अपराधछत्तीसगढ़

नेता पुत्रों का मर्यादा अतिक्रमण”का शेष भाग…!

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रिपोर्टर सीता टंडन

नेता पुत्रों का मर्यादा अतिक्रमण”का शेष भाग…!

पूरे प्रदेश में जिस तरह खिलाफत का माहौल भाजपा के लिए है ऐसा ही माहौल पांच माह पूर्व कांग्रेस के लिए था  जांजगीर कांग्रेस एनएसयूआई अध्यक्ष अंकित सिसोदिया द्वारा नाबालिक से की गई छेड़छाड़ और f.i.r. उसके बाद अंकित सिसोदिया द्वारा फरारी की घटना सुर्खियां बनकर उसकी फरारी के साथ अब सुर्खियों से बाहर हो गई है और अब नेता प्रतिपक्ष से त्यागपत्र मांगे जा रहे है । इस तरह के मामलों में प्रश्न यह उठता है कि आखिर यह जिम्मेदार और जिम्मेदार पदों पर बैठने वाले बेटे-बेटियो या अन्य करीबी रिश्तेदार ऐसी हरकतों को अंजाम कैसे देते हैं क्या उन्हें नहीं मालूम कि उनके या उनके पिता के पद की गरिमा क्या है या उनके पिता या उनके करीबियों की पद की गरिमा उनका शक्ति  उन्हें एक सीमा तक ही बचा सकता है । दूसरी महत्वपूर्ण बात कि राजनीति के कीचड़ उछालने वाले दौर में उन्हें क्या नहीं पता था कि एक तरफ यह पद शक्ति देता है तो दूसरी तरफ बहुत सारी जिम्मेदारियां भी देता है और साथ ही देता है सोशल मीडिया की अति सक्रियता के कारण लाखों चुभती निगाहें और इस तरह की घटनाओं को सुनने के लिए बेसब्र कान । आज के जिम्मेदारो के युवा पुत्रो और जिम्मेदार युवाओं को यह बात अच्छी तरह पता होनी चाहिए कि मेरा या मेरे पिता का यह पद एक सीमा तक मेरी सुरक्षा कर सकता है सीमा के उस पार विपक्ष उसकी  प्रतीक्षा में है कि कब तुमसे गलती हो और वह आक्रमण करें । जिम्मेदार और खासकर युवा जिम्मेदारो को यह पद नाम , प्रसिद्धि और अतुल शक्ति के साथ एक जिम्मेदारी देता है और उस जिम्मेदारी के बोझ से उनकी गर्दन झुक जानी चाहिए एक फल से भरे पेड़ की तरह कि आप पर पत्थर भी मारे तो बदले में आप उसे फल दे परंतु वर्तमान समय में गर्दन जिम्मेदारी के बोझ से झुकती नहीं है बल्कि ज्यादा ही कलफ लगे कपड़े की तरह अकड़ जाती है और इस अकड़ से नीचे क्या हो रहा है देखने में दिक्कत आती है और यही कारण है कि इन जिम्मेदारो के जिन हाथों को असहाय , मजबूर महिलाओं और लड़कियों के सिर पर होना चाहिए वह हाथ सीने पर पहुंच रहे हैं । क्या पूरे देश सहित छत्तीसगढ़ में महिला अस्मिता खतरे में है । कानून व्यवस्था में जितनी कड़ाई आई है अपराध भी उसी दर से बढ़े हैं । कारण क्या है और उसका कोई हल क्यो नही ढूंढ पा रहा है क्या हमारी सामाजिक संरचना में बिखराव इसका कारण है क्या हमारे सामाजिक ताने-बाने में आ रही तब्दीली इसका कारण है और सबसे बड़ा प्रश्न कि ऐसे दर्ज कितने प्रतिशत मामलों में सच्चाई होती है। यह कठोर सत्य है कि ऐसे मामलों में सच तक पहुंचना बड़ा मुश्किल होता है और उससे भी बड़ा मुश्किल है ऐसी सच्चाई को लिखना , बोलना और स्वीकार करना बड़ा मुश्किल हो गया है

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