अविभाजित मध्य प्रदेश शासनकाल में अविभाजित बिलासपुर जिले के कोरबा में स्थापित हुए कोरबा पूर्व संयंत्र का अस्तित्व पूरी तरह से मिटने के कगार पर है। इस संयंत्र की प्रारंभिक 50-50 मेगावाट की दो इकाइयों को पर्यावरणीय और आर्थिक-तकनीकी कारणों से बंद करने का निर्णय करीब 4 साल पहले लिया गया।

राजेन्द्र देवांगन
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कोरबा- अविभाजित मध्य प्रदेश शासनकाल में अविभाजित बिलासपुर जिले के कोरबा में स्थापित हुए कोरबा पूर्व संयंत्र का अस्तित्व पूरी तरह से मिटने के कगार पर है। इस संयंत्र की प्रारंभिक 50-50 मेगावाट की दो इकाइयों को पर्यावरणीय और आर्थिक-तकनीकी कारणों से बंद करने का निर्णय करीब 4 साल पहले लिया गया।

इसके बाद 50- 50 मेगावाट की दो और इकाइयों को इन्हीं कारणों से बंद किया गया। अब तीसरे चरण में 120- 120 मेगावाट की शेष दो इकाइयों को भी बंद करने का निर्देश जारी हो चुका है। 31 दिसंबर 2020 से ये दोनों प्लांट पूरी तरह से बंद हो जाएंगे और 1 जनवरी 2021 से यह प्लांट उत्पादन से पूरी तरह बाहर हो जाएगा।
छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी मर्यादित के ऑपरेशन एंड मेंटनेस चीफ इंजीनियर, रायपुर के द्वारा इस आशय का आदेश जारी कर दिया गया है। इधर दूसरी ओर पावर प्लांट के पूरी तरह बंद हो जाने से यहां कार्यरत लगभग 450 नियमित कर्मचारी और करीब इतनी ही संख्या में ठेका मजदूरों के समक्ष नौकरी का संकट उत्पन्न होगा। हालांकि नियमित कर्मचारियों को विद्युत कंपनी के द्वारा मडवा और अन्य ताप विद्युत गृहों में शिफ्ट किया जा रहा है किंतु ठेका मजदूरों के लिए फिलहाल दूर-दूर तक ऐसी की व्यवस्था नजर नहीं आ रही। हालांकि पावर प्लांट के बंद होने के बाद उसकी देख-रेख और निगरानी के लिए कुछ कर्मचारियों को ड्यूटी पर रखे जाने की सुगबुगाहट है।
बहरहाल भारत देश की आजादी के बाद अविभाजित मध्यप्रदेश में रशियन सरकार के सहयोग से स्थापित यह पहला विद्युत संयंत्र जो कि 166 में प्रथम 50 मेगावाट इकाई के साथ स्थापित हुआ और मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि भारत देश के विकास में इस संयंत्र की अहम भूमिका रही है। विद्युत आपूर्ति में इस संयंत्र ने खासा योगदान दिया है। बूढ़े हो चले इस संयंत्र को पूरी तरह बंद किया जा रहा है।

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