बेटों ने मुंह मोड़ा, बेटियों ने निभाया फर्ज, तब जागा इंसानियत का जज्बा
बलरामपुर। धन-दौलत और संपत्ति की कोई कीमत नहीं जब इंसान अपने ही कर्तव्यों से मुंह मोड़ ले। बलरामपुर-रामानुजगंज में एक 90 वर्षीय बुजुर्ग महिला की मौत के बाद ऐसा ही अमानवीय दृश्य देखने को मिला। करोड़ों की संपत्ति छोड़ने वाली इस महिला के पांचों बेटे अंतिम संस्कार करने को तैयार नहीं थे, लेकिन बेटियों ने आगे आकर अपनी मां को कंधा देने का निर्णय लिया, तब जाकर बेटों की संवेदनाएं जागीं और उन्होंने मां का अंतिम संस्कार किया।
अंतिम समय तक स्वावलंबी रहीं, लेकिन अपनों का साथ न मिला
बुजुर्ग महिला अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक आत्मनिर्भर रहीं। वह खुद अपने लिए भोजन बनातीं और घर की सफाई भी खुद करती थीं। लेकिन जब दुनिया छोड़कर चली गईं, तो अपने ही बेटों ने उनकी चिता को अग्नि देने से इनकार कर दिया।
संपत्ति के लिए झगड़ा, कफन के पैसे तक पर हुआ विवाद
बुजुर्ग महिला की करोड़ों की संपत्ति थी, लेकिन मृत्यु के बाद बेटों में कफन के लिए पैसे देने तक को लेकर बहस छिड़ गई। बताया जा रहा है कि जमीन विवाद के कारण बेटों ने मां के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी से भी पल्ला झाड़ लिया।
बेटियों ने बढ़ाया कदम, तब जाकर तैयार हुए बेटे
जब घंटों की समझाइश के बाद भी बेटे दाह संस्कार को तैयार नहीं हुए, तो महिला की बेटियों ने खुद अपनी मां को कंधा देने और अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। बेटियों की हिम्मत और जज्बे को देखकर आखिरकार बेटों का भी हृदय परिवर्तन हुआ और वे मां को अंतिम विदाई देने के लिए तैयार हुए।
समाज के लिए सवाल: जीते जी रोटी नहीं, मरने के बाद अग्नि भी नहीं?
इस घटना ने समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि संस्कृति और संस्कार कहां खोते जा रहे हैं? एक मां, जिसने अपने बच्चों को पाला, बड़ा किया, उनके लिए सब कुछ किया, उसी मां को अंतिम विदाई देने में भी संकोच करना, समाज के लिए एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
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