बढ़ता तापमान गेहूं पैदावार के लिए बड़ी चुनौती
बढ़़ रही किसानों की चिंता
बिलासपुर- दानों का आकार छोटा हो सकता है। उत्पादन में आंशिक कमी संभावित है। बढ़ता तापमान कृषि वैज्ञानिकों और किसानों के लिए चिंता की बड़ी वजह बन रही है। दिसंबर मध्य में की गई बोनी पर यह असर ज्यादा देखा जा सकता है।
सिंचाई साधन से संपन्न किसानों को ध्यान रखना होगा कि किसी भी हालत में मिट्टी की नमी कम ना होने पाए। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि बढ़ता हुआ मौजूदा तापमान, गेहूं की फसल के लिए सही नहीं है क्योंकि न्यूनतम और अधिकतम तापमान ज्यादा है। लिहाजा निगरानी बढ़ानी होगी और सिंचाई के समय में बदलाव करना होगा। तभी अपेक्षित उत्पादन मिल सकेगा।
ऐसा है तापमान
वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं की फसल के लिए न्यूनतम तामपान 12 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए लेकिन मौजूदा समय में न्यूनतम तापमान 14 से 16 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस पर पहुंचा हुआ है। याने तापमान का दोनों स्तर सामान्य से ज्यादा है।
दाने छोटे और उत्पादन में कमी
बढ़ता तापमान स्पष्ट संकेत दे रहा है कि उत्पादन में आंशिक कमी आ सकती है। दानों का मानक आकार भी प्रभावित हो सकता है। तापमान का असर ऐसे क्षेत्रों में व्यापक रूप से पड़ने की आशंका है, जहां 15 दिसंबर के बाद की तारीखों में बोनी की गई है। इसके अलावा बीज चयन भी महत्वपूर्ण होगा। ताप सहनशील प्रजातियों की खेती नहीं की गई है तो नुकसान का प्रतिशत बढ़ सकता है।
प्रबंधन पर ध्यान जरूरी
ऐसे किसान जिनके पास सिंचाई के साधन हैं, उन्हें सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर का उपयोग करना होगा ताकि खेतों की नमी बनी रहे। वर्तमान समय में यह बेहद जरूरी है। स्प्रिंकलर की सलाह इसलिए दी जा रही है क्योंकि छिड़काव दूर तक होता है। इसके अलावा भू-जल स्तर को भी बनाए रखने में मदद मिलती है।
यह प्रजातियां अनुकूल
बदलते मौसम और बढ़ते तापमान को ध्यान में रखते हुए टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन बिलासपुर द्वारा तैयार की गई छत्तीसगढ़ गेहूं 4(सीजी-1015) और कनिष्क (सीजी-1029) बिल्कुल सही है। यह दोनों प्रजातियां ताप सहनशील है। इन दोनों प्रजातियों की बोनी करने वाले किसानों को ज्यादा नुकसान नहीं होगा।
ध्यान दें सिंचाई प्रबंधन पर
बढ़ता तापमान चिंता की वजह है। ताप सहनशील प्रजातियों पर हानि का खतरा कम है लेकिन अन्य प्रजातियों में दानों का आकार छोटा और उत्पादन में कमी की आशंका है।
- डॉ. ए. पी. अग्रवाल, साइंटिस्ट(गेहूं), टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर
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