुड़ा अनोखा पर्व है। इस पर्व को लेकर प्रदेशवासियों में अलग ही उत्साह और उमंग रहता है। इसी दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था।

अक्षय तृतीया अर्थात अक्ती के दिन गांव-गांव में ही नहीं, भिन्न-भिन्न समाजों के महाधिवेशनों में आदर्श विवाह की धूम रहती है। दूसरी ओर बच्चों के लिए यह पर्व बेहद खास होता है। छत्तीसगढ़ में मान्यता के अनुसार बच्चे गुड्डे-गुड़ियों की शादी कर पर्व को हर्षोंउल्लास के साथ मनाते हैं। इसे लेकर प्रदेश में अलग ही धूम रहती है।बताते चले कि अक्ती के दिन बच्चे अपने मिट्टी से बने गुड्डे- गुड़ियों अर्थात पुतरा-पुतरी का ब्याह रचाते हैं।

कल जिन बच्चों को ब्याह कर जीवन में प्रवेश करना है, वे परंपरा को इसी तरह आत्मसात करते हैं। बच्चे, बुजुर्ग बनकर पूरी तन्मयता के साथ अपनी मिट्टी से बने बच्चों का ब्याह रचाते हैं। इसी तरह वे बड़े हो जाते है और अपनी शादी के दिन बचपन की यादों को संजोए हुए अक्ती के दिन मंडप में बैठते है। अक्ती के दिन महामुहूर्त होता है। बिना पोथी-पतरा देखे इस दिन शादियां होती हैं

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