भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन से जहां पूरे देश में शोक की लहर है, वहीं पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चकवाल जिले के गाह गांव में भी गमगीन माहौल है। गाह गांव के लोगों ने उन्हें अपने परिवार के सदस्य की तरह याद किया और उनकी स्मृति में शोक सभा का आयोजन किया।
गाह गांव का डॉ. मनमोहन सिंह से ऐतिहासिक संबंध
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 4 फरवरी, 1932 को गाह गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान के चकवाल जिले में स्थित है। उनके पिता गुरमुख सिंह कपड़ा व्यापारी थे और मां अमृत कौर एक गृहिणी थीं। डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाह के प्रतिष्ठित स्कूल से प्राप्त की। स्कूल के रिकॉर्ड के अनुसार, उनकी प्रवेश संख्या 187 थी और उन्होंने 17 अप्रैल, 1937 को स्कूल में दाखिला लिया था। उन्हें बचपन में उनके दोस्त मोहना कहकर बुलाते थे।
गांव के लोगों की प्रतिक्रिया
गाह गांव के निवासियों ने डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर गहरा दुख प्रकट किया। गांव के शिक्षक अल्ताफ हुसैन ने बताया कि उनके स्कूल में, जहां डॉ. सिंह ने कक्षा 4 तक पढ़ाई की थी, स्थानीय लोगों के एक समूह ने शोक सभा का आयोजन किया। उन्होंने कहा, “हमें ऐसा लग रहा है जैसे हमारे परिवार के किसी सदस्य का निधन हो गया है। डॉ. सिंह हमारे लिए केवल एक भारतीय नेता नहीं थे, बल्कि हमारे गांव के गर्व का प्रतीक थे।”
स्मृतियों में बसे मनमोहन सिंह
गांव के स्कूल के शिक्षक और अन्य निवासियों ने बताया कि डॉ. मनमोहन सिंह कभी अपने जीवनकाल में गाह गांव नहीं लौट सके, लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद गांव में उनके सहपाठियों और निवासियों ने खुशी मनाई थी। आज भी उनके सहपाठियों के परिवार गर्व से बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने एक महान नेता के साथ अपना बचपन बिताया था।
मनमोहन सिंह के परिवार से अपील
गाह गांव के लोगों ने अपील की है कि डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार का कोई सदस्य उनके गांव का दौरा करे ताकि वे अपने रिश्ते को और मजबूत कर सकें। उनके कुछ सहपाठी अब जीवित नहीं हैं, लेकिन उनके परिवारों को अब भी उन पर गर्व है।
गांव की भावनाएं और संदेश
गाह गांव के लोग डॉ. मनमोहन सिंह को एक ऐसे नेता के रूप में याद कर रहे हैं, जिन्होंने अपनी सादगी और कुशल नेतृत्व से पूरे विश्व में सम्मान प्राप्त किया। गांव के लोग मानते हैं कि डॉ. सिंह न केवल भारत के, बल्कि उनके गांव और क्षेत्र के भी गौरव थे।
निष्कर्ष
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन और उनका गाह गांव से संबंध इतिहास में हमेशा दर्ज रहेगा। उनके निधन से गाह गांव के लोगों ने अपने अतीत के उस हिस्से को खो दिया है, जो उन्हें भारत के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ता था। यह संबंध सिर्फ भौगोलिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और मानवीय भी है, जो दोनों देशों को करीब लाने का संदेश देता है।