नई दिल्ली:-देश में वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर चर्चा और तेज हो गई है। केंद्र की मोदी सरकार ने राम नाथ कोविंद वाली कमेटी के सभी प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है, ऐसे में अब वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर बिल लाने की तैयारी है। लेकिन कागज पर यह जितना आसान दिखाई देता है, असल में अभी एक लंबा रास्ता तय होना है। इसमें सभी को साथ लेकर चलने की जरूरत तो है ही, इसके ऊपर संविधान में संशोधन भी करना होगा।
एक देश एक चुनाव: आगे की प्रक्रिया?
अह सबसे पहले यह समझ लेते हैं कि वन नेशन वन इलेक्श को लागू करने की प्रक्रिया क्या रहने वाली है। असल में सबसे पहले सरकार को अपने बिल को दो सदनों में पारित करवाने की जरूरत होगी। दोनों लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत के साथ बिल को पारित करवाना होगा। इसके ऊपर इसमें क्योंकि सभी राज्यों की भी भागीदारी रहने वाली है, ऐसे में 15 राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी भी जरूरी रहने वाली है।
क्या संभव है एक देश-एक चुनाव?
जानकार मानते हैं कि अगर बिल को दोनों सदनों में पारित करवाने के बाद भी संविधान में संशोधन काम रह जाएगा। कुल 18 संशोधन करने पड़ सकते हैं, तब जाकर एक फ्रेमवर्क तैयार होगा जिसके तहत देश में एक देश एक चुनाव करवाया जा सके। अब समझते हैं कि क्या बड़े संशोधन संविधान में करने पड़ सकते हैं-
आर्टिकल 83– असल में यह वाला आर्टिकल दोनों सदनों के कार्यकाल से जुड़ा हुआ है। ऐसे में इसमें बदलाव करने की जरूरत पड़ेगी।
आर्टिकल 85– लोकसभा को भंग करने से संबंधित, भविष्य में पड़ सकती है जरूरत
आर्टिकल 172– राज्य विधानमंडलों के कार्यकाल से जुड़ा हुआ है
आर्टिकल 174– राज्य विधानमंडलों को भंग करने की शक्ति
आर्टिकल 356– राष्ट्रपति शासन लगाने की ताकत
पहले एकसाथ होते थे केंद्र और राज्यों के चुनाव
एक देश एक चुनाव को लेकर आज भले ही देश में बहस जारी हो लेकिन आजादी के बाद देश में केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ ही होते थे। 1952 में जब देश में पहली बार आम चुनाव हुए तो उसके बाद राज्यों का चुनाव भी साथ ही कराया गया। इसके बाद 1957, 1962, 1967 में भी केंद्र और राज्य सरकारों के चुनाव एक साथ ही कराए गए। 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की बगवात के चलते सीपी गुप्ता की सरकार गिर गई और यहीं से एकसाथ चुनाव का गणित भी खराब हो गया।
Editor In Chief