Bombay HC: हाईकोर्ट ने बरकरार रखा निचली अदालत का फैसला, फर्जी मुठभेड़ मामले में पूर्व पुलिसकर्मी को उम्रकैद…!
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को मुंबई के पूर्व एनकाउंट स्पेशलिस्ट प्रदीप रामेश्वर शर्मा को दोषी ठहराया और उन्हें नाना नानी पार्क में एक फर्जी मुठभेड़ में छोटा राजन गिरोह के कथित सदस्य रामनारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया को नवंबर 2006 में वर्सोवा फर्जी एनकाउंटर में मारने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने निचली अदालत द्वारा बरी होने के फैसले को पलट दिया है. नवी मुंबई के वाशी से पीड़िता के अपहरण के मामले में एक अन्य ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ प्रदीप सूर्यवंशी सहित 13 अन्य आरोपियों को दी गई सजा और आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
आपको बता दें कि प्रदीप शर्मा को निचली अदालत ने बरी कर दिया था. इसके बाद इस केस को हाईकोर्ट में चैलेंज दिया गया था. हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी साक्ष्यों और गवाहों के बयान सुनने के बाद मंगलवार यानी आज इस केस में अपना फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद 3 हफ्तों के अंदर प्रदीप शर्मा को सरेंडर करना होगा. इस मामले में प्रदीप शर्मा जमानत पर बाहर है.
अभियोजन पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव चव्हाण के अनुसार, लाखन भैया और भेड़ा को मुंबई पुलिस की एक टीम ने वाशी स्थित उनके घर से उठाया था और 11 नवंबर 2006 को मुंबई में उनकी हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने दावा किया कि लखन भैया, जो उस समय 38 वर्ष के थे उनके खिलाफ हत्या, जबरन वसूली और हत्या के प्रयास के मामले दर्ज थे. 12 जुलाई 2013 को मुंबई सत्र अदालत ने मुख्य आरोपी शर्मा को बरी कर दिया था और सूर्यवंशी समेत कुछ पुलिस कर्मियों और कुछ ‘निजी’ व्यक्तियों को दोषी ठहराया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. जबकि अदालत ने मामले में छह अन्य आरोपियों को बरी कर दिया, जबकि दो के खिलाफ मामला समाप्त हो गया क्योंकि हाईकोर्ट के समक्ष अपील लंबित रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी.
पीड़िता के भाई और वकील रामप्रसाद गुप्ता द्वारा दायर याचिका पर कार्रवाई करते हुए, हाईकोर्ट ने फरवरी 2008 में हत्या की मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया था. 11 अगस्त, 2008 को एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि मुठभेड़ ‘फर्जी’ थी, और यह एक निर्मम हत्या के अलावा और कुछ नहीं थी. 13 सितंबर 2009 को हाईकोर्ट ने एक विशेष जांच दल का गठन किया और मामले की जांच के लिए तत्कालीन पुलिस उपायुक्त (जोन IX) आईपीएस अधिकारी केएमएम प्रसन्ना को नियुक्त किया.
3 अप्रैल, 2010 को एसआईटी ने 22 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया, जिसमें खुलासा हुआ कि उनके पूर्व साथी, रियल एस्टेट एजेंट जनार्दन भांगे, जिनका कुछ संयुक्त भूमि लेनदेन पर लखन भैया के साथ विवाद था ने कथित तौर पर शर्मा और सूर्यवंशी को एक अनुबंध दिया था. अपने प्रतिद्वंद्वी को खत्म कर दिया, और पुलिस जोड़ी ने मुठभेड़ को अंजाम देने के लिए अन्य आरोपियों को शामिल कर लिया.
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