रायपुर, राजधानी रायपुर के प्रतिष्ठित पचपेड़ी नाका का नाम बदलकर ‘मोदी बाबा धाम’ रखने के प्रस्ताव पर शहर की राजनीति में उबाल आ गया है। इस मुद्दे ने न सिर्फ स्थानीय नागरिकों के बीच असंतोष पैदा किया है, बल्कि सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों ने भी नगर निगम प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
मेयर मीनल चौबे का बयान — “यह अफवाह है”
नाम परिवर्तन की खबरों के बीच रायपुर नगर निगम की महापौर मीनल चौबे ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि, “यह अफवाह पूर्णतः असत्य, भ्रामक और आधारहीन है। नगर निगम ने पचपेड़ी नाका का नाम बदलने की कोई आधिकारिक प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की है। नागरिकों से अपील है कि अफवाहों पर ध्यान न दें।”
हालांकि, नामकरण को लेकर विवाद इसलिए भी गहराया क्योंकि नगर निगम जोन-10 कार्यालय में नागरिकों से 11 जुलाई को सुझाव और आपत्तियां मांगी गई हैं, जिसकी सूचना पत्रिका “हरिभूमि” में भी प्रकाशित की गई है। यह प्रक्रिया स्थानीय निवासियों और संगठनों के लिए भ्रम और असमंजस की स्थिति पैदा कर रही है।
50 से ज्यादा आपत्तियां दर्ज, विरोध के सुर तेज
सूत्रों के अनुसार, अभी तक लगभग 50 आपत्तियां नगर निगम कार्यालय में दर्ज हो चुकी हैं। नागरिकों का कहना है कि पचपेड़ी नाका एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसका सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व है। ऐसे में उसका नाम बदलना स्थानीय अस्मिता पर सीधा आघात है।
छत्तीसगढ़ी संगठनों ने खोला मोर्चा, भाजपा पर सांस्कृतिक हमला करने का आरोप
छत्तीसगढ़ जोहार पार्टी, छत्तीसगढ़ी समाज और छत्तीसगढ़ी क्रांति सेना ने इस मुद्दे पर मोर्चा खोलते हुए नगर निगम जोन-10 कार्यालय का घेराव कर दिया। इन संगठनों का आरोप है कि यह कदम “स्थानीय संस्कृति और पहचान मिटाने की साजिश” का हिस्सा है।
प्रदर्शन के दौरान छत्तीसगढ़ी क्रांति सेना के कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी करते हुए जोन अध्यक्ष और निगम प्रशासन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। आंदोलनकारियों ने साफ कहा कि यदि यह प्रस्ताव वापस नहीं लिया गया तो वे उग्र आंदोलन करेंगे।
राजनीतिक हलकों में बयानबाजी तेज
इस मुद्दे पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी नगर निगम पर हमला बोलते हुए कहा कि, “यह छत्तीसगढ़ की अस्मिता और परंपराओं के साथ खिलवाड़ है। भाजपा सरकार और नगर निगम सांस्कृतिक आक्रमण की राजनीति कर रहे हैं।”
दूसरी ओर, भाजपा नेताओं का कहना है कि अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है और “जनता की भावनाओं का सम्मान किया जाएगा।”
विशेषज्ञों की राय — ‘नामकरण प्रक्रिया में पारदर्शिता आवश्यक’
शहरी विकास मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी ऐतिहासिक स्थल या प्रमुख चौराहे का नाम बदलने से पहले जनता की राय और पारदर्शी प्रक्रिया अनिवार्य है। यदि जनता की भावनाओं को दरकिनार कर नामकरण किया जाता है तो यह सामाजिक असंतोष को जन्म देगा।
क्या कहता है कानून?
नगर पालिका अधिनियम के तहत, किसी भी सड़क, चौक, नाका या सार्वजनिक स्थल का नाम परिवर्तन करने से पूर्व जनसुनवाई और आपत्तियों का निस्तारण अनिवार्य है। इसके बाद नगर निगम की आमसभा में प्रस्ताव पारित कर राज्य शासन से अनुमोदन लिया जाता है।
इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और जन भावनाओं का सम्मान सर्वोपरि है।
अब आगे क्या?
नगर निगम जोन-10 में 11 जुलाई को प्रस्तावित आपत्ति व सुझाव प्रक्रिया के बाद मामला आमसभा की बैठक में जाएगा। फिलहाल इस मुद्दे ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर गरमाहट पैदा कर दी है।
अब देखना यह होगा कि नगर निगम प्रशासन और सरकार जनता की भावनाओं का कितना सम्मान करती है।