छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध सुफी गायक राकेश शर्मा ने पत्रकारों के बीच खुलकर कलाकारो का दर्द उकेरा
कलाकार बहुत स्वाभिमानी होता है – राकेश शर्मा
राजिम। कलाकार बहुत स्वाभिमानी होता हैं। कोविड 19 में लाॅकडाउन के बीच उन्होंने दुख भरा दिन देखा लेकिन विचलित नहीं हुआ।
सकारात्मक हो तो आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता हैं। कला को आकार देने वाला ही कलाकार होता हैं।
राजिम माघी पुन्नी मेला के अवसर पर महोत्सव मंच में प्रस्तुति देने पहुंचे प्रदेश के प्रसिद्ध सूफी गायक राकेश शर्मा ने कही।
उन्होंने पत्रकारों के साथ चर्चा करते हुए कहा कि दस साल की उम्र में गायन शुरू कर दिया था। दादा राजाराम को गाते हुए देखकर उनसे गायन की बारिकी को सीखा।
1996 में मंचीय प्रस्तुति से प्रभावित होकर दिलीप षड़ंगी ने मुझे प्रोत्साहित किया और स्टेज प्रोग्राम का कांरवा चला पड़ा।
अभी तक 700 से अधिक कार्यक्रम दे चुका हूॅ।
लोग पूछते हैं सूफी गायन क्या हैं ? मैं कहता हूॅं यह खुली किताब हैं गायन में जो ईश्वर का दर्शन करा दें इससे बड़ा उदाहरण मुझे और कुछ नहीं मिलता। सबसे पहले मुझे उड़ीसा में मौका मिला। सन् 2002 में गाबो अउ गवाबों गीत हिट हुआ।
अब्बड़ मया करथों में फिल्म फेयर अवार्ड मिला। सब टीवी पर प्रस्तुती देना मेरे लिए फक्र का विषय रहा।
मेरा सबसे प्रिय गीत झन कर गरब गुमान रे हंसा… आज भी वहीं गुनगुनाता हूॅं।
छत्तीसगढ़ी में सुन्दरकाण्ड की प्रस्तुती देना मेरे लिए महत्वपूर्ण क्षण रहा हैं।
पत्नी निशा के अलावा दो बिटियाॅं अनन्ता शर्मा, आन्या शर्मा, पुत्र राहत शर्मा गायन ने शानदार आवाज देते हैं।
राकेश शर्मा ने आगे बताया कि वर्तमान में कलाकारों के लिए प्लेटफार्म सोशल मीडिया ने तैयार कर दिया।
जब मैं संगीत सीखा उस समय प्रचार -प्रसार का कोई साधन नही था लेकिन आज यूट्यूब, फेसबुक, इन्सटाग्राम, ट्वीटर, वाट्सअप के माध्यम से कई नवोदित कलाकारों को मंच मिल रहा हैं।
कलाकार व्यवहारिक एवं गुरू भक्त होते थे लेकिन आज वह देखने को नहीं मिलता। उन्होंने बताया कि राजिम महोत्सव, चक्रधर महोत्सव, राज्योंत्सव के अलावा राज्य स्तरीय कार्यक्रमों में प्रस्तुती देने का अनुभव मुझे प्रोत्साहित करती हैं।
राजिम माघी पुन्नी मेला में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य के कलाकारों को अवसर प्रदान कर कला की उत्थान की दिशा में अच्छी सोच के साथ काम चली रही हैं।
उन्होंने आगे कहा कि राजिम हमारे देश की महत्वपूर्ण तीर्थस्थल हैं यहां आकर आत्मिक प्रसन्नता हुई।
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