बीजापुर पत्रकार हत्याकांड : सरकारी ज़मीन पर बने 11 कमरे ढहाए, आरोपी ठेकेदार सुरेश का साम्राज्य ध्वस्त

राजेंद्र देवांगन
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हत्या के आठ महीने बाद बुलडोजर एक्शन

बीजापुर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर हत्याकांड में प्रशासन ने बड़ा कदम उठाया है।

जिस बाड़े में मुकेश की हत्या कर शव को दफनाया गया था, उसे सोमवार को राजस्व विभाग और नगर पालिका की टीम ने बुलडोजर से जमींदोज कर दिया

यह बाड़ा चट्टान पारा स्थित सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे के तहत बनाया गया था, जिसमें 11 कमरे खड़े किए गए थे।

एसडीएम जागेश्वर कौशल ने बताया कि आरोपी सुरेश चंद्राकर ने इस ज़मीन पर कब्ज़ा कर रखा था। कई बार नोटिस देने और हाईकोर्ट से स्थगन याचिका खारिज होने के बाद कार्रवाई की गई।


कैसे हुआ था पत्रकार मुकेश का मर्डर?

📌 1 जनवरी 2025 को पत्रकार मुकेश चंद्राकर को उसके ही चचेरे भाइयों ने बर्बरता से मौत के घाट उतार दिया।

  • पहले डिनर पर बुलाया गया।
  • फिर पीटा, गला घोंटा और रॉड से सिर पर वार किया, जिससे गहरा घाव हुआ।
  • शव को बाड़े के कमरे नंबर 11 में दफनाया गया।

3 जनवरी को लाश बरामद हुई और पुलिस ने जांच शुरू की।

4 जनवरी को दिनेश, रितेश चंद्राकर और महेंद्र रामटेके को गिरफ्तार किया गया।

6 जनवरी 2025 को मास्टरमाइंड ठेकेदार सुरेश चंद्राकर हैदराबाद से गिरफ्तार हुआ।


SIT की हाई-टेक जांच

  • आरोपियों ने मोबाइल डेटा डिलीट कर सबूत मिटाने की कोशिश की।
  • मुकेश का मोबाइल 50 किमी दूर तुमनार नदी में फेंका गया।
  • पुलिस ने AI और OSINT टूल्स का इस्तेमाल किया।
  • 100 से ज्यादा CDR खंगाले, 50+ लोगों से पूछताछ हुई।
  • सुरेश की 4 लग्जरी गाड़ियां और मिक्सर मशीन जब्त हुईं।

हत्या क्यों की गई?

SIT के अनुसार, मुकेश लगातार सुरेश चंद्राकर के ठेका कामों में भ्रष्टाचार की खबरें चला रहे थे।

सरकारी जांच भी शुरू हो गई थी।

यही नाराजगी उनकी हत्या की वजह बनी।


सड़क निर्माण में बड़ा घोटाला

  • 2009 में केंद्र की सड़क आवश्यकता योजना (स्पेशल प्रोजेक्ट) के तहत गंगालूर–मिरतुर सड़क के लिए 56 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए।
  • 2015 में एग्रीमेंट, लेकिन 15 साल बाद भी सड़क अधूरी।
  • लागत 120 करोड़ तक पहुंच गई, जबकि क्वालिटी बेहद घटिया।
  • 32 किमी सड़क को 16 हिस्सों में बांटकर अलग-अलग टेंडर दिए गए।
  • ठेकेदार सुरेश चंद्राकर ने सड़क बनाई, लेकिन डामर उखड़ गया और जगह-जगह गिट्टी-मुरुम डाल दिया गया।

पत्रकारिता की आवाज़ दबाने की साजिश

मुकेश चंद्राकर की हत्या सिर्फ रिश्तेदारी की रंजिश नहीं, बल्कि भ्रष्ट ठेकेदारी के खिलाफ उठी पत्रकारिता की कलम को चुप कराने की साजिश थी।

अब प्रशासन का बुलडोजर इस अवैध साम्राज्य पर चल चुका है।

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राजेंद्र देवांगन (प्रधान संपादक)