रायपुर।
शादी को एक साल भी नहीं हुआ और एक नवविवाहिता को ऐसा जुल्म झेलना पड़ा, जिसे सुनकर भी रूह कांप जाए। रायपुर की पीड़ित महिला (गोपनीयता और मानसिक सुरक्षा के लिए नाम पीड़िता का नाम उजागर नही
किया गया है) ने अपने पति और ससुराल पक्ष पर दहेज प्रताड़ना, गाली-गलौज और मारपीट जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि एफआईआर दर्ज हुए, 7 महीने हो चुके हैं, बावजूद इसके भी न कोई
गिरफ्तारी हुई, न ही कोई ठोस कार्रवाई हुई है।
जबकि एफआईआर के अनुसार आरोपी मोरारी राधारमन पिता मोहन लाल देवांगन और अन्य, ने न्यायालय में अग्रिम जमानत हेतु याचिका दायर की थी, जहां अग्रिम जमानत की याचिका भी खारिज कर दी गई। फिर मामले में विलंब संदेह को जन्म दे रही है।
शादी के कुछ ही दिनों बाद टूटा भरोसा
पीड़िता जिसका विवाह 24 अप्रैल 2024 को मोरारी राधारमन देवांगन निवासी उमदा भिलाई 3 पिता मोहन लाल देवांगन से हुआ था, पीड़िता ने अपनी शिकायत में बताया कि शादी के दूसरे दिन से ही उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। ससुराल वालों ने दहेज में लाए गए सामानों को कम बताते हुए उसे अपमानित किया और अतिरिक्त दहेज की मांग की। एक दिन पीड़िता को मायके भेज कर, पीड़ित के परिवार वालों से 3 लाख की मांग करने लगे। ससुराल वालों ने दुर्व्यवहार भी किया, जबकि पीड़िता ने शादी के समय दहेज में लाखों के गहने समान गाड़ी और चेक पहले ही दिए थे , पीड़ित महिला अपने पति की शारीरिक अक्षमता और उसके कारण होने वाली मारपीट का भी उल्लेख किया है।
एफआईआर हुई लेकिन… बस काग़ज़ों में
पीड़िता ने 24 अगस्त 2024 को महिला थाना रायपुर में शिकायत की जिस पर 3 बार काउंसलिंग कराया गया उसके पश्चात 14 सितंबर 2024 को महिला थाना रायपुर में धारा 85 BNS के तहत मामला दर्ज कर मामले को जांच में लेली गई । परन्तु महिला पीड़िता ने अपनी शिकायत और FIR में पति और ससुराल वालों के खिलाफ़ कार्यवाही की मांग की जिस पर महिला थाना रायपुर ने केवल पति को आरोपी बनाते हुए ससुराल वालों पर कोई कार्यवाही नहीं किया ।
क्या अब तक चल रही है जांच? क्या इतने गम्भीर मामले में सिर्फ एक धारा?
एफआईआर के अनुसार, महिला ने अपनी शिकायत में दहेज के लिए उत्पीड़न, शारीरिक और मानसिक शोषण, और पति की नपुंसकता के बारे में आरोप लगाए हैं। साथ ही बताया कि आरोपी शादी से पहले आत्म हत्या की कोशिश कर चुका है एम्स रायपुर में उसका इलाज़ भी हुआ और कई बार खुद के शरीर को चोट पहुंचाने की कोशिश किया जिसका निशान उसके हाथ , छाती तथा अन्य अंगों पर भी मौजूद है। आरोपी मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ है।
क्या इन आरोपों के आधार पर, पुलिस को निम्न धाराओं के तहत मामला दर्ज करना चाहिए था –
● भारतीय न्याय संहि ता (BNS) की धारा 85: पति या पति के रिश्तेदार द्वारा क्रूरता ।
● भारतीय न्याय संहि ता (BNS) की धारा 86: दहेज से संबंधि त क्रूरता ।
● भारतीय न्याय संहि ता (BNS) की धारा 120: धोखाधड़ी ।
● भारतीय न्याय संहि ता (BNS) की धारा 354: हमला या आपराधि क बल का उपयोग महि ला को
अपमानित करने के इरादे से।
● हालांकि , पुलिस ने केवल धारा 85 के तहत मामला दर्ज कि या।
यह स्पष्ट नहीं है कि पुलिस ने अन्य धाराओं के तहत मामला क्यों दर्ज नहीं कि या।
सूत्र बताते हैं कि इसके संभावि त कारण निम्नलिखित हो सकते हैं-:
