मध्यप्रदेश में 9 साल से लंबित पदोन्नतियों पर संशय: कर्मचारी संगठनों ने उठाए सरकार पर गंभीर सवाल

Babita Sharma
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भोपाल – मध्यप्रदेश के हजारों शासकीय कर्मचारियों की वर्षों पुरानी पदोन्नति की उम्मीदें एक बार फिर अनिश्चितता में डगमगाने लगी हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा हाल ही में पदोन्नति प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा के बावजूद अभी तक कोई ठोस कार्यवाही न होने से कर्मचारी संगठनों में गहरा असंतोष है। मंत्रालय कर्मचारी सेवा संघ सहित कई संगठनों ने सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए इसे कर्मचारियों के साथ एक बार फिर “विश्वासघात” बताया है।

कर्मचारियों की मांग: बैकडेट से मिले पदोन्नति और वरिष्ठता

मंत्रालय कर्मचारी सेवा संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक और कार्यकारी अध्यक्ष राजकुमार पटेल ने स्पष्ट किया है कि सरकार को वर्ष 2016 की स्थिति को आधार मानकर पदोन्नति देनी चाहिए। जिस कर्मचारी को जिस दिनांक से पदोन्नति का हक था, उसे उसी दिन से पदोन्नत मानते हुए वरिष्ठता दी जाए, चाहे एरियर न मिले। उनका कहना है कि वरिष्ठता पीछे से देने पर ही पदोन्नति का वास्तविक लाभ मिल सकेगा।

संगठन ने मांग की है कि वर्ष 2016 से 2025 तक हर वर्ष के लिए अलग-अलग विभागीय पदोन्नति समितियों (DPC) की बैठकें आयोजित हों। इससे न केवल न्याय मिलेगा बल्कि जो कर्मचारी प्रमोशन के बिना रिटायर हो चुके हैं, उन्हें भी राहत दी जा सकेगी।

समयमान वेतनमान वाले कर्मचारियों की स्थिति भी चिंताजनक

संगठन ने यह भी मांग की है कि जिन कर्मचारियों को प्रथम, द्वितीय या तृतीय समयमान वेतनमान मिल चुका है लेकिन वे अब भी निम्न पदों पर कार्यरत हैं, उन्हें पदनाम भी उसी अनुरूप दिया जाए। ऐसा नहीं करने पर एक अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न होगी जिसमें उच्च वेतन पाने वाला कर्मचारी, कम वेतन पाने वाले अधीनस्थ के अधीन काम करेगा। इस विसंगति को समयमान के अनुरूप पदनाम देकर सुलझाया जा सकता है।

पदोन्नति की प्रक्रिया पर गोपनीयता से कर्मचारियों में गहरा संदेह

कर्मचारी नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री की घोषणा को 17 दिन बीत चुके हैं लेकिन न तो कैबिनेट में प्रस्ताव लाया गया और न ही विभागों में कोई सुगबुगाहट दिख रही है। इससे कर्मचारियों में संशय और अफवाहों का माहौल बन गया है। एक ओर मुख्यमंत्री प्रमोशन प्रक्रिया शुरू करने का संदेश दे रहे हैं, दूसरी ओर पूरी व्यवस्था रहस्यमय चुप्पी ओढ़े हुए है।

सवाल उठता है – रोक किसने लगाई थी?

कर्मचारियों ने यह भी गंभीर सवाल उठाया है कि जब हाईकोर्ट और सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) दोनों ही स्पष्ट कर चुके हैं कि उन्होंने पदोन्नति पर कोई रोक नहीं लगाई थी, तो फिर आखिर वह कौन-सी अदृश्य ताकत थी जिसने पूरे प्रदेश में वर्षों तक पदोन्नतियों को अवरुद्ध रखा? और अगर कोई वैधानिक कारण नहीं था, तो फिर कर्मचारियों को वर्षों तक इस अन्याय का खामियाजा क्यों भुगतना पड़ा?

मुख्यमंत्री की घोषणा क्या सिर्फ औपचारिकता थी?

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दो सप्ताह पहले बयान दिया था कि पदोन्नति की बाधाएं दूर कर ली गई हैं और जल्द ही कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर प्रमोशन शुरू किए जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि हजारों कर्मचारी बिना प्रमोशन के रिटायर हो चुके हैं और सरकार अब उनके साथ न्याय करेगी। परंतु अभी तक कोई आधिकारिक आदेश या प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।

संघ चेतावनी: और विलंब हुआ तो होगा आंदोलन

मंत्रालय कर्मचारी सेवा संघ ने चेताया है कि अगर शीघ्र ही सरकार इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाती है तो कर्मचारी संगठनों को आंदोलन की राह पकड़नी पड़ेगी। कर्मचारियों का धैर्य अब जवाब देने लगा है और उन्हें बार-बार आश्वासन देकर टालने की नीति अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

अब सरकार की ईमानदारी की होगी परीक्षा

पदोन्नति को लेकर कर्मचारियों में जो उत्साह मुख्यमंत्री के बयान के बाद बना था, वह अब निराशा और अविश्वास में बदल रहा है। सरकार यदि वास्तव में ईमानदार है तो उसे तत्काल कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।

आगे क्या होगा?

अब सारी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सरकार अपने वादे पर खरी उतरेगी या फिर एक बार फिर कर्मचारियों को टालने की राजनीति की जाएगी। कर्मचारियों के सब्र की परीक्षा अब समाप्त होने को है।

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ब्यूरो चीफ - मध्यप्रदेश