धर्म-कला -संस्कृतिराष्ट्रीय

Kutumsar “Caves” bastar Chhattisgarh … कुटुमसर गुफा बस्तर छत्तीसगढ़…इसके अंदर छिपे हैं कई रहस्य….!

Advertisement
ब्यूरो रिपोर्ट सत्येंद्र सिंह

World Herritage : करोड़ों वर्ष पुरानी है कुटुमसर गुफा, इसके अंदर छिपे हैं कई रहस्य….!

करोड़ों वर्ष पुरानी कुटुमसर गुफा बस्तर आने वालों के लिए बहुत ही रोचक है। कांगेर घाटी  में स्थित इस गुफा का मुख्य आकर्षण इसके अंदर की बनावट है। छत्तीसगढ़ अपनी आदिवासी संस्कृति के साथ कई आश्चर्यजनक प्राकृतिक स्थल को अपने गोद में लिए हुए है, उन्हें में से एक है कोटमसर गुफा जिसे कुटुमसर के नाम से भी जानते हैं। यह हैरत अंगेज प्राकृतिक भूमिगत गुफा के लिए जाना जाता है, आइए हम विस्तारपूर्वक इस गुफा के बारे में जानते हैं।

यह गुफा बस्तर जिले के जगदलपुर के समीप कांगेर वेली राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। इस गुफा को मूल रूप से  गोपांसर गुफा गोपन छुपा के नाम से जाना जाता था लेकिन यह गुफा यह ‘कोटसर’ गाँव के पास स्थित होने के कारण इस गुफा का नाम कोटमसर हो गया। यह गुफा प्रक्रति प्रेमियों के लिए किसी अमूल्य उपहार से कम नही है।

इस गुफा की गहराई लगभग 54 से 120 फीट है और लंबाई 4500 मीटर है। यह समुद्र ताल से लगभग 560 मीटर की ऊँचाई पर है। कोटमसर गुफा अपने आप में रोचक इसलिए है क्योंकि इसके अंदर की बनावट बहुत ही खूबसूरत है गुफा के अंदर चूना पत्थर से बनी आकृतियां है जिन पर प्रकाश पड़ने पर कई तरह की आकृतियां नज़र आती हैं।

इस गुफा के भीतर चुने हुए पत्थर से बने स्टेलाइटाइट और स्टैलेग्माइट आकृतियां पाई जा सकती हैं। इस गुफा में बहुत अधिक अंधेरा रहता है जब इन पर टॉर्च की रौशनी पड़ती है तो यहां चूना पत्थर से बनी विभिन्न आकृतियां चमक उठती है जिन्हें देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। आपको इन आकृतियों में जितने रूप पसंद हैं, उतने ही रूप देखने को मिलेंगे।

इस गुफा के अंदर बनी आकृतियां चूना पत्थर, कार्बनडाईऑक्साइड और पानी की रासायनिक क्रिया के कारण उपर से नीचे की ओर कई सारी प्राकृतिक संरचनाएं बन गई है जो अब भी धीरे धीरे बनते ओर बढ़ते जा रहे है जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है साथ ही यह कोटमसर गुफा ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से जुड़ा हुआ है।



कुटुमसर के अंदर कई सारे जीव जंतु है लेकिन पूरे भारत में सिर्फ इस गुफा के अंदर रंग बिरंगे अंधी मछली पाई जाती है। इस मछली के प्रजाति का नाम गुफा के खोजकर्ता प्रो. शंकर तिवारी के नाम पर रखा गया है।

इस गुफा की खोज का श्रेय प्रोफेसर शंकर तिवारी को जाता है जिन्होंने सन् 1958 में स्थानीय आदिवासियों के सहायता से इस गुफा की खोज की थी। इस गुफा का निर्माण प्राकृतिक रूप से प्रकृति में कई तरह के बदलाव और पानी के बहाव के कारण इस गुफा का निर्माण हुआ है। कोटमसर गुफा का शुरुआती नाम गोंपसर था लेकिन गुफा के समीप ही कोटमसर ग्राम होने के कारण इस गुफा का नाम कोटमसर गुफा पड़ गया।

शोधकर्ताओं के अनुसार यहां प्रागैतिहासिक काल में आदिमानव निवास करते थे। यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार भगवान राम जी ने अपने वनवास काल के दौरान इस गुफा में वास किया था साथ ही इस गुफा के अंदर शिवलिंग है जिसे स्थानीय लोग कई वर्षों से पूजा करते आ रहे हैं।

इस गुफा को मानसून के दौरान बंद के दिया जाता है क्योंकि इस समय गुफा में पानी भरने और अन्य जहरीले जीव जंतु से खतरा रहता है। इस गुफा को देखने का सबसे अच्छा समय ठंड के मौसम में होता है।
गुफा में प्रवेश करने से पहले आपके पास एक अधिक रोशनी वाला टॉर्च होना चाहिए ताकि आप इस गुफा के अंदर की खूबसूरती को निहार सकें इसके अलावा आपके पास अच्छे जूते होने चाहिए ताकि गुफा के अंदर फिसलन से बच सकें।

इस गुफा को मानसून के दौरान बंद के दिया जाता है क्योंकि इस समय गुफा में पानी भरने और अन्य जहरीले जीव जंतु से खतरा रहता है। इस गुफा को देखने का सबसे अच्छा समय ठंड के मौसम में होता है।
गुफा में प्रवेश करने से पहले आपके पास एक अधिक रोशनी वाला टॉर्च होना चाहिए ताकि आप इस गुफा के अंदर की खूबसूरती को निहार सकें इसके अलावा आपके पास अच्छे जूते होने चाहिए ताकि गुफा के अंदर फिसलन से बच सकें।

Related Articles

Back to top button