छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में गेवरा से आ रही पैसेंजर ट्रेन की खड़ी मालगाड़ी से ज़ोरदार टक्कर हो गई।
हादसा इतना भीषण था कि बोगियाँ बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं।
इस दुर्घटना में लगभग 20 लोग घायल बताए जा रहे हैं, जबकि मृतकों की संख्या की आधिकारिक पुष्टि जारी है।
(यहाँ आप अपने अनुसार सही संख्या बोल देंगे)
मौके पर पुलिस, रेलवे स्टाफ और रेस्क्यू टीम ने कई घंटों तक बचाव कार्य चलाया।
कड़ी मशक्कत के बाद घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया।
दुर्घटना की बड़ी वजह क्या?
प्रत्यक्षदर्शियों और जानकारों का साफ आरोप है कि यह हादसा रेलवे प्रशासन की लापरवाही का नतीजा हो सकता है।
जब मालगाड़ी पहले से ही उसी लाइन पर खड़ी थी,
तो सवाल उठता है —
➡ पैसेंजर ट्रेन को उसी ट्रैक पर जाने का सिग्नल किसने दिया?
➡ सिग्नल इंटरलॉकिंग सिस्टम कहाँ फेल हुआ?
ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम पर बड़ा सवाल
रेलवे में ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम लगाया जाता है ताकि दो ट्रेनों के बीच सुरक्षित दूरी बनी रहे और टक्कर जैसी घटनाएँ रोकी जा सकें।
लेकिन या तो सिस्टम काम नहीं कर रहा था,
या कहीं मानव स्तर पर ग़लत ऑपरेशन हुआ।
जिससे साफ सवाल उठता है —
क्या सिग्नल क्लियर करने में भारी लापरवाही हुई?
और अगर हाँ, तो जिम्मेदारी किसकी?
भारी कमाई, पर सुरक्षा पर निवेश कम…
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता राकेश शर्मा ने कहा —
“रेलवे हर साल हज़ारों करोड़ की कमाई करता है, लेकिन सुरक्षा पर गंभीरता नहीं दिखती।
अगर सिस्टम मजबूत होता, तो हादसा टाला जा सकता था।”
टिकट में शामिल बीमा — लेकिन…
जानकारों का कहना है कि हर यात्री के टिकट में इंश्योरेंस शामिल रहता है,
और हादसे के बाद प्रशासन उसी इंश्योरेंस राशि को ‘मुआवज़ा’ के नाम पर पेश करके वाहवाही लूटने की कोशिश करता है।
लेकिन मुख्य सवाल वही —
दोष कौन लेगा? और सिस्टम कब सुधरेगा?
यह हादसा सिर्फ एक ट्रैक पर हुई टक्कर नहीं,
यह ऑटोमैटिक सिग्नलिंग और रेलवे सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर विफलता है।
क्या अब भी सुधार का इंतज़ार होगा?
या फिर जान जाने के बाद सिर्फ मुआवज़ा ही समाधान है?

