बिलासपुर -हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हिंदू संस्कृति में विवाह के बाद पत्नी के कहने पर माता-पिता से अलग होना कोई परंपरा नहीं है। माता-पिता ने जिस बेटे को पाल-पोसकर शिक्षित किया, उसका यह नैतिक और कानूनी दायित्व है कि वृद्धावस्था में उनकी देखभाल करे। बिना किसी उचित कारण के पत्नी का पति को माता-पिता से अलग रहने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता के समान है।
फैमिली कोर्ट का फैसला निरस्त, तलाक को दी मंजूरी
जस्टिस रजनी दुबे और नरेंद्र कुमार व्यास की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए पति को तलाक की मंजूरी दे दी। बेमेतरा निवासी युवक की शादी 10 जून 2017 को छुईखदान की एक युवती से हुई थी।
शादी के बाद पत्नी करीब ढाई महीने ससुराल में रही, लेकिन फिर बिलासपुर में कोचिंग जॉइन करने की जिद करने लगी। जबकि शादी से पहले सहमति बनी थी कि वह गृहिणी के रूप में ससुराल में रहेगी। सितंबर 2017 में बिना बताए बिलासपुर चली गई, फिर इस शर्त पर वापस आई कि पति रायपुर में उसके साथ अलग रहेगा।
पति ने निभाई शर्त, लेकिन पत्नी का व्यवहार नहीं बदला
व्यवहार में सुधार की उम्मीद में पति ने रायपुर में रहने की सहमति दी। वह डॉक्टर के पद पर कार्यरत था और पत्नी के साथ गांव से रायपुर तक सफर करता था। लेकिन 20 अगस्त 2018 को पत्नी ने अचानक कॉल कर बताया कि वह रायपुर में ही रुक रही है। जब पति ने पूछा कि वह कहां और किसके साथ रहेगी, तो उसने जवाब देने से इनकार कर मोबाइल बंद कर दिया।
इस घटना के बाद पति ने अपनी सास को सूचना दी, लेकिन सास ने धमकी दी कि यदि बेटी पर कोई दबाव डाला तो झूठे आपराधिक मामले में फंसा देगी। इस मानसिक तनाव से परेशान होकर पति और उसके परिजनों ने 11 सितंबर 2018 को थाने में शिकायत दर्ज कराई।
समझौते के बाद भी संबंधों में नहीं आया सुधार
फैमिली कोर्ट में पति ने विवाह बचाने की कोशिश की। पत्नी ने रायपुर में साथ रहने की सहमति दी और समझौता किया। दोनों 22 अप्रैल से 5 मई 2019 तक किराए के मकान में रहे, लेकिन इस दौरान भी पत्नी का व्यवहार पति के प्रति ठीक नहीं था।
5 मई 2019 को पत्नी अचानक मकान का दरवाजा बंद कर चली गई और फोन तक नहीं उठाया। इसके बाद पति ने तलाक के लिए कोर्ट में आवेदन दिया।
हाई कोर्ट ने माना—पति के साथ क्रूरता हुई
पत्नी ने सभी आरोपों से इनकार किया, लेकिन फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी। इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने माना कि पत्नी ससुराल में रहने के लिए तैयार नहीं थी और पति को माता-पिता से अलग होने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता के समान है।
गुजारा भत्ता देने का आदेश
हाई कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह पत्नी को दो महीने के भीतर पांच लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता दे। कोर्ट ने कहा कि पत्नी 2019 से पति से अलग रह रही है और उसने ससुराल लौटने का कोई प्रयास नहीं किया। इस आधार पर फैमिली कोर्ट के फैसले को निरस्त कर पति को तलाक की मंजूरी दी गई।
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