भोपाल में 20 जनवरी से हटेगा BRTS कॉरिडोर, बैरागढ़ से शुरू होगा काम, CM डॉ. मोहन यादव ने देखा प्रजेंटेशन..!
भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बुधवार को मंत्रालय में भोपाल के BRTS कॉरिडोर को हटाने के संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कार्ययोजना पर चर्चा की। कॉरिडोर हटाने का कार्य बैरागढ़ (संत हिरदाराम नगर) से 20 जनवरी को आरंभ किया जाएगा। अगले तीन माह में चरणबद्ध रूप से शहर के सभी भागों से कॉरिडोर हटा दिए जाएंगे। बीआरटीएस कॉरिडोर पर 13 साल पहले 360 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
सीएम के सामने रखा प्रजेंटेशन
सीएम डॉ. यादव के सामने प्रजेंटेशन से प्लान रखा गया। कमिश्नर डॉ. पवन शर्मा, कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह, निगम कमिश्नर फ्रैंक नोबल ए. ने प्लान के बारे में बताया। निगम कमिश्नर ने प्रजेंटेशन दिया। इसके बाद बीआरटीएस कॉरिडोर को हटाने का निर्णय लिया गया। प्रजेंटेशन देखने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि बीआरटीएस कॉरिडोर को हटाने का काम समय सीमा में पूरा हो।
यातायात में सुगमता और जन सुविधा के लिए हटा रहे : सीएम
मोहन यादव की सरकार ने गठन के कुछ दिनों बाद ही भोपाल से बीआरटीएस हटाने का फैसला लिया था। बुधवार को इसे हटाने की कार्य योजना को लेकर मुख्यमंत्री ने मोहन यादव ने अधिकारियों के साथ बैठक की है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कहा कि बीआरटीएस कॉरिडोर यातायात में सुगमता और जन सुविधा के लिए हटाए जा रहे हैं। जहां ट्रैफिक का दबाव सर्वाधिक हो वहीं से बीआरटीएस कॉरिडोर हटाने का कार्य आरंभ किया जाए। कॉरिडोर हटाने का कार्य बैरागढ़ से आरंभ किया जाएगा।
बीआरटीएस हटाने का काम रात में करें : सीएम
शुरुआत बैरागढ़ (संत हिरदाराम नगर) से होगी। मुख्यमंत्री ने कहा, जन सुविधा को देखते हुए बीआरटीएस हटाने का काम रात में किया जाए और पुलिस से समन्वय करते हुए बीआरटीएस हटाने की संपूर्ण अवधि में शहर में सुगम और सुरक्षित यातायात व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
दरअसल, 24 किमी के बीआरटीएस के दोनों ओर दिन में ट्रैफिक का ज्यादा रहता है, इसलिए जब रात में ट्रैफिक कम होगा तब हटाया जाएगा। मिसरोद से एम्प्री तक, रोशनपुरा से कमला पार्क और कलेक्टोरेट से लालघाटी के बीच बीआरटीएस को तोड़ने में कुल 18.51 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
बीआरटीएस में लाल बसें चलती
गौरतलब है कि भोपाल में बीआरटीएस का निर्माण 13 साल पहले किया गया था। इसमें लाल बसें चलती थी। इसे बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम कहते हैं। इस पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे लेकिन यह सफल नहीं हुआ। वहीं, मोहन सरकार ने जब इसे हटाने का निर्णय लिया।
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