“सुकमा में डिजिटल हेल्थ मिशन ठप, मरीज अब भी जूझ रहे मूलभूत सुविधाओं से”

राजेन्द्र देवांगन
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रायपुर/सुकमा।छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग में डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं के क्रियान्वयन को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। राज्य सरकार ने आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना और नेक्स्ट-जनरेशन ई-अस्पताल प्रणाली लागू कर स्वास्थ्य क्षेत्र में बदलाव लाने की घोषणा की थी। अधिकारियों का कहना है कि इस डिजिटल प्रणाली से ओपीडी पंजीकरण, परामर्श, निदान, दवा वितरण और मरीजों की संपूर्ण चिकित्सा जानकारी एक ही मंच पर उपलब्ध कराई जा रही है। उद्देश्य था—मरीजों को तेज, पारदर्शी और समय पर स्वास्थ्य सुविधाएँ देना।

लेकिन सुकमा जिले की स्थिति इससे अलग तस्वीर पेश करती है। यहाँ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सिस्टम तो लागू है, मगर मरीजों तक उसका लाभ पूरी तरह नहीं पहुँच पा रहा। स्थानीय लोगों और स्वास्थ्यकर्मियों के मुताबिक—

नेटवर्क और बिजली की अनियमितता के कारण डिजिटल सेवाएँ बार-बार बाधित हो जाती हैं।

अस्पतालों को मिलने वाले क्लेम/रिम्बर्समेंट में देरी से योजना के तहत कैशलेस इलाज प्रभावित होता है।

स्टाफ़ को डिजिटल प्रशिक्षण की कमी है, और मरीजों में भी ABHA ID जैसी सुविधाओं को लेकर जागरूकता कम है।

दूरदराज़ और नक्सल प्रभावित इलाकों तक नियमित सेवाएँ पहुँचना अब भी चुनौती बना हुआ है।

सरकारी दावों के मुताबिक बस्तर के कई अस्पताल राष्ट्रीय गुणवत्ता मानक हासिल कर चुके हैं और ई-अस्पताल प्रणाली लागू है। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीक तभी सफल होगी जब उसके साथ स्थानीय स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय पारदर्शिता और मानव संसाधन की मजबूती भी हो।

मरीजों का कहना है कि कागज़ों पर योजनाएँ आकर्षक दिखती हैं, पर वास्तविकता में समय पर परामर्श और दवा न मिल पाने से उन्हें दिक़्क़त उठानी पड़ रही है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि नेटवर्क, ट्रेनिंग और भुगतान की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो डिजिटल स्वास्थ्य क्रांति सुकमा जैसे पिछड़े ज़िलों में आधा-अधूरा प्रयास बनकर रह जाएगी।

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