Bilaspur High Court: 20 साल पुराने हत्याकांड में सात नक्सलियों को आजीवन कारावास, जानें पूरा मामला

राजेन्द्र देवांगन
3 Min Read

बिलासपुर– छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 20 साल पुराने नक्सली हत्याकांड में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सात आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। 2005 में नक्सलियों द्वारा ग्रामीण रघुनाथ की हत्या के मामले में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा कि घायल गवाह की गवाही को मामूली विरोधाभासों के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।

पुराने हत्याकांड में सात नक्सलियों को आजीवन कारावास,

2005 में नक्सलियों ने ग्रामीण को उतारा था मौत के घाट 17-18 मार्च 2005 की आधी रात करीब 25 सशस्त्र नक्सलियों ने ग्रामीण रघुनाथ के घर पर हमला किया। हमलावरों में सूरजराम, नोहर सिंह, धनिराम, दुर्जन, चैतराम, रमेश्वर और संतोष शामिल थे। नक्सलियों ने रघुनाथ को रस्सियों से बांधकर डंडों और लात-घूंसों से पीट-पीटकर मार डाला। इसके अलावा, घायल चश्मदीद गवाह लच्छूराम को भी अधमरा होते तक पीटा गया। जब वह बेहोश हो गया तो नक्सली वहां से भाग गए।

हाईकोर्ट में पलटा फैसला

इस मामले में पुलिस ने सात नक्सलियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया। मामला ट्रायल कोर्ट में चला, लेकिन कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए 2010 में सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

बता दें, ट्रायल कोर्ट ने गवाहों की गवाही में विरोधाभास और कुछ अभियुक्तों के नाम देर से आने को आधार बनाकर आरोपियों को छोड़ने का आदेश दिया था। लेकिन, राज्य सरकार ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट (Bilaspur High Court) में अपील दायर की।

हाईकोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

2025 में हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच (मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायाधीश रविंद्र अग्रवाल) ने महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ फैसला सुनाया। मामले में घायल गवाह लच्छूराम और मृतक की पत्नी पिचोबाई की गवाही को मजबूत आधार माना गया।

20 साल बाद मिला न्याय

मेडिकल और फॉरेंसिक साक्ष्यों की समीक्षा के बाद सातों आरोपियों को दोषी ठहराया गया। साथ हीं, रघुनाथ की हत्या के लिए आजीवन कारावास और घायल लच्छूराम की हत्या के प्रयास में पांच साल कठोर कारावास तथा 1,200 रुपये जुर्माना लगाया गया। हाईकोर्ट ने सभी दोषियों को एक महीने के भीतर ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करने का आदेश दिया है। इस फैसले से रघुनाथ के परिवार और ग्रामीणों को 20 साल बाद न्याय मिला।

Share this Article