छत्तीसगढ़ की बोहार भाजी आखिर मंहगी क्यों
राजेश देवांगन, कोरबा छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां मैदानी और जंगली इलाके ज्यादा है. लिहाजा सब्जीयों में भाजी का भी खूब इस्तेमाल होता है. आम भाजीयों में पालक, चौलाई, मैथी और लाल भाजी तो खाए ही जाते है. साथ में कई तरह की और लोकल भाजी यहां लोक प्रिय है और इन्ही में से एक है बोहार भाजी.
बोहार भाजी कई मामलो में खास है. इसकी सबसे बड़ी खासियत इसका बेमिसाल स्वाद है. आप जान कर हैरान होंगे कि ये भाजी बाजार में 300,रुपये किलो तक बिकती है. इसकी वजह ये है कि बोहार भाजी साल भर में कुछ दिनो के लिये ही मिलती है. हर साल मार्च अप्रेल माह में ही कभी कभी ये बाजार में पहुंचती है. इसके स्वाद के लिये लोग उंची कीमत चुकाने को भी तैयार रहते हैं.
बोहार के उंचे पेड़ पर मिलती है. ये भाजी दरअसल बोहार की कलियां और कोमल पत्ते होते है, जो कुछ दिनो में फूल बन जाते है. इन्हें फूल बनने से पहले ही तोड़ना होता है. तभी ये खाने के काम आ पाती है. उंचे पेड़ की पतली डालीयों तक पहुंच कर सिर्फ कलीयों को अलग से तोड़ना भी आसान नहीं है. इसमें खतरा तो रहता ही है. जानकारी भी जरूरी होती है. इसलिये बोहार की भाजी तोड़ना हर किसी के बस की बात भी नहीं होती.
वैसे बोहार कोई ऐसा पेड़ भी नहीं है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ में मिलता हो. ये कई प्रदेशो में मिलता है और अलग अलग नाम से जाना जाता है. इसके फलो का अचार भी बनाया जाता है. बोहार का बाॅटिनिकल नाम कोर्डिया डिकोटोमा है. अंग्रेजी में इसे बर्ड लाईम ट्री, इंडियन बेरी, ग्लू बेरी भी कहा जाता है. भारत के अन्य राज्यो में इसे, लसोड़ा, गुंदा, भोकर जैसे नामो से जाना जाता है, लेकिन इलकी भाजी खाने का चलन सिर्फ छत्तीगढ़ में ही है.
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