बेनीपाठ शैलचित्र,,,आदि मानवों द्वारा उकेरे गए शिकार आदि के दृश्य

राजेन्द्र देवांगन
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बेनीपाठ शैलचित्र,,,आदि मानवों द्वारा उकेरे गए शिकार आदि के दृश्य

रायगढ़ : पृथ्वी पर मानव सभ्यता के जन्म और उसकी विकास यात्रा के प्रारंभिक दौर का एक महत्वपूर्ण गवाह छत्तीसगढ़ भी है ।प्रदेश के, उत्तर बस्तर (कांकेर), कोरिया, दुर्ग, सरगुजा और बस्तर (जगदलपुर) जिले की अनेक पहाड़ी गुफाओं और पहाड़ियों की दीवारों पर आदि मानवों द्वारा उकेरे गए शिकार आदि के दृश्य स्पष्ट रूप से यह संकेत दे रहे हैं कि उस प्रागैतिहासिक दौर में छत्तीसगढ़ की धरती पर कभी आदि मानवों का भी बसेरा हुआ करता था।

ये रहस्यमय शैल चित्र आज उन्हें देखने वालों के मन-मस्तिष्क में भारी कौतुहल और जिज्ञासा पैदा करते हैं कि आखिर वह कौन सा प्राकृतिक रंग था, जो धूप, धूल और हवा के थपेड़े सहते हुए आज भी अपनी जगह पर कायम हैं ।

हालांकि समय के प्रवाह में रहस्यमय शैल चित्रों के इस खजाने से कई चित्र विभिन्न प्राकृतिक कारणों से धुंधले भी होते जा रहे हैं, लेकिन राज्य के पुरातत्व संचालनालय द्वारा इन सभी शैल चित्रों के संरक्षण के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।

पुरातत्व अधिकारियों ने इनके संरक्षण के लिए जन सहयोग की जरूरत पर भी बल दिया है।पुरातत्व वेत्ताओं के अनुसार कहीं गेरूई रंग तो कहीं सफेद रंग से निर्मित इनमें से कई शैल चित्र तो पच्चीस हजार से पचास हजार साल पुराने हैं।

इनमें उस जमाने के पर्यावरण और शिकार आधारित सामूहिक जीवन शैली का पता चलता है। प्रदेश के इन जिलों में अब तक 22 से कुछ अधिक गांवों के आस-पास की पहाड़ी श्रृंखलाओं में आदि मानवों के शैल चित्रों का पता लगाया गया है।

इनमें से सर्वाधिक तेरह स्थान रायगढ़ जिले में हैं। इस जिले के ग्राम ओंगना के पहाड़ पर दस सिरों वाली रावणनुमा मानव आकृति, इसी जिले के तहसील मुख्यालय खरसिया के नजदीक भंवरखोल की गुफा में अंकित मत्स्य कन्या और दुर्ग जिले में दल्लीराजहरा मार्ग पर चितवाडोंगरी में निर्मित ड्रेगन की आकृति वाले शैल चित्र तत्कालीन समय के आदिम कलाकारों की कल्पनाशीलता का भी परिचय देते हैं।

घने जंगलों से घिरे पहाड़ों की बांहों में बनाए गए इन शैल चित्रों पर दुनिया की पहली नजर लगभग एक सौ वर्ष पहले सन 1910 में उस समय पड़ी जब अंग्रेज अनुसंधानकर्ता श्री एण्डरसन ने उन्हें खोज निकाला।

इसके बाद वर्ष 1918 में इंडिया पेंटिंग्स में और इनसाईक्लोपीड़िया ब्रिटेनिका के तेरहवें अंक में रायगढ़ जिले के सिंघनपुर की पहाड़ियों के शैल चित्रों का प्रकाशन हुआ।

भारतीय इतिहासकार श्री अमरनाथ दत्त ने सन 1923 से 1927 के बीच रायगढ़ जिले में व्यापक सर्वेक्षण कर और भी अनेक शैल चित्रों का पता लगाया। उनके बाद डॉ. एन. घोष, डी.एच. गार्डन और पंडित लोचन प्रसाद पाण्डेय ने भी इस दिशा में अध्ययन और अनुसंधान के महत्वपूर्ण कार्य किए।

रायगढ़ जिले में बेनीपाठ के शैलचित्र जिला मुख्यालय रायगढ़ से लगभग 20 किलोमीटर पर स्थित है । पुराने शैल चित्रों में होती है। ये शैलचित्र अब लगभग धुंधले हो चले हैं।

इनमें पुरूषाकृति, मत्स्य-कन्या और पशु आकृतियों सहित शिकार के दृश्य भी अंकित हैं। बेनी पाठ के अलावा जिला मुख्यालय रायगढ़ से केवल आठ किलोमीटर पूर्व में स्थित कबरा पहाड़ भी उल्लेखनीय है। इस पहाड़ पर निर्मित चित्र गैरिक रंग के हैं।
शैलाश्रयों से दक्षिण पश्चिम में लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम बसनाझर (तहसील खरसिया) की पहाड़िया में तो आदि मानवों द्वारा तीन सौ से अधिक चित्र अंकित किए गए हैं ।

नजदीकी रेलवे स्टेशन रायगढ़ रेलवे स्टेशन
20 से 21 किलोमीटर की दूरी पर है
अपने कार या बाइक से आराम से जाया जा सकता है
निकटतम बस स्टैंड तमनार बस स्टेंड है लगभग दूरी 5 से 7 किलोमीटर

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