रायपुर। महिला थाने को महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी माना जाता है, वही अब लेन-देन, प्रशासनिक हस्तक्षेप और पीड़ितों को डराने-धमकाने के गंभीर आरोपों में घिरता जा रहा है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि थाने का भरोसा, अब भय में बदल चुका है।
थाना प्रभारी बदला, सिस्टम नहीं बदला
कुछ समय पूर्व दलाली और लेन-देन के चलते तत्कालीन महिला थाना प्रभारी को हटाया गया था। पर अफसोस, व्यवस्था वही की वही है। कथित रूप से अब भी थाने में ‘मामले निपटाने’ के नाम पर लेन-देन का सिलसिला जारी है। ऐसे में सवाल उठता है—क्या पद बदलने से मानसिकता बदलती है?
पीड़ितों पर दबाव, केस वापस लेने की धमकी
रायपुर महिला थाने में कई महिलाओं ने खुलकर आरोप लगाए हैं कि उन्हें काउंसलिंग की आड़ में दबाव डाला गया और मामला खत्म करने के लिए डराया गया। क्या ये वही थाने हैं जहाँ पीड़ित महिलाएं न्याय की आस लेकर आती हैं?
अग्रिम जमानत खारिज, फिर भी गिरफ्तारी नहीं!
एक बेहद संवेदनशील मामले में प्रशासन ने आरोपियों की अग्रिम जमानत खारिज कर दी थी, बावजूद इसके महिला थाना ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। उल्टा आरोप है कि आरोपी पक्ष से ‘समझौता’ कर मामले को दबा दिया गया। क्या अब न्याय भी सौदेबाज़ी का हिस्सा बन गया है?
जब रक्षक ही बन जाएं भक्षक
इन घटनाओं ने एक बार फिर उस भयावह सवाल को खड़ा कर दिया है—जब थाने में बैठा सिस्टम ही महिला को खामोश करने लगे, तो वो कहां जाए? कौन सुनेगा उस स्त्री की चीख, जिसकी फरियाद को फाइलों में गुम कर दिया गया?
सरकार और आयोग की चुप्पी शर्मनाक
छत्तीसगढ़ सरकार और राज्य महिला आयोग की चुप्पी बेहद चिंताजनक और शर्मनाक है। जब आयोग भी पीड़िता की सुनवाई न करे, तो फिर इस सिस्टम पर भरोसा कैसे कायम रहे? क्या ‘बेटी बचाओ’ का नारा केवल नारों तक ही सीमित रहेगा?
एक तरफ जहां पर प्रदेश में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार सुशासन तिहार के माध्यम से आम जनता को न्याय और उनकी समस्याओं से निजात दिलाने के लिए एक कदम आगे बढ़ा कर कार्य कर रही तो वहीं पुलिस विभाग के कुछ कर्मी इस योजना को विफल करने की कोशिश में लगे हैं।
कब थमेगा महिला थाने में लेन-देन का खेल?
रायपुर का महिला थाना, अब ‘मामले निपटाने का बाजार’ बन गया है। लेन-देन की यह अमानवीय परंपरा कब थमेगी? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हर वो महिला जानना चाहती है, जो इंसाफ की आस में थाने का दरवाज़ा खटखटाती है।