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ऐतिहासिक गढ़िया पहाड़ कांकेर…हजारों साल पुराना है इसका इतिहास
रिपोर्टर– प्रमिला नेताम
Chhattisgarh : कांकेर की शान है गढ़िया पहाड़, यहां सोनई-रुपई तालाब के पानी में ये है खासियत…!
कांकेर । शहर से लगे गढ़िया पहाड़ का इतिहास हजारों साल पुराना है। जमीन से करीब 660 फीट ऊंचे इस पहाड़ पर सोनई-रुपई नाम का एक तालाब है, जिसका पानी कभी सूखता नहीं है। इस तालाब की खासियत यह भी है कि सुबह और शाम के वक्त इसका आधा पानी सोने और आधा चांदी की तरह चमकता है।
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किंवदती है कि गढ़िया पहाड़ पर करीब 700 साल पहले धर्मदेव कंड्रा नाम के एक राजा का किला हुआ करता था। राजा ने ही यहां पर तालाब का निर्माण कराया था। धर्मदेव की सोनई और रुपई नाम की दो बेटियां थीं। वो दोनों इसी तालाब के आसपास खेला करती थीं। एक दिन दोनों तालाब में डूब गईं। तब से यह माना जाता है सोनई-रुपई की आत्माएं इस तालाब की रक्षा करती हैं, इसलिए इसका पानी कभी नहीं सूखता। पानी का सोने-चांदी की तरह चमकना सोनई-रुपई के यहां मौजूद होने के रूप में देखा जाता है।
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उस जमाने के मिट्टी के बर्तन व ईंट-खपरों के टुकड़े आज भी यहां मिलते हैं। पहाड़ी के ऊपर एक बड़ा सा मैदान स्थित है। उस मैदान में किले में निवास करने वाले राजा और उनके सैनिकों की आवश्यकता की वस्तुएं बिक्री के लिए आती थीं। इस बाजार में विक्रय करने के लिए लड़कियां सामग्री लाया करती थीं। इसी कारण इसका नाम टूरी हटरी (बाजार) पड़ा।
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राजशाही के जमाने में फांसी भाठा में अपराधियों को मृत्यु दंड दिया जाता था। यहां अपराधियों को ऊंचाई से नीचे फेंका जाता था। एक बार कैदी ने अपने साथ सिपाही को भी खींच लिया। इसके बाद से अपराधियों के हाथ बांधकर उन्हें दूर से बांस से धकेला जाने लगा। झंडा शिखर के पास ही फांसी भाठा स्थित है।
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मेलाभाटा की ओर से पहाड़ी के ऊपर जाने के लिए कच्चा मार्ग बना हुआ है। इस मार्ग में एक विशाल गुफा स्थित है। कहा जाता हैं कि उस गुफा में एक सिद्ध जोगी तपस्या करते थे, जिनका शरीर काफी विशाल था। वहां उनकी विशाल खड़ऊ आज भी मौजूद है। इस कारण इसे जोगी गुफा कहा जाता है।
झंडा शिखर
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गढ़िया पहाड़ को दूर से देखने में जो सबसे ज्यादा आकर्षित करता है, वह है गढ़िया पहाड़ का मुकुट झंडा शिखर। इस स्थान पर राजा का राजध्वज फहराया जाता था। जिस लकड़ी के खंभे पर झंडा फहराया जाता था, उसके अवशेष आज भी मौजूद हैं। कहा जाता है कि जब राजा किले में रहते थे, तभी झंडा शिखर पर ध्वज लहराता था। झंडे से ही राजा की मौजूदगी का पता प्रजा को चलता था।
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राजा का महल जिस स्थान पर था, वहां एक विशाल ऊंचा पत्थर है। प्रतीत होता है कि उसमें पत्थर का ही दरवाजा बना हुआ है। किंवदती है कि इस पत्थर के नीचे राजा ने अपना खजाना छुपाया हुआ है। इसी कारण इसे खजाना पत्थर कहते हैं।
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सोनई रूपई तालाब के पास ही एक गुफा है, जिसमें जाने का मार्ग एकदम सकरा है किंतु उस गुफा में प्रवेश करने के बाद विशाल स्थान है। यहां सैकड़ों लोग बैठ सकते हैं। गुफा के मार्ग में छुरी के समान तेज धारदार पत्थर हैं। इसी कारण इसे छुरी गुफा कहा जाता है। कहते हैं कि किले में दुश्मनों द्वारा हमला होने पर राजा अपने सैनिकों के साथ इसी गुफा में छुप जाते थे।
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