पृष्ठभूमि और स्थापना
1 नवंबर 2000 को मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ एक नया राज्य बना। राज्य निर्माण की यह प्रक्रिया सामाजिक-राजनीतिक मांगों, जनजातीय अधिकारों, प्राकृतिक संसाधनों एवं क्षेत्रीय पहचान के संयोजन से प्रेरित थी।
30 से अधिक वर्षों की तैयारी के बाद इस दिन राज्य गठन हुआ, जिससे स्थानीय शासन-प्रशासन को नज़दीक लाने, क्षेत्रीय विकास को गति देने और जनजातीय आबादी की भागीदारी बढ़ाने का अवसर मिला।
राज्य निर्माण के बाद उसने अपनी संस्कृति, संसाधन-बहुलता और नए प्रशासनिक सेट-अप के आधार पर विकास की दिशा पकड़ी।उपलब्धियाँ – क्या हुआ है
उपलब्धियाँ – क्या हुआ है
आर्थिक एवं औद्योगिक प्रगति
छत्तीसगढ़ देश के प्रमुख लौह-इस्पात, एल्यूमिनियम, सीमेंट व खनिज उत्पादक राज्यों में से एक है; राज्य का उद्योग-आधारित आधार मजबूत हुआ है।
राजकोषीय रूप से स्थिति अपेक्षाकृत स्थिर रही है: राज्य का ऋण-/GSDP अनुपात काफी राज्यों से बेहतर है।
नए जिले, अवसंरचना-योजनाएँ, लॉजिस्टीक नीति-निर्माण द्वारा राज्य ने विकास के लिए दृष्टिकोण-योजना (“विकसित छत्तीसगढ़ @2047”) तैयार की है।
सामाजिक-मानव विकास
मानव विकास सूचकांक (HDI) में सुधार हुआ है; शिक्षा, स्वास्थ्य व आय के आयामों में प्रगति दर्ज की गई है।
बिजली, स्वच्छता जैसे बुनियादी सुविधाओं की पहुँच में बढ़ोतरी हुई है।
प्रशासन-नीति एवं पहचान
राज्य-स्थापना दिवस अब एक प्रतीक बन चुका है, जिसका सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व बढ़ा है।
जनजातीय व पिछड़े इलाकों के लिए विशेष योजनाएँ चल रही हैं, जिससे सहभागिता व स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा मिला है।
चुनौतियाँ – क्या अभी भी पूरा नहीं हुआ
शिक्षा, स्वास्थ्य व मानव संसाधन
शिक्षा-क्षेत्र में नामांकन-ग्रेडिंग बेहतर हुई है, पर उच्चतर शिक्षा-स्तर, स्किल-डेवलपमेंट व काम योग्य युवाओं की गुणवत्ता अभी भी राष्ट्रीय औसत से पीछे है।
स्वास्थ्य-संकेतक (जैसे जीवन-उम्र, शिशु-मृत्यु दर) राष्ट्रीय औसत से अभी बेहतर नहीं बन पाए हैं।
अवसंरचना और भू-स्थिति
राज्य गरहाल भू-भागों, दूरदराज इलाकों, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी संकेतकों (सड़क, रेलवे, लॉजिस्टिक्स) के मामले में पिछड़ापन दिखा रहा है।
राज्य की सेवा-क्षेत्र व अर्थव्यवस्था की संरचना में “प्रगतिशील समावेशन” चुनौतिपूर्ण रहा है; ग्रामीण-जनजातीय इलाकों में लाभ व्यवस्थित रूप से नहीं पहुंच पाए हैं।
सुरक्षा व पिछड़ेपन का दायरा
राज्य के कुछ हिस्से अब भी “रेड कॉरिडोर” यानी नक्सल-प्रभावित क्षेत्र में हैं, जिससे विकास-गत गतिरोध उत्पन्न हुआ है।
सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ जमी हुई हैं: लाभ-वितरण तथा संसाधनों की पहुँच में स्पष्ट विविधता मौजूद है।
समग्र विश्लेषण और आगे की दिशा
छत्तीसगढ़ ने 25 वर्षों में स्पष्ट विकास के संकेत दिए हैं — लेकिन “समावेशी”, “सतत” व “सर्व-जन के लिए” विकास की दिशा में अभी भी लंबा रास्ता बाकी है।
आगे की दिशा कुछ इस प्रकार हो सकती है:
ग्रामीण-जनजातीय इलाकों में विशेष फोकस: शिक्षा-स्वास्थ्य-संरचना को गहरी पहुँच देना।
स्किल-डिवेलपमेंट व युवाओं के लिए रोजगार-निर्माण को तेज करना।
लॉजिस्टिक्स-सड़क-रेल नेटवर्क को बेहतर बनाना ताकि राज्य की भू-स्थिति (लैण्डलॉक) का असर कम हो।
विकास के लाभों को जिला-ब्लॉक-ग्राम स्तर तक समान रूप से पहुंचाना एवं निगरानी-तंत्र को सुदृढ़ करना।
सुरक्षा-चुनौतियों (नक्सलवाद) को विकास-सहायता के जरिये कम करना, ताकि क्षेत्रीय पिछड़ापन दूर हो सके।
इस वर्ष के स्थापना-दिवस पर हमें गर्व है इस बात का कि छत्तीसगढ़ ने काफी प्रगति की है — लेकिन सिर्फ गर्व से काम नहीं बनेगा। हमें वास्तविक चुनौतियों को स्वीकार करना होगा और समाधान-उन्मुख कदम बढ़ाने होंगे। तभी 1 नवंबर सिर्फ एक प्रतीक नहीं बनेगा, बल्कि जन-जीवन में स्थाई रूप से बदलाव लाने वाला दिन बनेगा।

