दम हो तो इस्तीफा दें और मुकदमा लड़ें, PIL वापस लें, या सीधे जेल … कलकत्ता हाईकोर्ट ने क्यों दी सहायक रजिस्ट्रार को चेतावनी..!
कोलकाता. कलकत्ता हाईकोर्ट ने मौलाना अब्दुल कलाम आजाद विश्वविद्यालय के सहायक रजिस्ट्रार से कहा जनहित कि याचिका वापस लें या सीधे जेल जाएं. हाईकोर्ट ने सहायक रजिस्ट्रार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर आपमें हिम्मत है तो इस्तीफा दें और मुकदमा लड़ें. या तो इस जनहित याचिका को वापस ले लें या आप घर या विश्वविद्यालय नहीं बल्कि सीधे जेल जा रहे हैं.’ ‘बार एंड बेंच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद सहायक रजिस्ट्रार ने अपनी याचिका वापस ले ली. कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को मौलाना अब्दुल कलाम आजाद प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सहायक रजिस्ट्रार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका को आगे बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय की आधिकारिक जानकारी का दुरुपयोग करने के लिए फटकार भी लगाई.
कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की पीठ ने कहा कि सहायक रजिस्ट्रार और याचिकाकर्ता अनुप कुमार मुखर्जी विश्वविद्यालय के सार्वजनिक सूचना अधिकारी (पीआईओ) भी थे. इसका मतलब यह था कि उनके पास सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के तहत दायर सवालों के आधार पर जानकारी तक पहुंच थी. जिसे अदालत ने देखा. ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता ने विश्वविद्यालय भर्ती में अनियमितताओं का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका को आगे बढ़ाने के लिए इसका दुरुपयोग किया है.
आरटीआई जानकारी का दुरुपयोग
मुख्य न्यायाधीश ने चेतावनी दी कि आपने आरटीआई सवालों पर दी गई जानकारी के आधार पर अपनी जनहित याचिका दायर की है. आप जनहित याचिका के रूप में हासिल जानकारी का दुरुपयोग कर रहे हैं. या तो इस जनहित याचिका को वापस ले लें या आप घर या विश्वविद्यालय नहीं बल्कि सीधे जेल जा रहे हैं. पीठ ने सहायक रजिस्ट्रार से यह भी कहा कि अगर वह जनहित याचिका को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो पहले अपने पद से इस्तीफा दें.
पहले इस्तीफा दें और फिर आएं
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ‘आप 2019 में सेवा में शामिल हुए और अब आरोप लगाते हैं कि आपके शामिल होने से कम से कम 10 साल पहले कई भर्तियां अनियमित रूप से की गईं. यह एक साफ निजी हित है. आप इस्तीफा दें और फिर आएं. अंदर रहकर गोली न चलाएं. यह झूठ बोलने जैसा है. अगर आपमें हिम्मत है, तो इस्तीफा दें और लड़ें.’ हाईकोर्ट ने कहा कि मुखर्जी विश्वविद्यालय के अधिकारियों के खिलाफ आरोप नहीं लगा सकते और साथ ही विश्वविद्यालय से वेतन भी हासिल नहीं कर सकते.
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