छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: कोर्ट को फैसला सुनाते समय डीएनए परीक्षण की सार्थकता और शुद्धता को पहचानना जरूरी..!
बिलासपुर। दुष्कर्म के एक मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को फैसला सुनाते समय डीएनए परीक्षण की सार्थकता के साथ ही उसकी शुद्धता की पहचान करना जरूरी है। इस मामले में कोर्ट ने डीएनए टेस्ट व एफएसएल रिपोर्ट को सही करार देते हुए आरोपित द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है।
मामला दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा का है। दुष्कर्म के बाद पीड़िता ने बच्चे को जन्म दिया है। पिता अपनी सौतेली नाबालिग बेटी के साथ लगातार दुष्कर्म करते रहा। इस बीच उसने झूठी रिपोर्ट भी लिखा दी। पुलिस ने इस आधार पर निर्दोष के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। किशोर न्याय बोर्ड में पीड़िता ने सौतेला पिता को ही दुष्कर्म का आरोपित बताया। दुष्कर्म के आरोपित सौतेला पिता, पीड़िता और बच्चे का डीएनए व एफएसएल जांच कराई गई। जांच में इस बात की पुष्टि हुई कि पीड़िता का सौतेला पिता ही दुष्कर्म से जन्मे बच्चे का जैविक पिता है। हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने पाक्सो कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए दुष्कर्म के आरोपित सौतेले पिता की याचिका खारिज कर दी है। पाक्सो कोर्ट ने आरोपित को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। कोर्ट ने अपने फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी अपराध में आरोपित की संलिप्तता की जांच के लिए डीएनए रिपोर्ट और एफएसएल रिपोर्ट महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। न्यायालय को अपराधों पर निर्णय देते समय डीएनए परीक्षण की निर्णायकता और शुद्धता को अवश्य पहचानना चाहिए।
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि डीएनए टेस्ट रिपोर्ट इस तथ्य की पुष्टि करती है कि आरोपित ने स्वयं अपनी सौतेली बेटी के साथ अगस्त 2019 से अक्टूबर 2019 तक लगातार शारीरिक संबंध स्थापित किए। इसके चलते पीड़िता गर्भवती हो गई थी और आरोपित ने खुद को कानूनी सजा से बचाने के इरादे से पुलिस थाने में एक निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ झूठी रिपोर्ट करा दी थी। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखते हुए याचिका को खारिज कर दिया है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: कोर्ट को फैसला सुनाते समय डीएनए परीक्षण की सार्थकता और शुद्धता को पहचानना जरूरी..!
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