“एक मंदिर जो सूर्य की किरणों से ‘झुक’ जाता है! जानकर वैज्ञानिक भी हुए हैरान..!
देहरादून।हिंदू धर्म के लोगों के लिए मंदिरों का विशेष महत्व है। देश में सूर्य देव को समर्पित कई रहस्यमयी मंदिर स्थित है। माना जाता है कि जो लोग नियमित रूप से सूर्य देव की पूजा करते हैं, उनके घर में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है। दरअसल, कलयुग में सूर्य देव ही मात्र ऐसे देव हैं, जिन्हें दृश्य देव माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य देव को जल अर्पित करने से कुंडली में ग्रह शांत होते हैं। उत्तराखंड में भारत का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर स्थित है। पहला सबसे बड़ा सूर्य मंदिर ओडिशा के कोणार्क का सूर्य मंदिर है। अल्मोड़ा शहर से तकरीबन 18 किलोमीटर की दूरी पर है प्राचीन कटारमल सूर्य मंदिर है। इस मंदिर को करीब 9वीं सदी का बताया जाता है, जो कत्यूरी शासक कटारमल देव के द्वारा बनाया गया था। बताया जाता है कि यहां पर कालनेमि नामक राक्षस का आतंक था, तो यहां के लोगों ने भगवान सूर्य का आह्वान किया। भगवान सूर्य लोगों की रक्षा के लिए बरगद में विराजमान हुए। तब से उन्हें यहां बड़ आदित्य के नाम से भी जाना जाता है।
ओडिशा के कोणार्क मंदिर के बाद इसे देश का दूसरा सबसे बड़ा सूर्य मंदिर माना जाता है। कटारमल सूर्य मंदिर में स्थापित भगवान बड़ आदित्य की मूर्ति पत्थर या धातु की न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है, जोकि गर्भ गृह में ढककर रखी जाती है।
इस परिसर में छोटे-बड़े मिलाकर 45 मंदिर हैं। पहले इन मंदिरों में मूर्तियां रखी हुई थीं, जिनको अब गर्भ गृह में रखा गया है। बताया जाता है कि कई साल पहले मंदिर में चोरी हो गई थी, जिस वजह से अब सभी मूर्तियों को गर्भ गृह में रखा गया है। इस मंदिर में चंदन की लकड़ी का दरवाजा हुआ करता था, जो दिल्ली म्यूजियम में रखा गया है। इस मंदिर में साल में दो बार सूर्य की किरणें भगवान की मूर्ति पर पड़ती है। 22 अक्टूबर और 22 फरवरी को सुबह के समय यह देखने को मिलता है। 22 अक्टूबर को जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन जाते हैं, तब सूर्य की किरणें प्रतिमा पर पड़ती हैं और जब दक्षिणायन से उत्तरायण सूर्य जाते हैं, तो 22 फरवरी को सूर्य की किरणें भगवान की प्रतिमा पर पड़ती हैं।
इस मंदिर में सूर्य भगवान की दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा में सूर्यदेव ध्यान मुद्रा में विराजित हैं। इसे आदित्य मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में राजा कटारमल द्वारा करवाया गया था। राजा के नाम पर ही इस गांव का नाम कटारमल पड़ा है।मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सुंदर है। मंदिर के खंबों पर आकर्षक नक्काशी भी की गई है। नागर शैली में बना ये मंदिर पूर्व मुखी है। सुबह सूर्योदय के समय सूर्य की सीधी किरणें मंदिर में प्रवेश करती हैं। मंदिर के आसपास का प्राकृतिक वातावरण यहां की खासियतभरा है।
कटारमल सूर्य मंदिर समुद्र तल से 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर के संबंध में मान्यता है कि राजा कटारमल ने इसका निर्माण एक रात में करवाया था। कटारमल सूर्य मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि यहां की मूर्ति बरगद की लकड़ी से बनी है, जो कि अनोखी और अद्भुत है। सूर्य की मूर्ति बड़ की लकड़ी से बने होने के कारण इस मंदिर को बड़ आदित्य मंदिर भी कहा जाता है।
कटारमल सूर्य मन्दिर का निर्माण कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल के द्वारा हुआ था। इसका निर्माण एक ऊँचे वर्गाकार चबूतरे पर है, जो भारतवर्ष में सूर्यदेव को समर्पित प्राचीन और प्रमुख मन्दिरों में से एक है। आज भी मन्दिर के ऊँचे खंडित शिखर को देखकर इसकी विशालता व वैभव का अनुमान स्पष्ट होता है। मुख्य मन्दिर के आस-पास 45 छोटे-बड़े मन्दिरों का समूह भी बेजोड़ है। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है और वर्गाकार गर्भगृह के साथ वक्ररेखी शिखर सहित निर्मित है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार बेजोड़ काष्ठ कला द्वारा उत्कीर्ण था, जो कुछ अन्य अवशेषों के साथ वर्तमान में नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित है।
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार सतयुग में उत्तराखण्ड की कन्दराओं में जब ऋषि-मुनियों पर धर्मद्वेषी असुर ने अत्याचार किये थे। तत्समय द्रोणगिरी (दूनागिरी), कषायपर्वत तथा कंजार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी (कोसी नदी) के तट पर आकर सूर्य-देव की स्तुति की। ऋषि मुनियों की स्तुति से प्रसन्न होकर सूर्य-देव ने अपने दिव्य तेज को वटशिला में स्थापित कर दिया। इसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने बड़ादित्य नामक तीर्थ स्थान के रूप में प्रस्तुत सूर्य-मन्दिर का निर्माण करवाया होगा। जो अब कटारमल सूर्य-मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है।
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