छत्तीसगढ़ राज्य-स्थापना दिवस : एक 25 वर्षीय यात्रा — उपलब्धियाँ, चुनौतियाँ और उन्हीं से जुड़ी चिंताएँ

राजेन्द्र देवांगन
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पृष्ठभूमि और स्थापना

    1 नवंबर 2000 को मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ एक नया राज्य बना। राज्य निर्माण की यह प्रक्रिया सामाजिक-राजनीतिक मांगों, जनजातीय अधिकारों, प्राकृतिक संसाधनों एवं क्षेत्रीय पहचान के संयोजन से प्रेरित थी।

    30 से अधिक वर्षों की तैयारी के बाद इस दिन राज्य गठन हुआ, जिससे स्थानीय शासन-प्रशासन को नज़दीक लाने, क्षेत्रीय विकास को गति देने और जनजातीय आबादी की भागीदारी बढ़ाने का अवसर मिला।
    राज्य निर्माण के बाद उसने अपनी संस्कृति, संसाधन-बहुलता और नए प्रशासनिक सेट-अप के आधार पर विकास की दिशा पकड़ी।उपलब्धियाँ – क्या हुआ है

    उपलब्धियाँ – क्या हुआ है

      आर्थिक एवं औद्योगिक प्रगति

      छत्तीसगढ़ देश के प्रमुख लौह-इस्पात, एल्यूमिनियम, सीमेंट व खनिज उत्पादक राज्यों में से एक है; राज्य का उद्योग-आधारित आधार मजबूत हुआ है।

      राजकोषीय रूप से स्थिति अपेक्षाकृत स्थिर रही है: राज्य का ऋण-/GSDP अनुपात काफी राज्यों से बेहतर है।

      नए जिले, अवसंरचना-योजनाएँ, लॉजिस्टीक नीति-निर्माण द्वारा राज्य ने विकास के लिए दृष्टिकोण-योजना (“विकसित छत्तीसगढ़ @2047”) तैयार की है।

      सामाजिक-मानव विकास

      मानव विकास सूचकांक (HDI) में सुधार हुआ है; शिक्षा, स्वास्थ्य व आय के आयामों में प्रगति दर्ज की गई है।

      बिजली, स्वच्छता जैसे बुनियादी सुविधाओं की पहुँच में बढ़ोतरी हुई है।

      प्रशासन-नीति एवं पहचान

      राज्य-स्थापना दिवस अब एक प्रतीक बन चुका है, जिसका सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व बढ़ा है।

      जनजातीय व पिछड़े इलाकों के लिए विशेष योजनाएँ चल रही हैं, जिससे सहभागिता व स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा मिला है।

      चुनौतियाँ – क्या अभी भी पूरा नहीं हुआ

        शिक्षा, स्वास्थ्य व मानव संसाधन

        शिक्षा-क्षेत्र में नामांकन-ग्रेडिंग बेहतर हुई है, पर उच्चतर शिक्षा-स्तर, स्किल-डेवलपमेंट व काम योग्य युवाओं की गुणवत्ता अभी भी राष्ट्रीय औसत से पीछे है।

        स्वास्थ्य-संकेतक (जैसे जीवन-उम्र, शिशु-मृत्यु दर) राष्ट्रीय औसत से अभी बेहतर नहीं बन पाए हैं।

        अवसंरचना और भू-स्थिति

        राज्य गरहाल भू-भागों, दूरदराज इलाकों, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी संकेतकों (सड़क, रेलवे, लॉजिस्टिक्स) के मामले में पिछड़ापन दिखा रहा है।

        राज्य की सेवा-क्षेत्र व अर्थव्यवस्था की संरचना में “प्रगतिशील समावेशन” चुनौतिपूर्ण रहा है; ग्रामीण-जनजातीय इलाकों में लाभ व्यवस्थित रूप से नहीं पहुंच पाए हैं।

        सुरक्षा व पिछड़ेपन का दायरा

        राज्य के कुछ हिस्से अब भी “रेड कॉरिडोर” यानी नक्सल-प्रभावित क्षेत्र में हैं, जिससे विकास-गत गतिरोध उत्पन्न हुआ है।

        सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ जमी हुई हैं: लाभ-वितरण तथा संसाधनों की पहुँच में स्पष्ट विविधता मौजूद है।

        समग्र विश्लेषण और आगे की दिशा

          छत्तीसगढ़ ने 25 वर्षों में स्पष्ट विकास के संकेत दिए हैं — लेकिन “समावेशी”, “सतत” व “सर्व-जन के लिए” विकास की दिशा में अभी भी लंबा रास्ता बाकी है।

          आगे की दिशा कुछ इस प्रकार हो सकती है:

          ग्रामीण-जनजातीय इलाकों में विशेष फोकस: शिक्षा-स्वास्थ्य-संरचना को गहरी पहुँच देना।

          स्किल-डिवेलपमेंट व युवाओं के लिए रोजगार-निर्माण को तेज करना।

          लॉजिस्टिक्स-सड़क-रेल नेटवर्क को बेहतर बनाना ताकि राज्य की भू-स्थिति (लैण्डलॉक) का असर कम हो।

          विकास के लाभों को जिला-ब्लॉक-ग्राम स्तर तक समान रूप से पहुंचाना एवं निगरानी-तंत्र को सुदृढ़ करना।

          सुरक्षा-चुनौतियों (नक्सलवाद) को विकास-सहायता के जरिये कम करना, ताकि क्षेत्रीय पिछड़ापन दूर हो सके।

          इस वर्ष के स्थापना-दिवस पर हमें गर्व है इस बात का कि छत्तीसगढ़ ने काफी प्रगति की है — लेकिन सिर्फ गर्व से काम नहीं बनेगा। हमें वास्तविक चुनौतियों को स्वीकार करना होगा और समाधान-उन्मुख कदम बढ़ाने होंगे। तभी 1 नवंबर सिर्फ एक प्रतीक नहीं बनेगा, बल्कि जन-जीवन में स्थाई रूप से बदलाव लाने वाला दिन बनेगा।

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