छत्तीसगढ़ राज्य में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत हो रही अनियमितताओं पर दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि प्रदेश के प्रमुख प्राइवेट स्कूलों में कुल सीटों का केवल तीन प्रतिशत ही आरटीई के तहत भरा जा रहा है, जबकि अधिनियम के अनुसार, ये 25 प्रतिशत सीटें होनी चाहिए.
हाईकोर्ट ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम को लेकर जताई सख्ती
आरटीई एडमिशन में गिरावट और अनियमितता
जनहित याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि पिछले एक साल में अधिनियम के तहत लगभग सवा लाख एडमिशन कम हुए हैं. इस पर हाईकोर्ट ने सरकार और शिक्षा विभाग से पिछले वर्षों में आरक्षित सीटों पर हुए प्रवेश और खाली सीटों का विस्तृत ब्यौरा मांगा था. इससे पहले कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस और बीपीएल वर्ग के बच्चों के उचित प्रवेश न होने पर भी राज्य सरकार से जवाब तलब किया था.
निजी स्कूलों पर लगे गंभीर आरोप
याचिका में कहा गया है कि निजी स्कूल आरटीई के तहत आने वाले आवेदनों को जानबूझकर खारिज कर रहे हैं और बाद में उन सीटों को डोनेशन और ऊंची फीस लेकर भर रहे हैं. इसके अलावा, घर से 100 मीटर के दायरे में प्रवेश देने के नियम के आधार पर भी कई बच्चों को आरटीई के लाभ से वंचित किया जा रहा है. याचिकाकर्ता सीवी भगवंत राव, जो भिलाई के वरिष्ठ समाजसेवी हैं, ने यह मामला 2012 से उठाया है. अधिवक्ता देवर्षि सिंह के माध्यम से दायर इस जनहित याचिका में पहले चार दर्जन से अधिक निजी स्कूलों को पक्षकार बनाया गया था.
नए दिशा-निर्देश और कोर्ट की सख्ती
2016 में भी हाईकोर्ट ने आरटीई लागू करने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे. लेकिन, निजी स्कूलों ने इन्हें सही तरीके से लागू नहीं किया था. इस लापरवाही को देखते हुए फिर से याचिका दायर की गई थी.
कोर्ट ने दिए ये निर्देश
कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए सरकार और शिक्षा विभाग से विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं. साथ ही, कोर्ट ने दोहराया कि 6 से 14 वर्ष की एज के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उनका कानूनी अधिकार है. किसी भी बच्चे को आर्थिक या सामाजिक कारणों से पढ़ाई से वंचित नहीं किया जा सकता. अब हाईकोर्ट इस मामले में जल्द ही अपना फैसला सुनाएगा, जिससे आरटीई के सही क्रियान्वयन को लेकर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है.