मां सरस्वती के वरद पुत्र सूर्य कांत त्रिपाठी निराला…!
आज बसंत पंचमी के साथ ही आधुनिक हिंदी साहित्य के “सूर्य “सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्मदिन है जिन्हें मां सरस्वती का वरद पुत्र माना जाता है और मां सरस्वती के वरद पुत्र सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्मदिवस बसंत पंचमी को मनाया जाता है यह उनके प्रति मां सरस्वती की कृपा और वात्सल्य को बताता है हिंदी साहित्य में सबसे ज्यादा उपनाम सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी को मिले हैं । जन्मेजय , वसंत का अग्रदूत , निराला आदि साथ ही सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी को छायावाद के चार स्तंभों में से एक माना जाता है । निराला जी को मुक्त छंद में कविता लिखने का श्रेय भी जाता है । बताया जाता है कि जब उन्होंने पहली बार महावीर प्रसाद द्विवेदी के पास अपनी कविता “जूही की कली” 1916 में सरस्वती में छपने के लिए भेजी तो छंद विहीन कविता को छापने से द्विवेदी जी ने इंकार कर दिया । उसके बहुत दिनों बाद इस कविता को कोलकाता से निकलने वाली पत्रिका ” मतवाला “जिसका संपादन वे स्वयं कर रहे थे , यह कविता मतवाला के 18 वे अंक में प्रकाशित हुई थी और इसी मतवाला में संपादन करने के दौरान ही उन्होंने अपने नाम के साथ” निराला “उपनाम जोड़ लिया । जूही की कली के साथ ही मुक्त छंद की कविता की शुरुआत होती है । छंदों से मुक्त कविता के विषय में उन्होंने कहा था कि जिस तरह मनुष्य की मुक्ति बंधनों से आवश्यक है उसी तरह कविता की मुक्ति भी छंदों के बंधन से आवश्यक है । इसके बाद ही मुक्त छंद में कविता लिखने की शुरुआत हो गई , इसके लगभग साथ-साथ छायावादी कविता का दौर शुरू हुआ जिसके अग्रणी कवियों में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है । निराला जी का सारा जीवन अभाव की गाथा रहा है जिसे उन्होंने कभी अपनी काव्य-रचना के मार्ग में आने नहीं दिया है । बचपन से मां की ममता का अभाव झेलते हुए युवावस्था में पत्नी का वियोग भी सहन करना पड़ा साथ ही कई करीबी रिश्तेदारों के निधन से टूटे तो लेकिन उनकी कविता की लय नहीं टूटी लेकिन जब उनकी एकमात्र पुत्री सरोज शादी के दो साल के अंदर ही चल बसती है तो मानो उनका सारा दुख सरोज स्मृति में उमड़ आता है , उनकी अप्रतिम कविता ” सरोज स्मृति ” उनके अभाव से उपजा दुख और उस दुख को अपनी संतान को भोंगते हुए देखना और उसी दुख में सरोज का चले जाना मानो उन्हें दुख के अपार सागर में छोड़ जाता है जिसे उन्होंने सरोज स्मृति उड़ेल दिया था और यह यह दुनिया का सबसे अप्रतिम शोक गीत बन जाता है । आज जिस जूही की कली कविता को सबसे रोमानी और खूबसूरत कविता कहीं जाती है उसे उस युग में केंचुआ छंद , रबर छंद कह कर उपहास उड़ाया गया था और न चाहते हुए भी लोगों के उपहास और आलोचनाओं से निराला जी टूट गये थे जब वे अवसाद में थे तब उन्हें उनकी मुंहबोली बहन महादेवी वर्मा ने संभाला था और सबसे दुखद यह कि जब वे बहुत बीमार हालत में महादेवी वर्मा जी के पास थे , उस समय महादेवी वर्मा जी से मिलने “प्रकृति के सुकुमार” कवि पन्त जी मिलने आये थे और वे महादेवी जी से मिलकर लौट गये । न जाने कैसे प्रकृति के सुकुमार कवि पन्त जी उनसे मिलने और हालचाल पूछने की इच्छा नहीं जताई जिससे निराला जी टूट से गये थे । इस संदर्भ में बताया जाता है कि एक बार जब निराला जी ने पंत जी के देहांत की झूठी अफवाह इलाहाबाद में सुनी , उस समय पंत जी कुछ बीमार चल रहे थे जब यह खबर निराला जी तक पहुंची तो बताया जाता है कि निराला जी की शरीर में अकड़न हो गई थी और दुख से उनकी मुट्ठियां भीच गई थी उन्ही पंत जी ने ना जाने कैसे कु-संयोगवश निराला जी से मिलना उचित नहीं समझा जिसका दुख उन्हें तोड़ गया था । इसके बाद महादेवी वर्मा ने अपने मुंह बोले भाई को संभाला और उनसे रचना कर्म में वापस लौटने का आग्रह किया । महादेवी जी उनसे बार-बार उनसे काव्य रचना का आग्रह लगातार करती रही क्योंकि उन्हें मालूम था कि यही चीज उन्हें स्वस्थ कर सकती है । अपनी बहन के आग्रह को वे ज्यादा दिन टाल न सके । निराला जी रचना करनी शुरू की और आज वह रचना हिंदी साहित्य में अमूल्य निधि मानी जाती है । उन्होंने राम की “शक्ति पूजा” नामक खंड काव्य लिखा । इस रचना ने मानो बदली में छिपे सूर्य को अपनी प्रखर तेज के फिर आसमान में छाने का मौका मिला हो । इस रचना के बाद निराला जी हिंदी साहित्य में फिर छा गए और कुछ वर्षों बाद ही उनका निधन हो जाता है लेकिन सूर्य कांत त्रिपाठी निराला हमेशा के लिए हिंदी साहित्य के आसमान पर छा गए ।
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