नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग जिले के रानीडांगा में जीएफसीजे कंटेनर मालगाड़ी के लोको पायलट ने सिग्नल को पार करते समय ट्रेनों के लिए निर्धारित गति के नियमों का पालन नहीं किया, जिसके कारण रेल हादसा हुआ।
रेलवे के सूत्रों ने मंगलवार को यहां बताया कि ऐसा लगता है कि जीएफसीजे कंटेनर मालगाड़ी के लोको पायलट (ट्रेन चालक) ने लाल सिग्नल से पहले रुकने के लिए निर्धारित शर्तों और 15 किलोमीटर प्रति घंटे की गति सीमा का पालन नहीं किया और बहुत अधिक गति से आगे बढ़ रहा था, जिसके कारण यह हादसा हुआ। सूत्रों ने बताया कि संयोग से जीएफसीजे कंटेनर मालगाड़ी से पहले छह अन्य ट्रेनें भी रंगापानी स्टेशन से गुजरीं और इन सभी ट्रेनों के ट्रेन चालकों ने सुरक्षा नियमों का पालन किया। जीएफसीजे कंटेनर मालगाड़ी से टक्कर होने के समय कंचनजंघा एक्सप्रेस ट्रेन लाल सिग्नल से पहले रूक गयी थी।
सूत्रों के मुताबिक स्वचालित सिग्नलिंग की विफलता के दौरान ट्रेन की आवाजाही हो रही थी।
ऐसे मामलों में ट्रेन को प्रत्येक सिग्नल के नीचे दिन में 01 मिनट और रात में 02 मिनट के लिए रोका जाता है। इसके बाद ट्रेन बहुत सावधानी बरतते हुए अगले स्टॉप सिग्नल की ओर आगे बढ़ सकती है। अच्छी दृश्यता के मामले में ट्रेन की गति 15 किलोमीटर प्रति घंटा और खराब दृश्यता के मामले में 10 किमी प्रति घंटा होना चाहिए, ताकि किसी भी अवरोध से पहले ट्रेन रुक सके। सूत्रों ने बताया कि इस मामले में ऐसा लगता है कि जीएफसीजे कंटेनर मालगाड़ी के लोको पायलट (ट्रेन चालक) ने लाल सिग्नल से पहले रुकने की उपरोक्त 02 शर्तों और 15 किमी प्रति घंटे की गति सीमा का पालन नहीं किया और बहुत अधिक गति से आगे बढ़ रहा था। सूत्रों के अनुसार संयोग से जीएफसीजे कंटेनर मालगाड़ी से पहले 06 अन्य ट्रेनें भी रंगापानी स्टेशन से गुजरीं और इन सभी ट्रेनों के ट्रेन चालकों ने उपरोक्त सुरक्षा नियमों का पालन किया। जिस समय जीएफसीजे कंटेनर मालगाड़ी से कंचनजंघा एक्सप्रेस ट्रेन की टक्कर हुयी थी, उस समय कंचनजंघा एक्सप्रेस भी लाल सिग्नल से पहले रुक गई थी।
गौरतलब है कि स्वचालित सिग्नलिंग को रेलवे द्वारा आम तौर पर उच्च यातायात घनत्व वाले डबल/मल्टीपल लाइन सेक्शन पर लगाया जाता है, ताकि कम से कम देरी में अधिक संख्या में ट्रेनें गुजर सकें। पारंपरिक निरपेक्ष सिग्नलिंग प्रणाली में सिग्नल केवल स्टेशनों पर प्रदान किए जाते हैं, जो आम तौर पर लगभग 08 से 10 किमी दूर स्थित होते हैं। वहीं, स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली हर 01 किमी पर सिग्नल प्रदान करती है। मुंबई उपनगरीय प्रणाली स्वचालित सिग्नलिंग का एक प्रमुख उदाहरण है, जहां बड़ी संख्या में ट्रेन सेवाएं दैनिक आधार पर संचालित होती हैं। भारतीय रेलवे पर बढ़ते यातायात घनत्व के मद्देनजर कई मार्गों पर स्वचालित सिग्नलिंग का प्रसार किया जा रहा है।
गौरतलब है कि स्वचालित सिग्नलिंग के मामले में ट्रेनों को कम दूरी के अंतराल पर संचालित किया जाता है, इसलिए रेलवे के सामान्य और सहायक नियमों (जीएंडएसआर) में स्वचालित सिग्नलिंग की विफलता के मामले में अपनाई जाने वाली मानक प्रक्रिया का प्रावधान है। विफलता की स्थिति में स्वचालित सिग्नल ‘सुरक्षित रूप से विफलÓ हो जाता है, यानी प्रकाश पहलू लाल (यानी स्टॉप) पहलू को इंगित करता है। ऐसे मामलों में जीएंडएसआर के प्रावधान लोको पायलट (ट्रेन चालक) को दिन में 01 मिनट और रात में 02 मिनट सिग्नल के नीचे रुकने के बाद ही ऐसे सिग्नल को पार करने की अनुमति देते हैं।
रेलवे की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रि गठबंधन के काल में पिछले नौ साल में देश के विभिन्न हिस्सों में 638 रेल हादसे हुए हैं। इस में 2014-15 के दौरान सबसे अधिक 135 हादसे हुए हैं। वहीं 2015-16 में 107, 2016-17 में 104, 2017-18 में 73, 2018-19 में 59, 2019-20 में 55, 2020-21 में 22, 2021-22 में 35 और 2022-23 में 48 रेल दुर्घटनाएं हुई हैं।
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