बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शिक्षाकर्मियों के संविलियन और सेवा अवधि को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। 10 साल की सेवा पूरी करने के बाद ग्रेडेशन (क्रमोन्नति) की मांग कर रहे 1,188 शिक्षकों की सभी याचिकाएं खारिज कर दी गई हैं। इस फैसले का असर प्रदेश के ढाई लाख से ज्यादा शिक्षकों पर पड़ने वाला है।
जस्टिस एन.के. व्यास की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पंचायत विभाग में कार्यरत रहे शिक्षाकर्मियों को संविलियन से पहले राज्य का शासकीय कर्मचारी नहीं माना जा सकता, इसलिए वे 10 साल की सेवा के आधार पर ग्रेडेशन पाने के पात्र नहीं हैं।
क्या है पूरा मामला?
पंचायत विभाग के शिक्षाकर्मी ग्रेड-1, 2 और 3 का 2018 में स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन किया गया था।
संविलियन के बाद उनके नए पदनाम बने—
- सहायक शिक्षक (LB)
- शिक्षक (LB)
- व्याख्याता (LB)
लेकिन इन्हें वेतन वृद्धि और ग्रेडेशन का लाभ नहीं मिला।
इसी को लेकर 1188 शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
शिक्षकों का पक्ष — “10 साल पूरा, इसलिए ग्रेडेशन मिलना चाहिए”
शिक्षकों का कहना था कि—
- उन्होंने 10 साल की सेवा पूर्ण कर ली है
- 2017 के आदेश में स्पष्ट कहा गया था कि 10 साल बाद वेतन वृद्धि मिलनी चाहिए
- सोना साहू मामले के फैसले के आधार पर वे लाभ के हकदार हैं
लेकिन कोर्ट ने इन तर्कों को स्वीकार नहीं किया।
हाईकोर्ट का फैसला — “संविलियन से पहले सरकारी कर्मचारी नहीं, इसलिए लाभ नहीं”
राज्य सरकार ने तर्क दिया कि—
- शिक्षाकर्मी पंचायत राज अधिनियम, 1993 के तहत जनपद पंचायत के अधीन नियुक्त थे
- उनका नियंत्रण पंचायत विभाग में था
- इसलिए 1 जुलाई 2018 को संविलियन होने से पहले वे राज्य के नियमित कर्मचारी नहीं थे
कोर्ट ने कहा—
“ग्रेडेशन के लिए आवश्यक 10 साल की सेवा केवल 1 जुलाई 2018 से गिनी जा सकती है, उससे पहले नहीं।”
इस आधार पर कोर्ट ने सभी याचिकाएं खारिज कर दीं।
सोना साहू केस क्यों लागू नहीं हुआ?
याचिकाकर्ताओं ने सोना साहू मामले का हवाला दिया था, लेकिन कोर्ट ने कहा—
- दोनों मामलों की परिस्थितियां अलग हैं
- सोना साहू केस में संविलियन और सेवा अवधि की प्रकृति अलग थी
- इसलिए उसे इस मामले का आधार नहीं बनाया जा सकता
संविलियन नीति में ही लिखा है — “कोई पूर्व लाभ नहीं मिलेगा”
कोर्ट ने याद दिलाया कि संविलियन नीति (30 जून 2018) में साफ लिखा है—
“संविलियन से पहले की सेवा को वेतन वृद्धि या ग्रेडेशन के लिए नहीं गिना जाएगा।”
इसलिए पुराने शिक्षाकर्मी संविलियन से पहले किसी भी लाभ का दावा नहीं कर सकते।
अगर याचिका मंजूर होती तो क्या होता?
अगर याचिका शिक्षकों के पक्ष में आती तो शासन पर बड़ा वित्तीय बोझ पड़ता।
हर शिक्षक को—
- ₹3.5 लाख से ₹15 लाख तक का भुगतान करना पड़ता
- क्लास-3 शिक्षकों को सबसे अधिक लाभ मिलता
- 2005 में नियुक्त शिक्षक 2015 में ग्रेडेशन के eligible हो जाते
- उनकी सैलरी क्लास-2 स्तर तक बढ़ जाती
सरकार ने इसे आर्थिक रूप से अव्यावहारिक बताया।
सरकार का तर्क — “शिक्षाकर्मी ग्रेडेशन के पात्र नहीं”
सरकार ने कोर्ट में दलील दी—
- शिक्षाकर्मी पंचायत कर्मचारी थे, सरकारी कर्मचारी नहीं
- उनकी सर्विस कंडीशन अलग हैं
- उन्हें पहले ही 7 साल में समयमान वेतनमान और 2014 में समकक्ष वेतनमान दिया गया है
- इसलिए वे क्रमोन्नति (ग्रेडेशन) के हकदार नहीं
कोर्ट ने इस तर्क को सही माना।
क्या असर पड़ेगा?
इस फैसले से—
- ढाई लाख से ज्यादा शिक्षाकर्मी–शिक्षक प्रभावित होंगे
- ग्रेडेशन और वेतन वृद्धि की उम्मीद खत्म
- शिक्षकों में नाराजगी बढ़ सकती है
- भविष्य में सुप्रीम कोर्ट में अपील की संभावना
यह फैसला छत्तीसगढ़ में संविलियन नीति, शिक्षाकर्मी व्यवस्था और सेवा अवधि को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल बन गया है।

