छत्तीसगढ़ में जनसंख्या का बढ़ता दबाव: स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार बनीं बड़ी चुनौतियाँ

राजेन्द्र देवांगन
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रायपुर | वर्ल्ड पॉपुलेशन डे विशेष: तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने छत्तीसगढ़ में विकास की दिशा और गति दोनों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। वर्ल्ड पॉपुलेशन डे के अवसर पर एक बार फिर यह चिंतन का विषय बना है कि राज्य की बढ़ती आबादी को संसाधनों के अनुपात में कैसे संतुलित किया जाए।

वर्ष 2024 तक छत्तीसगढ़ की अनुमानित जनसंख्या 3.08 करोड़ तक पहुंच चुकी है, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा व्यवस्था और रोजगार के अवसरों पर अभूतपूर्व दबाव देखा जा रहा है।

ग्रामीण और जनजातीय जनसंख्या का वर्चस्व

छत्तीसगढ़ की जनसंख्या संरचना में लगभग 30.6% हिस्सा जनजातीय समुदायों का है, जिनमें गोंड, हल्बा, उरांव, मुरिया, बिआर और कंवर जैसी प्रमुख जनजातियाँ शामिल हैं। राज्य की लगभग 76% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जबकि शहरी आबादी का प्रतिशत महज 24% है।

राज्य का जनसंख्या घनत्व 191 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, जो कि राष्ट्रीय औसत (464 व्यक्ति/किमी²) से काफी कम है, लेकिन बढ़ती आबादी के अनुपात में सेवाओं का विस्तार न होने से समस्याएं गंभीर होती जा रही हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार राज्य को कम से कम 33,000 डॉक्टरों की आवश्यकता है, लेकिन मौजूदा संख्या इससे कहीं पीछे है। राजधानी रायपुर को छोड़कर शेष जिलों में सुपर स्पेशलिटी सुविधाएं लगभग नगण्य हैं। ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में आज भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी बनी हुई है।
एक डॉक्टर पर 15,000 से ज्यादा मरीज निर्भर होना स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति को दर्शाता है।

शिक्षा में असंतुलन और गिरता स्तर

छत्तीसगढ़ की 30,700 प्राथमिक शालाओं में औसतन 21.84 विद्यार्थी प्रति शिक्षक हैं, जबकि आदर्श अनुपात 30:1 होना चाहिए। पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में यह अनुपात 26.2 है। वहीं, आदिवासी और दूरदराज़ के इलाकों में ड्रॉपआउट दर अब भी चिंताजनक बनी हुई है।

हाल के वर्षों में राज्य में कई सरकारी स्कूलों को बंद भी किया गया है, जिससे शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता पर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

डिजिटल अंतर: ग्रामीण क्षेत्र पिछड़ रहे

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के हालिया सर्वे के अनुसार छत्तीसगढ़ के 94% से अधिक युवा मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। शहरी क्षेत्रों में इंटरनेट की बेहतर पहुंच है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 3.2% परिवारों के पास ही इंटरनेट कनेक्टिविटी है। इससे डिजिटल शिक्षा में भारी असमानता देखी जा रही है

रोजगार और पलायन: बढ़ती चिंता

राज्य में ग्रामीण युवाओं के बीच कौशल विकास की कमी और स्थानीय रोजगार के अवसरों की अनुपलब्धता के कारण पलायन की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। सरकार की कई स्वरोजगार योजनाएं लागू तो की गईं, लेकिन उनका प्रभाव सीमित रहा है।

वहीं, पिछले वर्षों में न तो पर्याप्त सरकारी नौकरियों की भर्ती हुई और न ही उच्च शिक्षा की दिशा में विशेष प्रगति दर्ज हुई।

प्रमुख समस्याएँ एक नजर में:

एक डॉक्टर पर 15,000+ मरीजों का दबाव

प्राथमिक व उच्च शिक्षा में संसाधनों की कमी

जल, अपशिष्ट प्रबंधन और ट्रैफिक जैसे शहरी संकट

ग्रामीण-शहरी डिजिटल डिवाइड

सरकारी स्कूलों की बंदी और नई भर्तियों में ठहराव

हालही में कई सरकारी स्कूलों को बंद कराया गया बहुत से स्कूल शिक्षक की नौकरी गई हैं जिससे उनके घर की अर्थ व्यवस्था में भी प्रभाव पड़ा हैं। सरकारी नौकरियां तो जैसे लोगों का सपना ही बन के रह गया पेपर की तैयारी तो करते है पर जितनी जनसंख्या उससे कम वेकेंसी ऐसे में लोग अपने नौकरी के चलते परेशान है ।

निष्कर्ष: अवसर में बदले जनसंख्या वृद्धि

छत्तीसगढ़ के पास अपार प्राकृतिक संसाधन, मजबूत सांस्कृतिक विरासत और उत्साही युवा शक्ति है। लेकिन यदि स्वास्थ्य, शिक्षा, डिजिटल सुविधाएं और रोजगार के मोर्चे पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह जनसंख्या लाभ के बजाय एक चुनौती बन सकती है।

वर्ल्ड पॉपुलेशन डे के अवसर पर यह सोचने का समय है कि केवल आंकड़ों की बात नहीं, अब गुणवत्ता युक्त, समावेशी और टिकाऊ विकास की रणनीति पर गंभीरता से काम करना अनिवार्य हो गया है।

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