समय की चाल के साथ ख्वाबों में सलवटें पड़ जाती हैं। उन सलवटों को रंग देने का वक्त होता है नया साल और ऐसा तब होता है, जब वक्त के साथ हम खुद को बदलते हैं। भाग-दौड़ के साथ अगर फुरसत की कद्र करें और हर पल अपने निशाने को याद रखें तो जिंदगी में सावन तो झूम कर आएगा ही।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य यह है कि कैसे हम लोगों को पॉजिटिविटी की तरफ ले जाएं, क्योंकि संगीत वेलनेस और पॉजिटिविटी का सबसे बड़ा माध्यम है। दुनिया में और समाज में जो संघर्ष चल रहा है, उसमें म्यूजिकल मेडिटेशन, रिद्मिक मेडिटेशन उन्हें जीने की राह दिखाता है। संगीत का अर्थ ही है संस्कार। इसकी भाषा सबको जोड़ती है। इसलिए मैं कहना चाहती हूं कि नए साल में हमें जीवन में अपनी संस्कृति और शास्त्रीय संगीत को जरूर शामिल करना चाहिए। अपने गुरु उस्ताद जाकिर हुसैन के जाने के बाद तबले के क्षेत्र में मेरी जिम्मेदारी बढ़ गई है। नए साल में मुझे ‘शिव-शक्ति और तबला जुगलबंदी’ तथा ‘तबले पर रामायण’ के अपने कॉन्सेप्ट को आगे बढ़ाना है। साथ ही देश के पहले हिंदुस्तानी और कर्नाटक महिला संगीतकारों के अपने ग्रुप ‘स्त्री शक्ति’ को और आगे ले जाना है।
—अनुराधा पाल, सुप्रसिद्ध तबला वादक

मेरे लिए नया साल एक नई शुरुआत है। मैं कोशिश करती हूं कि पिछले वर्ष जो गलतियां की हैं, वो दोबारा न करूं। मैं नए साल में एक लक्ष्य निर्धारित करती हूं कि अगले साल में मुझे क्या तीन टॉप चीजें अचीव करनी हैं, फिर उनको हासिल करने के लिए पूरी लगन के साथ मेहनत करती हूं। मेरा नजरिया यही रहता है कि जो इस साल किया है, अगले साल उससे भी बेहतर काम करूं। नया का मतलब ही होता है कि जीवन में अपने लिए, परिवार के लिए, देश के लिए, समाज के लिए कुछ नया किया जाए। इसलिए सभी को, खासकर युवाओं को नए साल में कुछ नया रचने का संकल्प लेना चाहिए। आजकल के माहौल को देखते हुए ऐसा लगता है कि सेल्फ लव, सेल्फ रिस्पेक्ट, सेल्फ एप्रिसिएशन सबसे ज्यादा महत्व रखते हैं। ‘पीस ऑफ माइंड’ बहुत महत्व रखता है। आप क्या कार्य करते हैं, वो कार्य आपको खुशी देता है या नहीं, यह बहुत मायने रखता है। इसलिए नया रचते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह काम खुद को सुकून देता है। जो काम, जो इनोवेशन खुद को सुकून दे, उसे ही करना चाहिए। आजकल जिंदगी भाग-दौड़ भरी हो गई है, लेकिन जिंदगी में ठहराव बेहद जरूरी है। मैं कहना चाहती हूं कि अगर समय मिले तो कुछ पल सोशल मीडिया से दूर होकर जीवन जीया जाए, तो उससे सुंदर कुछ नहीं है। परिवार के साथ समय बिताएं। जिंदगी को खुलकर जीएं और किसी का दिल न दुखाएं, क्योंकि खुलकर जीने का मतलब यह नहीं है कि अपनी मस्ती में हम दूसरों को दुख दें, उन्हें कष्ट पहुंचाएं। मैं लोगों, खासकर युवाओं से यह कहना चाहती हूं कि नव वर्ष पर सभी लोग अपनी सेहत पर पूरा ध्यान दें, क्योंकि स्वास्थ्य अच्छा होगा तो कुछ भी पाया जा सकता है। साथ ही जीवन का लक्ष्य जरूर बनाएं, क्योंकि बिना लक्ष्य के सफलता नहीं मिलती। पहले लक्ष्य बनाएं और फिर पूरी लगन के साथ उसे हासिल करने में जुट जाएं।
—प्राची तहलन, मशहूर अभिनेत्री

