बिलासपुर। आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को राज्य सरकार द्वारा तय मानकों के अनुसार भोजन मिल रहा है या नहीं, इस पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। मंगलवार को हाई कोर्ट के निर्देश पर महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव ने शपथ पत्र के साथ स्थिति की जानकारी डिवीजन बेंच के समक्ष पेश की। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच ने कोर्ट कमिश्नरों को निर्देश दिया कि वे सचिव की रिपोर्ट का अध्ययन करें और मौके पर निरीक्षण के आधार पर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट में प्रस्तुत करें।
दरअसल, दुर्ग जिले की आंगनबाड़ी में बच्चों को फल और दूध न दिए जाने की मीडिया रिपोर्ट्स ने यह मुद्दा उठाया, जिसके बाद चीफ जस्टिस ने इसे गंभीर मानते हुए इसे पीआइएल के रूप में रजिस्टर्ड करने का निर्देश दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान सचिव महिला एवं बाल विकास विभाग ने आंगनबाड़ी केंद्रों में भोजन व्यवस्था पर अपनी जानकारी पेश की। कोर्ट ने कोर्ट कमिश्नरों को निर्देश दिया कि वे अपनी निरीक्षण रिपोर्ट का तुलनात्मक अध्ययन कर सचिव द्वारा प्रस्तुत जानकारी की जांच करें। कोर्ट का यह सख्त रुख अधिकारियों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेष रूप से अगर कोर्ट कमिश्नरों की रिपोर्ट में अनियमितताएं पाई गईं।
चीफ जस्टिस ने एडवोकेट अमियकांत तिवारी, सिद्धार्थ दुबे, आशीष बेक और ईशान वर्मा को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करते हुए निर्देश दिया था कि वे आंगनबाड़ी केंद्रों का निरीक्षण कर वस्तुस्थिति की जानकारी प्रस्तुत करें। इसके साथ ही, महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव और अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए शपथ पत्र के साथ जवाब देने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 12 दिसंबर निर्धारित की है।
सूरजपुर, कवर्धा और बस्तर में भी मिली थी गड़बड़ी
दुर्ग के मामले को लेकर पीआईइल पर सुनवाई चल रही थी, इसी दौरान सूरजपुर, कवर्धा और बस्तर जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों में भी गड़बड़ी की खबरें मीडिया में प्रकाशित हुई थी। इन जिलों के आंगनबाड़ी केंद्रों की पड़ताल के लिए डिवीजन बेंच ने कोर्ट कमिश्नरों को निर्देश दिया था, साथ ही पीआइएल में इन जिलों के मामलों को भी मर्ज करने का निर्देश दिया था।
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