● पुलिस ने महिला के आरोपों की गंभीरता को पूरी तरह से नहीं समझा।
● पुलिस के पास संसाधनों की कमी थी और वे मामले को सरल बनाना चाहते थे।
● पुलिस ने लापरवाही बरती या भ्रष्टाचार कि या।
● किसी भी स्थिति में, यह पुलिस की ओर से एक गंभीर चूक है।
मामले में और पुलिस की लापरवाही इस तरह बढ़ गई
“पुलिस की निष्क्रियता इस स्तर तक पहुंच गई कि न तो आरोपी से प्राथमिक पूछताछ की गई और न ही अग्रिम जमानत खारिज होने के बाद विधि सम्मत गिरफ्तारी की दिशा में कोई प्रयास किया गया। यह दर्शाता है कि पुलिस ने न केवल अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से मुँह मोड़ा, बल्कि पीड़िता को न्याय से वंचित करने की स्थिति भी उत्पन्न की।
जांच प्रक्रिया की ठंडक इस बात का स्पष्ट संकेत है किया तो मामले को जानबूझकर दबाया जा रहा है, या फिर यह पुलिस-प्रशासन की घोर असंवेदनशीलता का परिणाम है। ऐसे में आरोपी को न केवल समय मिला, बल्कि उसे साक्ष्य प्रभावित करने और न्याय प्रक्रिया से बच निकलने का भी अवसर प्रदान किया गया, जो कानून की मूल भावना पर सीधा प्रहार है।”
महिला आयोग की चुप्पी
“जब पुलिस से भी निराशा हाथ लगी, तो पीड़िता ने छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग से न्याय की उम्मीद की।
पूरे सम्मान और भरोसे के साथ उन्होंने आयोग में आवेदन दिया, यह आशा करते हुए कि शायद अब न्याय की कोई किरण दिखाई देगी। आयोग ने नियमानुसार आवेदन तो स्वीकार कर लिया, लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी पीड़िता को न तो कोई जवाब मिला, न ही कोई कार्रवाई हुई, न सुनवाई की तिथि निर्धारित की गई और न ही पुलिस को कोई दिशा-निर्देश जारी किए गए।
आयोग की इस चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह संस्था केवल औपचारि कताओं तक ही सीमित है? क्या इसकी भूमि का केवल बैठकों और प्रचार तक ही सिमट कर रह गई है?
यदि पीड़िता की गुहार पर भी आयोग मौन रहता है, तो यह विचारणीय है कि क्या इस संस्था को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है ताकि यह वास्तव में न्याय सुनिश्चित करने में सक्षम हो सके। यह आवश्यक है कि आयोग पीड़ितों की शिकायतों पर त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करे ताकि उनका विश्वास बना रहे और उन्हें न्याय मिल सके।
आयोग को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करते हुए पीड़ितों की सुनवाई और उनकी समस्याओं के समाधान को प्राथमिकता देनी चाहिए।”
न्याय की आस में भटकती पीड़िता
“एक साल से भी ज्यादा वक्त बीत चुका है, लेकि न पीड़िता अब भी न्याय की चौखट पर सिर पटक रही
है—और आरोपी अब भी कानून की गि रफ्त से बाहर घूम रहा है। महिला पुलिस थाना की लापरवाही ने मामले को रेंगते हुए भी आगे बढ़ने नही दिया है। महिला आयोग द्वारा भी सुनवाई न किए जाने से पीड़िता न्याय की
आस में दर-दर की ठोक खाने को मजबूर है।
यह मामला न केवल पीड़िता के साथ अन्याय को दर्शाता है, बल्कि उन जिम्मेदार विभागों की कार्यशैली पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है, जिनसे महिलाओं को सुरक्षा और न्याय की उम्मीद होती है। पीड़िता अब इंसाफ के लिए गुहार लगा रही हैऔर मांग कर रही है कि संबंधित विभाग अपनी निष्क्रियता तोड़ें और उसे न्याय दिलाने के लिए तत्काल कदम उठाएं।