एक बार ओशो ने कहा था, “अगर लोग रोज कम से कम एक घंटा पूरी तरह हंस सकें तो उन्हें किसी प्रकार के मेडिटेशन की जरूरत नहीं होगी।”
हर सुबह हम जो पहला काम करते हैं, वो हमारे पूरे दिन की दिशा तय करता है। इसी तरह एक अच्छा दिन पूरे साल को बेहतर बना सकता है। करीब तीन दशक पहले की बात है। पहली जनवरी की सुबह पुणे के गौतम द बुद्धा सभागार में हजारों ओशो संन्यासी ध्यान करने और हंसने के लिए जुटे और इसे पहला ओशो विश्व हास्य दिवस घोषित किया गया। दूरदर्शन ने इसका प्रसारण किया था। तब से यह आनंदमय तरीका दुनियाभर के ओशो मेडिटेशन सेंटर पर नए साल के स्वागत की एक परंपरा बन गई है। हास्य व्यक्ति को पूरी तरह बदल देने वाला मेडिटेशन है। एक बार ओशो ने कहा था, “अगर लोग रोज कम से कम एक घंटा पूरी तरह हंस सकें तो उन्हें किसी प्रकार के मेडिटेशन की जरूरत नहीं होगी।” हंसी आपको वर्तमान में ले आती है। यह अभ्यास मन को मुक्त बनाता है और आपको वर्तमान में जीना सिखाता है। हास्य को अपनी सुबह का हिस्सा बनाएं। ओशो दिन की शुरुआत हल्के व्यायाम से करने का सुझाव देते हैं। आंखें बंद कर कुछ मिनटों के लिए पहले शरीर को स्ट्रेच करें, फिर हंसना शुरू करें। हो सकता है कि शुरुआत में आपको जबरदस्ती हंसना पड़े, लेकिन जल्द ही आपकी हंसी वास्तविक स्वरूप में आ जाएगी और आपको आनंदमय अहसास देगी। जिनको हंसना मुश्किल लगता है, उनके लिए ओशो ने एक सामान्य यौगिक शुद्धिकरण प्रक्रिया भी बताई है। इसमें सुबह नमकीन गुनगुना पानी पीना और फिर धीरे-धीरे उल्टी करना शामिल है। यह प्रक्रिया भावनात्मक और शारीरिक रुकावटों को दूर करती है, जिससे हंसी स्वाभाविक और मुक्त रूप से प्रवाहित होती है। इस एक जनवरी को ‘ओशो विश्व हांस्य दिवस’ के रूप में मनाएं और इसके उपचारात्मक, आनंदमय अहसास को दुनियाभर में फैलाएं। साल की शुरुआत आनंद, सजगता और हास्य को जीवन का हिस्सा बनाने के संकल्प के साथ करें।

इन्सान के लिए सबसे जरूरी है कि उसका मस्तिष्क स्वस्थ रहे और मस्तिष्क तभी स्वस्थ रह सकता है, जब शरीर स्वस्थ हो। स्वस्थ शरीर के लिए जरूरी है कि हम शारीरिक तौर पर सक्रिय रहें। खेल इसका सबसे अच्छा जरिया हैं, जहां आप एक आनंद की अनुभूति के साथ पसीना बहा रहे होते हैं। यह बात किसी पेशेवर खिलाड़ी के लिए नहीं, बल्कि हर शख्स के लिए जरूरी है- डॉक्टर के लिए, इंजीनियर के लिए, नेता के लिए, अभिनेता के लिए, व्यापारी के लिए। खेल न केवल आपको शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाते हैं, बल्कि उमंग, उल्लास से भर देते हैं और जब आप उत्साहित होते हैं तो आपका सब अच्छा होता है। चाहे दिन हो, महीना हो, साल हो या फिर पूरा जीवन। मेरी नजर में हर दिन, हर घंटा, हर मिनट और हर सेकंड की महत्ता है। चाहे वो 31 दिसंबर हो या फिर एक जनवरी। हमें हर पल जीवन को जीना चाहिए। चलते जाने का नाम ही जिदंगी है। जीवन में न कुछ असंभव है, न कुछ स्थायी है। सब कुछ संभव है, सब कुछ चराचर है। आज आपकी चीजें खराब चल रही हैं तो कल अच्छी होंगी। अगर जीत स्थायी नहीं है तो हार भी स्थायी नहीं है। इसलिए सकारात्मक रहते हुए अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहें। अपना शत-प्रतिशत दें, क्योंकि यही एक चीज है, जो आपके नियंत्रण में है। बाकी जीवन में उतार-चढ़ाव तो आने ही हैं। कभी कम में ज्यादा मिलेगा तो कभी बहुत मेहनत के बाद भी चीजें हमारे अनुकूल नहीं होंगी। बस, हमें हर परिस्थिति में सहज, सकारात्मक रहते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ देना है। यही तरीका है, जो हमें बनाए रखेगा, चाहे क्षेत्र कोई भी हो। यही मेरे जीवन का मूल-मंत्र है।
— जसपाल राणा