केरल हाईकोर्ट ने वरिष्ठ अभिनेता और निर्देशक बालचंद्र मेनन की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि केवल महिलाओं की ही नहीं, पुरुषों की भी गरिमा होती है। 2007 में फिल्म की शूटिंग के दौरान महिला कलाकार के शीलभंग के आरोपों में मेनन को अग्रिम जमानत दी गई।
जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि शिकायत घटना के 17 साल बाद दर्ज की गई है। कोर्ट ने कहा कि यह तथ्य है कि घटना 2007 की है और शिकायत हाल ही में दर्ज हुई। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरोपों का उद्देश्य उनकी छवि को धूमिल करना है।
कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस कुन्हीकृष्णन ने कहा, “गौरव और गरिमा केवल महिलाओं की ही नहीं, बल्कि पुरुषों की भी होती है। न्याय के हित में याचिकाकर्ता को जमानत देना उचित है।” उन्होंने यह भी कहा कि जांच जारी है और सभी पहलुओं की निष्पक्षता से जांच की जानी चाहिए।
सशर्त जमानत
बालचंद्र मेनन को 50,000 रुपये के मुचलके और समान राशि के दो जमानतदारों के साथ जमानत दी गई। कोर्ट ने निर्देश दिया कि वे जांच में सहयोग करें और किसी भी गवाह को धमकाने या प्रभावित करने से बचें। उन्हें पूछताछ के लिए दो सप्ताह के भीतर जांच अधिकारी के सामने उपस्थित होने का आदेश दिया गया।
पृष्ठभूमि
मामला जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट के आधार पर दर्ज किया गया था। मेनन ने दलील दी कि यह मामला उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से उठाया गया है। उन्होंने 40 से अधिक फिल्मों का निर्देशन किया है और उन्हें पद्मश्री सहित कई राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं।
यह मामला कोर्ट के उस दृष्टिकोण को उजागर करता है, जो महिला और पुरुष दोनों की गरिमा और अधिकारों को समान रूप से महत्व देता है।
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